कोर्ट में कृष्ण जन्मभूमि विवाद पर हिंदू पक्षकारों की दलील पूरी, 5 जनवरी को अगली सुनवाई

संजय शर्मा

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मथुरा जिला अदालत में कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में हिंदू पक्षकारों की ओर से दलीलें पूरी हो गई हैं. अब अगली सुनवाई अगले साल पांच जनवरी को होगी, जिसमें मुस्लिम पक्षकार यानी शाही ईदगाह को लेकर दलीलें दी जाएंगी. पिछले जिला जज का तबादला होने के बाद अब नए जज के इजलास में ये पहली सुनवाई है.

याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, “भगवान कृष्ण विराजमान की ओर से करीब सवा साल पहले दायर इस सिविल सूट की सुनवाई अब तक चार जजों के सामने हो चुकी है. दो-तीन तारीखों पर सुनवाई के बाद जिला जज का तबादला हो जाता है.”

उन्होंने आगे कहा, “अब मौजूदा जिला जज ने याचिकाकर्ता भगवान कृष्ण विराजमान के अंतरंग सखाओं की दलील तो सुन ली है. अब विरोधी पक्ष की ओर से दलील होगी.”

भगवान कृष्ण विराजमान की ओर से श्री कृष्ण जन्म स्थान की 13.37 एकड़ जमीन वापस दिलाने की गुहार अदालत से लगाई गई है. याचिका में कहा गया है, “करीब 400 साल पहले औरंगजेब के फरमान से मंदिर ढहाने के बाद केशव देव टीले और भूमि पर अवैध कब्जा कर शाही इदगाह मस्जिद बनाई गई थी.”

इस याचिका में भी संसद से पारित धर्मस्थल कानून (प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट) 1991 को चुनौती दी गई है.

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याचिकाकर्ता का कहना है, “धर्म स्थलों की जिम्मेदारी और कानून व्यवस्था ये सब राज्य सूची का विषय है. इस बाबत कानून और नियम बनाने का अख्तियार राज्य सरकारों को ही है, केंद्र को नहीं.”

याचिकाकर्ता ने आगे कहा, “ऐसे में संसद ने ये कानून बनाकर राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है. केंद्र का ये अतिक्रमणकारी कदम संविधान के संघीय ढांचे की व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाला है. लिहाजा अदालत इसे अवैध घोषित कर रद्द करे.”

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ये वाद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशदेव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर की ओर से उनकी अंतरंग सखी के रूप में वकील रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य सखाओं ने दायर किया है. हालांकि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 इस मामले में आड़े आया हुआ है. इस एक्ट के जरिए अयोध्या में कभी विवादित रहे राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक मामले को ही अदालती फैसले के मुताबिक बदलाव में छूट मिली थी.

अलबत्ता मथुरा काशी सहित सभी धार्मिक और आस्था उपासना स्थलों के विवाद या स्थिति पर 15 अगस्त 1947 जैसी ही स्थिति बहाल रखने का प्रावधान किया गया है. अब अदालत में इस कानून को ही चुनौती दी गई है.

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