‘जाको प्रभु दारुण दुख देही…’, रामचरितमानस चौपाई विवाद का जवाब केशव ने चौपाई से ही दिया

यूपी तक

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में रामचरितमानस के एक चौपाई को लेकर सियासी विवाद जारी है. यूपीतक की तरफ से शुक्रवार को अयोध्या में आयोजित ‘यूपी तक उत्सव’ में प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) ने रामचरितमानस की चौपाई विवाद का जवाब चौपाई से ही दिया. उन्होंने कहा कि ‘जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही.’

रामचरितमानस विवाद पर केशव ने कहा कि ‘जिनकी जैसी भावना होती है, उन्हें वैसा ही दिखाई देता है. रामचरितमानस सहित किसी भी ग्रन्थ के मामले में किसी भी राजनेता या दल को टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है. ये धर्माचार्यों का मामला है. कोई धर्म ग्रन्थ का अपमान करे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.’

समाजवादी पार्टी के नेताओं की तरफ से पोस्टर में शूद्र शब्द के प्रयोग करने को लेकर केशव ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने अखिलेश यादव को लकेर कहा है कि जो राम भक्तों का विरोध करेगा, जो रामचरितमानस का विरोध करेगा वाह कल्पना में भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकता.

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एक सवाल के जवाब में केशव ने कहा कि ‘अखिलेश खुद भागवत कथा में जाएंगे और स्वामी प्रसाद मौर्य से चौपाई का विरोध करवाएंगे. कोई तो बलि चढ़ने वाला चाहिए. स्वामी अखिलेश के भोंपू बनकर बोल रहे हैं.’

उन्होंने ये भी कहा कि ‘मोदीजी की सरकार बनने के बाद अखिलेश मंदिर दंर्शन करने लगे वरना रोजा इफ्तार से उन्हें फुर्सत नहीं थी.’

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रामचरितमानस विवाद ऐसे शुरू हुआ था

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया था. इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी भड़क गई थी. इसके बाद सपा मुख्यालय के बाहर रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल उठाते हुए पोस्टर भी लगाए गए थे. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों का अर्थ सीएम योगी से पूछा था. इस विवाद को लेकर यूपी की सियासत काफी गरमा गई थी.

बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था कि श्रीरामचरितमानस की कुछ पंक्तियों में जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर यदि समाज के किसी वर्ग का अपमान हुआ है तो वह निश्चित रूप से वह धर्म नहीं है, यह ‘अधर्म’ है.

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स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, ‘‘श्रीरामचरित मानस की कुछ पंक्तियों में तेली और ‘कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का उल्लेख है, जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं.’’

स्वामी प्रसाद मौर्य ने मांग की थी कि पुस्तक के ऐसे हिस्से पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए जो किसी की जाति या ऐसे किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं.

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