गोविंद बल्लभ पंत: नेहरू के साथ अंग्रेजों की लाठी खाने वाले योद्धा, BJP भी करती है तारीफ

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10 सितंबर को उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती यूपी में धूमधाम से मनाई गई. योगी सरकार ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने पंडित गोविंद बल्लभ पंत को न सिर्फ श्रद्धांजलि दी, बल्कि जमकर उनकी प्रशंसा की. पंडित गोविंद बल्लभ पंत यूपी के पहले सीएम होने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के नेता भी थे. अक्सर राजनीति में एक दल के नेता दूसरे दलों के नेताओं की तारीफें कम ही करते हैं. पर पंत के मामले में ऐसा नहीं है. आज पंडित गोविंद बल्लभ पंत के जन्मदिन पर उनसे जुड़ा एक खास किस्सा जानने से पहले आपको बताते हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने उनकी तारीफ में क्या कसीदे पढ़े.

‘प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री ‘भारत रत्न’ पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी की जयंती पर आज पूरा प्रदेश व देश उनकी स्मृतियों को कोटि-कोटि नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.’

सीएम योगी आदित्यनाथ

काकोरी घटना’ के क्रांतिकारियों के पकड़े जाने पर पं. गोविंद बल्लभ पंत जी के द्वारा ही उनके पक्ष में अपील की गई. क्रांतिकारियों के मुकदमों को लड़ने के लिए एक अभियान स्व. पंत जी ने चलाया था.

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द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना सहमति के शामिल कर लिया. इसके विरोध में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन व उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत जी ने त्यागपत्र दे दिया था.

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असहयोग आंदोलन हो या भारत छोड़ो आंदोलन। देश की स्वतंत्रता हेतु प्रत्येक अभियान में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना पं. गोविंद बल्लभ पंत जी ने अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया था

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यह सर्वविदित है कि प्रदेश के राजकीय चिह्न में गंगा-यमुना, प्रयागराज का संगम व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का धनुष बाण अंकित है. पं. गोविंद बल्लभ पंत जी ने ही मुख्यमंत्री के रूप में इस चिह्न की स्वीकृति दी थी

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ये वो बातें हैं जिन्हें पंत की तारीफ में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा. अब पंत के बारे में आपको एक किस्सा बताते हैं, जो आजाद भारत में उनकी भूमिका को बताने के लिए पर्याप्त है.

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देश के पहले पीएम नेहरू ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में बताया है यूपी के पहले सीएम पंत का किस्सा: पंडित गोविंद बल्लभ पंत न सिर्फ आजादी के बाद यूपी के पहले सीएम बने बल्कि ब्रिटिश शासन के दौरान 1937 से 1939 तक वह संयुक्त प्रांत के प्रधान भी रहे. इसी एक तथ्य से हमें उनके राजनीतिक कद का अंदाजा हो जाता है. भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘टुवर्ड फ्रीडम’ में पंत से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया है.

इस किताब के 12वें अध्याय के शीर्षक का हिंदी तर्जुमा करें तो वह होता है ‘लाठी चार्ज के अनुभव’. इस अध्याय में पंडित नेहरू भारत की आजादी के आंदोलन के उस समय को याद करते हैं, जब उन्हें अंग्रेजी हुकूमत की लाठीचार्ज का पहला अनुभव मिला था. इसी में नेहरू को याद आते हैं उनके साथी पंडित गोविंद बल्लभ पंत.

नेहरू लिखते हैं कि तब साइमन कमिशन के विरोध में आंदोलन चल रहे थे. भारत की एक बड़ी आबादी सर जॉन साइमन के नाम और साइमन गो बैक, जैसे दो अंग्रेजी शब्दों से परिचित हो चुकी थी. हर तरफ से यही नारा सुनाई देता था. एक ऐसे ही विरोध में लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज हुआ और बाद में घाव के चलते उनका निधन हो गया. इसके बाद यह आंदोलन और तीव्र हो गया.

यह किस्सा लखनऊ का है
नेहरू बताते हैं कि लखनऊ में कांग्रेस ने साइमन कमिशन के विरोध में अपने आंदोलन को तेज कर दिया. वह लखनऊ गए और कुछ आंदोलनों का हिस्सा बने. ऐसी ही एक आंदोलन का जिक्र करते हुए नेहरू लिखते हैं कि एक टीम का नेतृत्व वह कर रहे थे और दूसरी का पंडित गोविंद बल्लभ पंत. इतने में पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. नेहरू को चोटें आईं और वह बताते हैं कि शरीर के हर हिस्से में दर्द हो रहा था. नेहरू आगे लिखते हैं कि लेकिन सबसे ज्यादा निशाना बने गोविंद बल्लभ पंत, जो उनके ठीक साथ खड़े थे. उनकी 6 फीट की कदकाठी अंग्रेजों के हमले की जद में पहले आ गई. नेहरू ने बताया है कि पंत को इतनी चोटें आई थीं कि उन्हें काफी वक्त लग गया अपनी कमर को सीधा करने और सक्रिय जीवन में वापस आने में.

आपको बता दें कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत 1955 से लेकर 1961 तक भारत के गृह मंत्री भी रहे. उन्हें 1957 में लोक सेवा और आजादी के आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया. पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था. उन्होंने मुरी कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए (एलएलबी) की डिग्री हासिल की थी. यहां भी शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए उन्हें लम्सडेन पदक से सम्मानित किया गया था. डॉ. पंत को जमींदारी प्रथा को समाप्त करने, वन संरक्षण, महिलाओं के अधिकारों, आर्थिक स्थिरता और सबसे कमजोर समूहों की आजीविका की सुरक्षा जैसे प्रमुख सुधारों को अंतिम रूप देने वाले के तौर पर याद किया जाता है.

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