2024 के लोकसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर के बेटे को घोसी सीट से हार का सामना करना पड़ा. इस पर सवाल उठा कि ओम प्रकाश राजभर एनडीए के साथ रहने के बावजूद उनकी हार हुई तो फिर उनके बड़े-बड़े सियासी दावों का क्या मतलब? हार के बाद उन पर सवाल उठे कि आखिर ठाकुर, भूमिहार, सवर्ण जैसे माने जाने वाले भाजपा के वोटर जब खुद राजभर चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हैं, तब उनके पक्ष में क्यों नहीं आते? ये भी सवाल हुआ कि घोसी उपचुनाव में दारा सिंह चौहान भी हारे, जबकि राजभर तो साथ ही थे फिर ऐसा क्यों हुआ?
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ईमानदारी से किया परिश्रम, लेकिन…
ओम प्रकाश राजभर ने अपने जवाब में कहा, 'हम अपने वोट के मालिक हैं. खुद घोसी के मतदाता भी मानेंगे कि राजभर ने पूरी ईमानदारी से वोट दिलवाया. अब अगर उम्मीदवार अपना वोट न ले पाए तो हम क्या करें?' उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी और नेताओं ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन हार की जिम्मेदारी वे पूरी तरह नहीं ले सकते. ओम प्रकाश राजभर ये बात घोसी उपचुनाव के संदर्भ में कह रहे थे.
राजभर ने क्या-क्या कहा, यहां नीचे दी गई वीडियो रिपोर्ट में देखिए
जातिवाद और वोट ट्रांसफर की राजनीति
राजभर ने इस हार के पीछे जातिवादी समीकरणों को अहम वजह बताया. उन्होंने कहा कि घोसी, मऊ, बलिया जैसी कई सीटों पर जाति के नाम पर वोटों का ट्रांसफर होता है और जातिवाद चरम पर है. उनके मुताबिक, 'बीजेपी का वोटर जातिवाद के चक्कर में दूसरी ओर चला गया.' उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि बलिया और गाजीपुर जैसी जगहों पर भी जाति के इसी समीकरण ने चुनावी नतीजों को प्रभावित किया है.
विपक्ष को ज्यादा वोट मिला, हमारा वोट समिटा- राजभर
राजभर ने माना कि विपक्ष के मुकाबले उन्हें कम वोट मिले, लेकिन उनका दावा था कि जितना वोट पिछली बार बीजेपी अलायंस कैंडिडेट ने जीत के लिए पाया था, इस बार उन्होंने उतना ही वोट पाया, फिर भी हार गए. उन्होंने माना कि जाति की वजह से कुछ वोट इधर-उधर चले गए, लेकिन अपना वोट बैंक मजबूत बना रहा. अंत में उन्होंने कहा कि जातिवादी राजनीति की वजह से ही ऐसी स्थिति पैदा हुई.
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