लखनऊ यूनिवर्सिटी के 2 यारों के जिगर में आजकल जल रही आग! धनंजय सिंह और अभय सिंह की असली वाली कहानी जानिए

बाहुबली धनंजय सिंह और अभय सिंह की अदावत जगजाहिर है. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि 90 के दशक में ये दोनों 'जिगरी दोस्त' हुआ करते थे. जौनपुर के टीडी कॉलेज से शुरू हुई यह दोस्ती लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में वर्चस्व, ठेकेदारी और रसूख की भेंट चढ़ गई.

Dhananjay Singh and Abhay Singh

रजत सिंह

• 12:23 PM • 19 Dec 2025

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उत्तर प्रदेश के दो बाहुबली नेता धनंजय सिंह और अभय सिंह के बीच इन दिनों जुबानी जंग चल रही है. लेकिन कम लोग ही ये जानते होंगे कि 90 के दशक में ये दोनों नेता एक-दूसरे के लिए जान देने को तैयार रहते थे? लखनऊ यूनिवर्सिटी की सड़कों पर साथ चलने वाले ये दो जिगरी दोस्त आखिर कैसे दुश्मन बन गए इस खबर में हम इसी पर चर्चा करेंगे. 

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जब दो दोस्त बने एक दूसरे के दुश्मन

ये कहानी शुरू होती है साल 1991 के आसपास. जौनपुर के तिलकधारी सिंह महाविद्यालय यानी टीडी कॉलेज में तीन दोस्त पढ़ रहे थे धनंजय सिंह, अभय सिंह और अरुण उपाध्याय. तीनों के दिल और दिमाग में एक ही जुनून था राजनीति. धनंजय सिंह कहते हैं कि उनका सपना तो आर्मी में जाने का था. लेकिन नियति उन्हें लखनऊ ले आई.  लखनऊ पहुंचकर तीनों दोस्तों ने छात्र राजनीति में कदम रखा.  विवाद की पहली चिंगारी यहीं सुलगी. अभय सिंह चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन धनंजय ने अजय सिंह का नाम तय कर दिया था. धनंजय ने अभय से कहा कि तुम उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ लो. इसी चुनाव में तीसरे दोस्त अरुण उपाध्याय हार गए. जानकारों का मानना है कि दरार की शुरुआत यहीं से हुई.

छात्र राजनीति से निकलकर ये दोस्त बाहुबल की दुनिया में दाखिल हुए. धनंजय के मुताबिक अभय सिंह का संपर्क अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव से हुआ और वो नेपाल चले गए. असल लड़ाई शुरू हुई रेलवे और सरकारी निर्माण के ठेके को लेकर जहां पैसा और रसूख दोनों था. साल 1996 में यूनिवर्सिटी के अंदर एक हत्या हुई. धनंजय और अभय दोनों पर मुकदमा दर्ज हुआ. अभय जेल चले गए. लेकिन धनंजय फरार हो गए. इस फरारी के दौरान एक ऐसा वक्त भी आया जब पुलिस ने धनंजय सिंह का एनकाउंटर दिखा दिया और अखबारों में उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया गया. लेकिन कुछ समय बाद धनंजय सिंह को जिंदा देखकर हर कोई चौंक गया. 

इधर अभय और धनंजय के बीच जेल के अंदर और बाहर का यह फासला दुश्मनी को बढ़ाता गया. जेल में रहते हुए अभय सिंह के नेटवर्क बड़े हो गए.  उन पर मुख्तार अंसारी का करीबी होने के आरोप लगे. वहीं पैसों के बंटवारे और वर्चस्व की जंग तेज हो गई. तभी एक बड़ी वारदात हुई संतोष सिंह की हत्या. अभय सिंह का आरोप है कि उनके गांव के लड़के संतोष सिंह को धनंजय ने फोन करके बुलाया और दूसरी पार्टी से पैसे लेकर उसकी हत्या कर दी. अभय कहते हैं कि धनंजय ने उनके नाम का इस्तेमाल कर उनके संबंधों को कलंकित किया. इस घटना ने मनमुटाव को अदावत में बदल दिया.

विधायक बन गए धनंजय सिंह

फिर साल 2022 में धनंजय सिंह रारी विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बन गए. अभय सिंह अब भी संघर्ष कर रहे थे. 4 अक्टूबर 2002 को वाराणसी के नदेसर में टसाल सिनेमा के सामने धनंजय सिंह के काफिले पर AK-47 से अंधाधुंध फायरिंग हुई. धनंजय बाल-बाल बचे. लेकिन उनके सहयोगी घायल हो गए. धनंजय ने सीधे अभय सिंह को मुख्य आरोपी बनाया.

राजनीति के पहिए घूमे. मायावती राज में दोनों को मुश्किलें झेलनी पड़ीं. 2012 में जब मुलायम सिंह यादव ने क्षत्रिय नेताओं को लामबंद किया तो अभय सिंह गोसाईगंज से विधायक बने. उस वक्त तक धनंजय दो बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके थे. हाल ही में 2023-24 के राज्यसभा चुनाव में अभय सिंह ने समाजवादी पार्टी से बगावत कर बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की. जो अभय सिंह कभी कहते थे कि 'मुलायम सिंह ने मेरी जान बचाई, सपा कभी नहीं छोड़ूंगा' आज वो बीजेपी के करीबी हैं.  वहीं धनंजय सिंह आजकल कफ सिरप तस्करी मामले में अपने करीबी आलोक सिंह की गिरफ्तारी को लेकर चर्चा में हैं.

आज आलम यह है कि दोनों एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ते. धनंजय कहते हैं कि उन्होंने अभय को पटक दिया था और इलाज के पैसे दिए थे. तो अभय उन्हें गुड्डू मुस्लिम का दोस्त बताते हैं.

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