जमीयत बोला- बुलडोजर अन्याय का प्रतीक, प्रॉपर्टी गिराने पर रोक जारी, सुप्रीम कोर्ट में ये सब हुआ

यूपी तक

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सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर सुनवाई की.
Supreme Court on bulldozer action
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Bulldozer action news: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दाखिल जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है. मंगलवार को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि वह आरोपियों के प्रॉपर्टी गिराने जैसे इन मामलों पर एक पैन-इंडिया गाइडलाइन बनाने का काम करेगा. तबतक के लिए बुलडोजर एक्शन पर लगी अंतरिम रोक जारी रहेगी. जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित रखे जाने पर कहा कि बुलडोजर इस देश में अन्याय का प्रतीक बन गया है. 

जमीयत चीफ ने आगे कहा, 'यह आम धारणा बन गई है कि साम्प्रदायिक शक्तियां मुसलमानों को मस्जिदों और इबादतगाहों को चिन्हित करती हैं और स्थानीय अधिकारी उसे तत्काल गिरा देते हैं. इस संबंध में कुछ घटनाएं हुई हैं जो अत्यंत दुखद हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट गाइडलाइन की आशा की जा रही है.'

प्रॉपर्टी गिराने से 60 दिन पहले दिया जाए नोटिस: जमीयत 

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच कर रही है. इस याचिका में जमीयत की तरफ से एडवोकेट एमआर शमशाद, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड फर्रु रशीद और अन्य पेश हुए. जमीयत की ओर से गाइडलाइन जारी करने के संबंध में सलाह दी गई है कि कोई भी प्रॉपर्टी गिराने से 60 दिन पहले स्थानीय भाषा में नोटिस दिया जाए. इसके अलावा पीड़ित को 15 दिनों के भीतक अपील करने का भी अधिकार हो और अपील पर फैसला आने से पहले बुलडोजर एक्शन न हो. 

सुप्रीम कोर्ट में क्या क्या हुआ? 

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक बार फिर बुलडोजर एक्शन को लेकर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह संपत्तियों को ध्वस्त किए जाने के मुद्दे पर सभी नागरिकों के लिए दिशा निर्देश जारी करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिनमें आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में आरोपियों की संपत्ति समेत अन्य संपत्तियां ध्वस्त की जा रही हैं. 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके दिशा निर्देश पूरे भारत में लागू होंगे. उसने कहा कि वह यह स्पष्ट कर रहा है कि किसी व्यक्ति का महज आरोपी या दोषी होना संपत्ति के ध्वस्तीकरण का आधार नहीं हो सकता. बेंच ने कहा, 'हम जो कुछ भी तय कर रहे हैं..., हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. हम सभी नागरिकों, सभी संस्थानों के लिए इसे जारी कर रहे हैं न कि किसी खास समुदाय के लिए.' बेंच ने कहा कि किसी खास धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता है. उसने कहा कि वह सार्वजनिक सड़कों, सरकारी जमीनों या जंगलों में किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगा. 

इस बीच याचिका दाखिल करने वालों की तरफ से पेश एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के आदेश का जिक्र किया. इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अनुमति के बगैर एक अक्टूबर तक आरोपियों या अन्य लोगों की संपत्ति नहीं गिराने का निर्देश दिया था. वकील ने इस अंतरिम रोक को बढ़ाने का अनुरोध किया. इसपर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस मामले में फैसला आने तक यह आदेश बना रहेगा. 

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