मशहूर कॉमेडियन और एक्टर राजू श्रीवास्तव (Raju Shrivastav) के निधन के बाद गुरुवार को उनकी अंत्येष्टि हुई. राजू श्रीवास्तव के अचानक चले जाने से उनके चाहने वाले ही नहीं दुखी हैं बल्कि उस गांव में भी मातम पसरा है जहां राजू का बचपन बीता था. राजू ने अपनी प्रतिभा को यहीं रंग देना शुरू किया था. बचपन में संस्कारों से लेकर स्कूल की पढ़ाई राजू ने इसी गांव में की थी. राजू की कॉमेडी के मशहूर किरदार ‘गजोधर’ पर इसी गांव के थे.
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हम बात कर रहे हैं उन्नाव जिले के बीघापुर थाना क्षेत्र के मगरायर गांव की. यहीं राजू का पुश्तैनी मकान है जहां उनका बचपन बीता था. गांव का वो मंदिर जहां राजू रोज पूजा करने जाया करते थे. बचपन में यहीं पाठशाला में राजू ने अक्षर ज्ञान लिया. कहते हैं पूत के पांव पालने में. इसी कहावत को चरितार्थ करता है राजू का बचपन.
राजू की कॉमेडी करने की प्रतिभा इसी गांव में सबसे पहले लोगों के बीच आई थी. जिस उम्र में लोग बच्चों को बढ़ने के लिए बोल रहे थे उस उम्र में राजू अभिनय कला को प्रदर्शित करते हुए ये बताने लगे थे कि वे उन बाकी के छात्रों से बिल्कुल अलग हैं और अलग मुकाम बनाकर लोगों के दिलों पर राज करने वाले हैं. राजू ने जिंदगी का पहला कॉमेडी प्रोग्राम भी इसी गांव में किया था.
गांव के अंदाज को ही किया फेमस
गांव के ही वेदव्यास श्रीवास्तव ने बताया कि राजू उनके बड़े भाई थे. उनकी खास बात ये थी कि उनके बोल-चाल, हावभाव से लेकर उनकी कॉमेडी के अंदाज में मगरायर गांव की झलक हमेशा मिलती थी. उनकी कॉमेडी में गांव के गजोधर का जिक्र होता था. गजोधर इसी गांव के रहने वाले थे. अब वो इस दुनिया में नहीं हैं. गौरतलब है कि राजू ने उनके यूनीक अंदाज को अपनी कॉमेडी में विशेष जगह दी थी.
हमने कहा- यहां टैलेंट दिखाओ तो मानें
गांव के ही नवल किशोर बाजपेई ने कहा- एक बार राजू भइया आए थे. यहां रुके थे. हमने बोले कि आपको टीवी पर देखा है बहुत कुछ करते हुए. हमें तभी भरोसा होगा जब आप हमारे सामने कुछ करके दिखाओ. तब राजू भइया ने 10 तरह की आवाजें निकालकर बताई थीं. यही क्षण सबसे यादगार है.
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