जानिए कौन हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, क्या बोल BJP में आए थे, UP चुनाव पर क्या असर डालेंगे?
‘मैं राजनीति उसूलों की करता हूं. राजनीति को व्यवसाय का, धंधे का, लूट का, पैसा कमाने का, कारोबार का मैं संसाधन नहीं मानता.’ स्वामी प्रसाद…
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‘मैं राजनीति उसूलों की करता हूं. राजनीति को व्यवसाय का, धंधे का, लूट का, पैसा कमाने का, कारोबार का मैं संसाधन नहीं मानता.’
स्वामी प्रसाद मौर्य,
यूपी में 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के बाद जब ‘पंचायत आजतक’ के कार्यक्रम में पूछा गया कि क्या स्वामी प्रसाद मौर्य लालू के शब्दों में मौसम वैज्ञानिक हैं? तब स्वामी प्रसाद मौर्य ने न सिर्फ ऊपर लिखी लाइनों में राजनीति को लेकर अपनी समझ को बताया था बल्कि तब बीएसपी छोड़ बीजेपी में शामिल होने की वजह भी बताई थी. लेकिन इस बात को पूरे पांच साल बीतते उससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
यूपी में मंगलवार यानी 11 जनवरी का दिन सियासी रूप से काफी विस्फोटक रहा. स्वामी प्रसाद मौर्य संग कुछ अन्य बीजेपी विधायकों ने भी इस्तीफे दिए और अखिलेश यादव ने ट्वीट कर इनका स्वागत समाजवादी पार्टी में कर दिया.
अब सवाल यह है कि क्या यूपी चुनावों से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहीं फिर से तो सियासी मौसम का अंदाजा नहीं लगा लिया? आखिर क्या वजह हुई की स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कद्दावर ओबीसी नेता ने ऐन चुनाव से पहले योगी सरकार पर दलित, पिछड़ों और छोटे कारोबारियों की हितों की अनदेखी का आरोप लगा दिया? क्या स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा यूपी में बीजेपी को भारी पड़ने वाला है?
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सबसे पहले जानिए कि कौन हैं स्वामी प्रसाद मौर्य?
स्वामी प्रसाद मौर्य के पास राजनीति का 3 दशकों से अधिक का अनुभव है. फिलहाल वह कुशीनगर के पडरौना से विधायक हैं. ‘पंचायत आजतक’ के कार्यक्रम में खुद स्वामी प्रसाद मौर्य बता चुके हैं कि 2 जनवरी 1996 को वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए थे. वह पडरौना से तीन और रायबरेली की डलमऊ सीट से दो बार विधायक रहे हैं. एक बार वह एमएलसी भी रहे हैं. 2017 के यूपी चुनाव से पहले वह मायावती (बीएसपी चीफ) पर टिकट बेचने और धन की राजनीति करने जैसे गंभीर आरोप लगाकर बीजेपी में शामिल हुए थे.
स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से BJP सांसद हैं. उन्होंने 2019 के चुनावों में एसपी के धर्मेंद्र यादव को हराया था. इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य भी रायबरेली की ऊंचाहार सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि उन्हें जीत नहीं मिली थी.
क्या है स्वामी प्रसाद मौर्य की सियासी ताकत?
स्वामी प्रसाद मौर्य ‘मौर्य’ जाति से आते हैं. यूपी में ओबीसी वोटर्स में यह जाति काफी अहम स्थान रखती है. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में इस जाति के करीब 6 फीसदी वोट हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रभाव कुशीनगर के अलावा रायबरेली, शाहजहांपुर और बदायूं (जहां से उनकी बेटी सांसद हैं) तक माना जाता है.
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कितना नुकसान पहुंचाएंगे बीजेपी को?
2017 के चुनावों से पहले 8 अगस्त 2016 को जब स्वामी प्रसाद मौर्य BJP में शामिल हुए थे, तो इस कार्यक्रम में अमित शाह संग केशव प्रसाद मौर्य भी मौजूद रहे. तब बीजेपी ने यह संदेश भी देने की कोशिश की कि एक मौर्य नेता के आने से दूसरे मौर्य नेता नाराज नहीं हुए बल्कि एक और एक 11 हो गए.
असल में 2017 के चुनावों से पहले अमित शाह ने यूपी में गैर यादव ओबीसी जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसे कई प्रयोग किए थे. ये प्रयोग सफल भी हुए और बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला.
अब ऐन मौके पर स्वामी प्रसाद मौर्य का पार्टी छोड़ना 2022 के आगामी चुनावों के लिए बीजेपी के प्रॉस्पेक्ट्स को कमजोर बना सकता है. एक तरफ अखिलेश यादव, मायावती, प्रियंका लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि योगी सरकार में पिछड़ों, दलितों और ब्राह्मणों पर अत्याचार हो रहा है.
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वहीं, दूसरी तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कद्दावर नेता भी अगर इन्हीं आरोपों के साथ पार्टी छोड़ रहे हैं, तो यह बीजेपी के नॉन यादव ओबीसी वोट बैंक के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है.
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