गंगा में प्रदूषण पर HC सख्त, नमामि गंगे का मांगा हिसाब, कहा- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को…
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की कार्यशैली पर सवाल…
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि ‘क्यों ना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बंद कर दिया जाए?’ कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए नमामि गंगे प्रोजेक्ट का हिसाब भी मांगा है कि आखिर कितनी रकम गंगा की सफाई में कहां-कहां खर्च हुई है. बता दें कि अब 31 अगस्त को हाईकोर्ट में दोबारा इस मामले की सुनवाई होगी.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच ने स्वतः संज्ञान में ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गंगा प्रदूषण पर सख्त नाराजगी जताई है. कोर्ट को बताया गया कि गंगा में शुद्ध जल नहीं जा रहा है. कानपुर में चमड़ा उद्योग और गजरौला में चीनी उद्योग की गंदगी बगैर शोधित गंगा में गिर रही है. शीशा पोटेशियम व अन्य रेडियो एक्टिव चीजें गंगा को प्रदूषित कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में एसटीपी के काम ना करने से गंगा मैली हो रही है. इस पर हाईकोर्ट ने जल निगम के परियोजना निदेशक से स्पष्ट पूछा की एसटीपी की रोजाना मॉनिटरिंग कैसे होती है, कोर्ट ने डेली रिपोर्ट मांगी है.
कोर्ट ने गंगा प्रदूषण पर तैयार की गई आईआईटी कानपुर और बीएचयू की टेस्ट रिपोर्ट पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि यह रिपोर्ट तो आंखों में धूल झोंकने वाली है. ट्रीटमेंट प्लांट बेकार है. एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी है, वह काम नहीं कर रहे. जांच के लिए जो नमूने भेजे गए वह पर्याप्त मात्रा में नहीं थे.
हाईकोर्ट ने सैंपलिंग के तरीकों पर भी सवाल करते खड़ा करते हुए कहा कि जब जांच करानी होती है तो साफ पानी मिलाकर सैंपल भेज अच्छी रिपोर्ट तैयार कर ली जाती है. कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा कि कैसे निगरानी होती है, क्या कार्रवाई की गई है, जिस पर बोर्ड के अधिवक्ता जवाब नहीं दे पाए. तब कोर्ट ने साफ कहा कि जब आप निगरानी नहीं कर पा रहे कार्रवाई नहीं कर पा रहे तो क्यों ना बोर्ड को बंद कर दिया जाए.
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कोर्ट ने जल शक्ति मिशन की तरफ से नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत चलाए जा रहे नमामि गंगे परियोजना के बारे में भी जानकारी मांगी है. कोर्ट ने आशंका जताई कि इस परियोजना के जरिए गंगा सफाई में अरबों रुपये खर्च हो गए होंगे, लेकिन गंगा जस की तस है. कोर्ट ने अब नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक को अब तक किए गए खर्च का ब्यौरा पेश करने के लिए कोर्ट में तलब किया है.
गौरतलब है कि इससे पहले यूपी के जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में आरोप लगाया था कि ‘नमामि गंगे योजना में भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है. प्रधानमंत्री जी की योजना नमामि गंगे और हर घर जल योजना में नियमों की अनदेखी हो रही है.’
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