इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ताजमहल के कमरे खोलने की याचिका न सिर्फ खारिज की, खूब पाठ भी पढ़ाया

संजय शर्मा

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

ऐतिहासिक ताजमहल के तहखाने में बने कमरों में से 22 कमरे खोलने और अध्ययन, रिसर्च करने की इजाजत देने की गुहार वाली याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ये प्रार्थनाएं अदालतों के न्यायिक परिधि से बाहर हैं. ऐतिहासिक तथ्यों की खोज और तस्दीक व अनुसंधान का ये काम इतिहासकारों का है हमारा नहीं.

जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने ताजमहल पर विवाद को लेकर सख्ती दिखाते हुए याचिकाकर्ता को नसीहत भी दी और फटकार भी लगाई. याचिकाकर्ता ने जब कोर्ट से कहा कि वहां तो पहले शिव मंदिर था जिसे मकबरे का रूप दिया गया. इसपर जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता को नसीहत देते हुए कहा कि आप पहले इस बाबत इतिहास की सम्यक पढ़ाई कीजिए. किसी संस्थान से इस बारे में एमए पीएचडी कीजिए. तब हमारे पास आइए.

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई संस्थान इसके लिए आपको दाखिला न दे तो हमारे पास आइए. याचिकाकर्ता ने फिर कहा कि मुझे ताजमहल के उन कमरों तक जाना है. कोर्ट कृपया उनको खोलने की इजाजत दे. इस पर भी कोर्ट के तेवर सख्त ही रहे. जस्टिस उपाध्याय ने कहा कि कल को आप कहेंगे कि मुझे जज के चेंबर तक जाना है, उसे खुलवाइए. नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि पीआईएल व्यवस्था का दुरूपयोग न करें.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

अव्वल तो कोर्ट ने इस निजी जानकारी और रिसर्च की गुहार वाली पीआइएल पर ही नाराजगी जताई. कोर्ट ने पूछा कि रिसर्च आपको निजी तौर पर करनी है तो जनहित का मुद्दा कौन सा है?
पहले ताजमहल किसने बनवाया जाकर रिसर्च कीजिए. जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इतिहास क्या आपके मुताबिक पढ़ा जाएगा? आप पहले ये सब पढ़िए कि
ताजमहल कब बना, किसने बनवाया, कैसे बनवाया?

कोर्ट ने ये सारी बातें कहने के बाद कहा कि अभी भोजनावकाश हो रहा है. लंच के बाद हाईकोर्ट में फिर से मामले की सुनवाई होगी. कोर्ट के संकेत से तो लगा कि आज इस मामले का पटाक्षेप हो सकता है. फिर हुआ भी यही. भोजनावकाश के बाद पीठ ने आगे सुनवाई करते हुए पूछा कि आप कौन से जजमेंट दिखा रहे हैं. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जजमेंट पेश किए जिनमें अनुच्छेद 19 के तहत बुनियादी अधिकारों और खासकर उपासना, पूजा और धार्मिक मान्यता की आजादी का जिक्र है.

कोर्ट ने कहा कि हम आपकी दलीलों से सहमत नहीं हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से इजाजत मांगी कि वो और अधिक तथ्यों के साथ क्या फिर से अर्जी दाखिल कर सकते हैं? याचिकाकर्ता की कोर्ट से मांग और गुहार जिन मुद्दों पर हैं वो न्यायिक परिधि में नहीं हैं. यानी कोर्ट उनपर निर्णय नहीं दे सकता. कोर्ट ने आदेश में कहा कि स्मारक अधिनियम 1951 में क्या ये जिक्र या घोषणा है कि ताजमहल मुगलों ने ही बनाया था?

ADVERTISEMENT

याचिका में ये भी मांग की गई है कि ताज परिसर से कुछ निर्माण और ढांचे हटाए जाएं ताकि पुरातात्विक महत्व और इतिहास की सच्चाई सामने लाने के लिए सबूत नष्ट न हों. कोर्ट ने कहा कि याचिका समुचित और न्यायिक मुद्दों पर आधारित नहीं है.

याचिकाकर्ता की मांग के मुताबिक ये अदालत फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित नहीं कर सकती. अब इस मामले में अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी. कोर्ट का काम ऐतिहासिक तथ्यों की तस्दीक और रिसर्च करने का नहीं है. ये काम ऐतिहासिक तथ्यों के विशेषज्ञों और इतिहासकारों पर हो छोड़ देना उचित है. हम ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकते. उसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

ADVERTISEMENT

ताजमहल विवाद: मोदी सरकार पहले ही कह चुकी है- ‘ताजमहल के हिंदू मंदिर होने का सबूत नहीं’

    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT