उत्तर प्रदेश की राजनीति में 14 अगस्त 2025 का दिन राजनीतिक मद्देनज़र काफी उठापटक से भरा रहा. समाजवादी पार्टी की विधायक पूजा पाल, जो पिछले कई सालों से पार्टी के लिए एक मजबूत चेहरे के तौर पर देखी जाती रही हैं, उन्हें पार्टी ने तत्काल निष्कासित कर दिया है. दावों की मानें तो उनके ऊपर ये कार्रवाई विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कानून-व्यवस्था के क्षेत्र में की गई कार्रवाइयों की खुले मंच से तारीफ करने की वजह से की गई है.
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ये सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका, पार्टी अनुशासन की सीमाएं और विधायक की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की आज़ादी, तीनों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. दरअसल, 14 अगस्त को यूपी विधानसभा के मॉनसून सत्र में अपराध और कानून-व्यवस्था पर बहस हो रही थी. सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों अपने-अपने राजनीतिक तर्क पेश कर रहे थे. इसी दौरान कौशांबी चायल से सपा विधायक पूजा पाल ने बोलने के लिए खड़े होकर कहा कि 'योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में जो सख्ती दिखाई है, वो सराहनीय है. कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ है और महिलाओं के लिए माहौल बेहतर हुआ है.'
ये बयान सुनते ही सत्तापक्ष में तालियां बजीं, लेकिन विपक्षी बेंचों पर खामोशी छा गई. कई साथी विधायकों के चेहरे पर असहमति के भाव थे. अगले ही पल, सपा नेतृत्व ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता के आरोप में तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित करने का नोटिस जारी कर दिया.
पूजा पाल ने इस फैसले को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष में रहकर भी मैं किसी अच्छे काम की तारीफ़ नहीं कर सकती, तो ये राजनीति नहीं, मजबूरी है. मैंने सिर्फ सच कहा है, ना किसी का अपमान किया, ना कोई गलत बयान दिया. मुझे लगता है कि ये निष्कासन खास वोट बैंक को खुश करने के लिए किया गया है. उन्होंने ये भी साफ किया कि वे अपनी विधायकी जारी रखेंगी और जनता के मुद्दों पर खुलकर बोलेंगी चाहे वो सरकार के पक्ष में हों या विपक्ष में.
ऐसे में अब एक सवाल ये उठता है कि सपा से निकाले जाने के बाद पूजा पाल विधायक रहेंगी या उनकी विधायकी चली जाएगी. जानकारों की मानें तो पूजा पाल का पार्टी से निष्कासन उन्हें विधायक पद नहीं हटाता. यहां एक अहम कानूनी शब्द सामने आता है असंबद्ध विधायक यानी अनअटैच्ड एमएलए.
अब चलिए आपको बताते हैं कि क्या होता है असंबद्ध विधायक?
असंबद्ध विधायक उस विधायक को कहा जाता है जो अपने मूल दल से निष्कासित हो गया हो. लेकिन उसकी सदस्यता विधानसभा में बरकरार हो. असंबद्ध विधायक न तो अपने पुराने दल की व्हिप के तहत बंधा होता है, न किसी नए दल का हिस्सा माना जाता है.
दलबदल विरोधी कानून यानी 10वीं अनुसूची के तहत, यदि विधायक स्वेच्छा से पार्टी छोड़ता है या व्हिप का उल्लंघन करता है, तो पार्टी अध्यक्ष स्पीकर से उसकी अयोग्यता की सिफारिश कर सकता है. लेकिन अगर पार्टी खुद विधायक को निष्कासित कर दे, तो ये विधायकी खत्म करने का स्वतः कारण नहीं है. अब फैसला विधानसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वे इसे ‘दलबदल’ मानते हैं या नहीं. यानी, पूजा पाल अब असंबद्ध विधायक के रूप में सदन में रहेंगी. जब तक कि वे खुद किसी दूसरे दल से न जुड़ें या स्पीकर उनकी अयोग्यता घोषित न करें.
अब सवाल उठता है कि पूजा पाल के लिए अब आगे क्या रास्ता बचा है... निर्दलीय, नया दल या वही पुराना संघर्ष? जानकारों की मानें तो पूजा पाल के सामने अब तीन रास्ते हैं. पहला निर्दलीय रहकर जनता के मुद्दों पर काम करना. दूसरा किसी नए दल में शामिल होकर राजनीतिक भविष्य बनाना और तीसरा कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़कर पार्टी में वापसी की कोशिश करना. फिलहाल उन्होंने साफ किया है कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. सच कहना अगर गुनाह है, तो वे ये गुनाह करती रहेंगी.
बता दें कि पूजा पाल की राजनीतिक यात्रा विवादों और संघर्षों से भरी रही है. वे अपने क्षेत्र में अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख के लिए जानी जाती हैं. खासतौर पर, उनके पति की हत्या के बाद राजनीति में उनकी एंट्री और न्याय की लड़ाई ने उन्हें सुर्खियों में रखा. सपा के भीतर भी उन्हें कभी पूरी तरह से ‘मुख्यधारा’ का हिस्सा नहीं माना गया. कई बार उनके बयान पार्टी लाइन से अलग रहे. लेकिन ये पहला मौका है जब उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है.
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