पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जौनपुर से मिल चुकी है हार, जानिए इस सीट का पूरा सियासी इतिहास

राजकुमार सिंह

• 09:45 AM • 15 Jan 2023

Jaunpur News: उत्तर प्रदेश की जौनपुर लोकसभा सीट का अपना अलग ही इतिहास रहा है. इस सीट से भारतीय जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय…

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Jaunpur News: उत्तर प्रदेश की जौनपुर लोकसभा सीट का अपना अलग ही इतिहास रहा है. इस सीट से भारतीय जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को करारी शिकस्त मिल चुकी है. राजा यादवेंद्र दत्त दुबे और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रह चुके स्वामी चिन्मयानंद भी जौनपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अब तक हुए 18 चुनाव में 6 बार कांग्रेस और 6 बार भाजपा-जनसंघ का कब्जा रहा है. वहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी दो-दो बार जीत हासिल की है. एक बार जनता दल तो वहीं एक बार जनता पार्टी (सेकुलर) के प्रत्याशी को भी संसद में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है.

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1952 और 57 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस से बीरबल सिंह ने जौनपुर का प्रतिनिधित्व किया है. 1962 में पहली बार भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी ब्रह्मजीत सिंह ‘दीपक’ जलाने में सफल हुए. संसदीय कार्यकाल के दौरान ही उनका निधन हो गया. इसके चलते 1963 में हुए उपचुनाव मे भारतीय जनसंघ ने पार्टी के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को मैदान में उतारा, उनका मुकाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजदेव सिंह से था, इस चुनाव मे दीनदयाल उपाध्याय को करारी शिकस्त मिली. इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजदेव सिंह ने लगातार 1967 और 1971 का भी चुनाव जीता.

1977 में भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी राजा यादवेंद्र दत्त दुबे भारतीय लोक दल के बैनर तले मैदान में उतरे और कांग्रेस से तीन बार के सांसद राजदेव सिंह को पराजित किया. 1980 में जनता पार्टी (सेकुलर) से अजीजुल्लाह आजमी ने जीत हासिल की. 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस (आई) से कमला प्रसाद सिंह सांसद चुने गए. 1989 की राम लहर में भारतीय जनता पार्टी से राजा यादवेंद्र दुबे दोबारा सांसद चुने गए. 1991 में अर्जुन सिंह यादव जनता दल से तो 1996 में राज केसर सिंह भारतीय जनता पार्टी से संसद में पहुंचे.

1998 में समाजवादी पार्टी से मुलायम सिंह यादव के खासमखास पारसनाथ यादव लोकसभा में पहुंचे. 1999 में भारतीय जनता पार्टी ने राम जन्मभूमि आंदोलन के अगुआ स्वामी चिन्मयानंद को प्रत्याशी बनाया. उन्होंने पारसनाथ यादव को पराजित किया. 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के पारसनाथ यादव ने तत्कालीन गृहराज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद को करारी शिकस्त दी. इस चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी से चुनाव लड़ रहे बाहुबली धनंजय सिंह को स्वामी चिन्मयानंद से अधिक मत मिले थे. लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी धनंजय सिंह को 117397 तो वहीं भाजपा प्रत्याशी रहे स्वामी चिन्मयानंद को 110148 मत मिले.

2009 में बहुजन समाज पार्टी ने बाहुबली विधायक धनंजय सिंह को चुनाव मैदान में उतारा. सोशल इंजीनियरिंग को साधते हुए धनंजय सिंह ने किला फतह किया और पारसनाथ यादव को जबरदस्त पटकनी दी. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सीमा द्विवेदी (वर्तमान राज्यसभा सदस्य) को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. 2014 की मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय उमानाथ सिंह के पुत्र डॉक्टर कृष्ण प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में डॉक्टर के पी सिंह ने 146310 मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल की.

 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने डॉक्टर केपी सिंह पर दोबारा दांव लगाया. इस बार उनका मुकाबला सपा बसपा गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी और सेवानिवृत्त पीसीएस अधिकारी श्याम सिंह यादव से था. इस चुनाव में डॉक्टर केपी सिंह को 2014 के मुकाबले 73000 से ज्यादा मत मिलने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में सपा-बसपा के संयुक्त प्रत्याशी श्याम सिंह यादव को 521128 वही भाजपा प्रत्याशी को 440192 मत मिले. बसपा प्रत्याशी श्याम सिंह यादव ने 80936 मतों से शानदार जीत दर्ज की.

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