मुख्तार की ताकत से अखिलेश की मदद करेंगे राजभर? बांदा जेल में हुई मुलाकात के मायने समझिए

यूपी तक

• 04:43 AM • 03 Nov 2021

यूपी की सियासत का खेल भी निराला है. यहां कब-कौन-किसकी मदद से अपनी सियासत चमकाने लगता है, इसकी थाह पाना काफी मुश्किल काम है. यही…

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यूपी की सियासत का खेल भी निराला है. यहां कब-कौन-किसकी मदद से अपनी सियासत चमकाने लगता है, इसकी थाह पाना काफी मुश्किल काम है. यही वजह है कि यहां की सियासत ने ऐसे सारे गठबंधन देख लिए, जिन्हें एक वक्त असंभव समझा गया. जैसे कांशीराम-मुलायम, मायावती-बीजेपी, अखिलेश-कांग्रेस और सबसे अधिक चौंकाऊ तो खुद मायावती-अखिलेश का गठबंधन. यही वजह है कि यूपी में अब कोई भी गठबंधन असंभव नहीं माना जाता. इसी क्रम में आगामी चुनावों के लिए पूर्वांचल की राजनीति में अखिलेश और ओम प्रकाश राजभर के गठबंधन के चर्चे हैं. अब यूपी की इस नई सियासी जोड़ी के बीच एक तीसरे नाम की चर्चा है. वह नाम है बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का.

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खबर है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बांदा जेल में मुख़्तार अंसारी से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि उन्हें चुनाव लड़ाने पर चर्चा हुई है। पहले ही राजभर मुख़्तार के लिए बयान दे चुके हैं कि मुख़्तार जहां से चाहें वहां से टिकट देंगे.

क्या हैं मुख्तार से नजदीकी बढ़ाने के सियासी मायने?

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे बाहुबली नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. प्रदेश सरकार लगातार दावा कर रही है कि इनकी बेनामी संपत्ति को जब्त किया जा रहा है. योगी सरकार इसे कथित माफिया राज के खिलाफ अपनी जीत के रूप में पेश कर रही है. हालांकि विपक्ष और खासकर ओवैसी इसे मुस्लिम नेताओं को टारगेट किए जाने की कोशिश के रूप में परिभाषित कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि ओम प्रकाश राजभर की मुख्तार अंसारी मेल-जोल बढ़ाने की इस कवायद के सियासी मायने क्या हैं?

इसकी एक वजह पूर्वांचल के कई जिलों में अंसारी परिवार के दबदबे का चुनावी फायदा उठाने की कोशिशों के रूप में समझी जा रही है. वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया और मऊ जैसे जिलों में अंसारी परिवार एक अलग ताकत रखता है. इसकी झलक 2019 के आम चुनावों में भी देखने को मिली थी. जब एसपी-बीएसपी गठबंधन बीजेपी के सामने कमोबेश पूरे प्रदेश में फेल हुआ लेकिन गाजीपुर में इसके उम्मीदवार और मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने तत्कालीन रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा को बड़ी मार्जिन से शिकस्त देने में कामयाबी हासिल की थी.

राजभर अंसारी परिवार के इसी सियासी रुतबे का इस्तेमाल आगामी विधानसभा चुनावों में करने की तैयारी में नजर आ रहे हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि पूर्वांचल की कई सीटों पर मुस्लिम वोटों की संख्या भी काफी अहम है. राजभर ने पिछले दिनों ‘यूपी तक बैठक’ में यह कहकर भी काफी सुर्खियां बंटोरी थीं कि मुख्तार अंसारी के फाटक (अंसारी परिवार का पैतृक निवास स्थान) पर बीजेपी के नेता माथा टेकने जाते हैं. उन्होंने कहा था, ‘गाजीपुर, बलिया, बनारस, प्रतापगढ़ में जिसे भी चुनाव लड़ना होता है वह मुख्तार अंसारी के फाटक पर माथा टेकता है.’

ओवैसी फैक्टर को बैलेंस करने की कोशिश?

एमआईएम पार्टी चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी के आगामी चुनावों को लेकर काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं. वह मुस्लिम मतदाताओं से ओपन अपील कर रहे हैं कि उन्हें एसपी, बीएसपी और कांग्रेस का समर्थन न करके ओवैसी का समर्थन करना चाहिए. ओवैसी ने प्रयागराज के बाहुबली नेता अतीक अहमद और उनकी पत्नी को पार्टी में शामिल भी कराया है. साथ ही, एसपी पर आरोप लगाए हैं कि वह मुस्लिम नेताओं के इस्तेमाल के बाद उन्हें मुंह मोड़ लेती है.

ऐसे में समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक के दरकने का खतरा भी नजर आ रहा है. राजभर-मुख्तार के मेलजोल की इस कवायद को इस नजर से भी देखा जा रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि एसपी-राजभर गठबंधन पूर्वांचल में ओवैसी के असर को कम से कम करने के लिए अंसारी बंधुओं को अपनी ओर करने की तैयारी में है.

अखिलेश को भी अंसारी बंधुओं से परहेज नहीं!

एक वक्त था जब अखिलेश यादव को अंसारी बंधुओं से परहेज हुआ करता था. 2017 के चुनावों से ठीक पहले अखिलेश यादव ने न सिर्फ अंसारी बंधुओं की कौमी एकता दल के एसपी में विलय के चाचा शिवपाल के फैसले को पलटा था बल्कि इसे लेकर काफी सख्ती भी दिखाई थी. पर अब ऐसा नहीं है. अखिलेश यादव ने पिछले दिनों मुख्तार अंसारी के दूसरे बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को एसपी में शामिल भी करवाया है. ऐसे में कहीं न कहीं अंसारी परिवार से राजनीतिक निकटता से होने वाले फायदे पर अखिलेश यादव की भी नजर जरूर टिकी हुई है.

हालांकि यह भी देखना रोचक होगा कि अंसारी बंधुओं से नजदीकी की कोशिश कहीं सियासी रूप से भारी न पड़ जाए. बीजेपी इस नए गठजोड़ की कवायद पर शांत रहेगी, इसके आसार नहीं हैं. ऐसे में अगर यह मामला धर्म की सियासत के रूप में उछला तो इसके उलट परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.

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