बुंदेलखंड: गुलामी के दौर में इस गांव की महिलाओं ने शुरू की ये अनोखी परंपरा, जानिए वजह

नाहिद अंसारी

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अंग्रेजी हुकूमत में युवा, महिला, बालक और बुजुर्ग ऐसा कोई नहीं था जिसपर अंग्रेजों के जुर्म के कोड़े नहीं बरस रहे थे. ऐसे में क्रांति की आग केवल शहरों में नहीं बल्कि गांव-गांव में फैल चुकी थी. गांव के युवक अंग्रेजी शासन से लड़ने के लिए दो-दो हाथ करने की तैयारी में तो थे ही महिलाओं को भी आत्मरक्षा के गुर सिखाए जा रहे थे. ये तब हुआ जब अंग्रेजी हुकूमत को वीरांगना रानी लक्ष्मी ने चुनौती देकर उनके दांत खट्‌टे कर दिए.

इस दौर में बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के लोदीपुर-निवादा गांव में महिलाओं को कुश्ती लड़ने की ट्रेनिंग दी जा रही थी ताकि समय पड़ने पर वे मुकाबला कर सकें. यही परंपरा आज भी चली आ रही है. दरअसल बुंदेली परंपरा के तहत गांव में शौर्य गाथा की परंपरा में कजली मेला उत्सव से पहले महिलाएं गांव के तालाब में कजली का विसर्जन करती हैं और फिर दंगल लड़कर अपनी वीरत का प्रदर्शन करती है.

इसी परंपरा के तहत रक्षाबंधन के अगले दिन गांव में महिलाओं के दंगल का आयोजन किया गया. घरों में चूल्हा-चौका करने, परिवार संभालने और घर का मैनेजमेंट देखने वाली हर उम्र की महिलाओं ने दंगल में दो-दो हाथ किया. रेफरी की सिटी और ढोल की थाप पर इस दंगल में बच्चों से लेकर युवतियों, महिलाओं और बुजुर्गों ने हौसलाआफजाई किया.

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शाम लगभग 6 बजे निवादा गांव के पुराना बाजार मैदान में महिलाएं ढोल की थाप पर एक दूसरे के साथ कुश्ती के दांव खेलीं. इस दंगल में खुशबू पाल, केशर, कुसुमा, विद्या देवी ने अपने प्रतिद्वंदी को पटखनी देकर दंगल का खिताब अपने नाम कर लिया. गौरतलब है कि ग्रामीण महिलाओं के इस दंगल में पुरुषों का प्रवेश वर्जित रहता है. सिर्फ गांव की महिलाएं ही रहती हैं.

इस वर्ष भी आयोजन में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. कार्यक्रम का आयोजन ग्राम प्रधान गिरिजादेवी , मालती शुक्ला, ज्योति देवी, नेहा देवी, विनीता साहू, उर्मिला देवी का विशेष योगदान रहा.आयोजन में रैफरी की भूमिका पूजा देवी और अभिलाषा गुप्ता ने निभाई.

गांव के सेवानिवृत्त अध्यापक जगदीशचन्द्र जोशी और सुरेश शुक्ल ने बताया कि बुजुर्गों द्बारा इस परंपरा की शुरुआत की कहानियां सुनी हैं. बताया कि गुलामी के दौर में अंग्रेजों के अत्याचारों का प्रतिकार करने एवं आत्मरक्षा के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित करने की मंशा से इसकी शुरुआत हुई थी. जिसके बाद झांसी की रानी “महारानी लक्ष्मीबाई”के बलिदान से प्रेरित होकर महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया. व

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बुंदेलखंड: यहां घर संभालने वाली महिलाएं लड़ती हैं दंगल, लगाती हैं कुश्ती के दांव-पेंच

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