कानपुर मेडिकल कॉलेज ने की रिसर्च, अति कुपोषित बच्चों को न दें एंटीबायोटिक दवाएं, ऐसे करें इलाज

सिमर चावला

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Kanpur News: कानपुर में अति कुपोषित शिशु रोगियों के उपचार पर डॉक्टरों ने रिसर्च की है. गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज द्वारा की गई यह रिसर्च WHO की गाइडलाइंस को चुनौती दे रही है. इस रिसर्च के लिए आईसीएमआर द्वारा 5000000 रुपये की फंडिंग दी गई थी, जिसके शुरुआती नतीजे बेहद सकारात्मक आए हैं. रिसर्च कर रहे डॉक्टरों द्वारा बताया गया है कि अति कुपोषित शिशुओं के उपचार में एंटी-बायोटिक दवा देने की जरूरत नहीं पड़ती है.

विस्तार से जानिए पूरी खबर

दरअसल, आईसीएमआर टीम द्वारा गांव-गांव जाकर लगभग 100 अति कुपोषित शिशुओं का पंजीकरण किया गया, जिनमें से आधे अति कुपोषित शिशुओं को एंटी-बायोटिक दवाएं दी गईं, लेकिन कोई अंतर नहीं आया. WHO द्वारा कुपोषित बच्चों के लिए जो गाइडलाइंस जारी की गई हैं, उसके मुताबिक अति कुपोषित बच्चों को पोषाहार और एंटीबायोटिक दवाइयां देकर इलाज किया जाता है. लेकिन मेडिकल कॉलेज कि डॉक्टरों की टीम ने आईसीएमआर में प्रस्ताव रखकर रिसर्च की जिसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 50 लाख रुपए का फंड दिया. कुपोषित बच्चों पर किए गए शुरुआती परिणाम सफल आए हैं, जिसके द्वारा एंटीबायोटिक दवाइयों का ओवर यूज रोका जा सकेगा.

डॉ. तनु ने बताया कि देश में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ के आसपास है. डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस के मुताबिक, कुपोषित बच्चों को एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं. ऐसे में कानपुर मेडिकल कॉलेज में एक रिसर्च के तौर पर 50-50 कुपोषित बच्चों के दो ग्रुप बनाएं. पहले ग्रुप को एंटीबायोटिक दी गई और दूसरे ग्रुप को एंटीबायोटिक्स नहीं दी गई और दोनों के नतीजे लगभग एक जैसे थे. ऐसे में बाल रोग विभाग विभाग के द्वारा 400 बच्चों पर रिसर्च करी जाएगी, जिसके लिए एक सेंटर बनाया जा रहा है.

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बताया गया कि कुपोषित शिशु रोगियों को स्वस्थ रखने के लिए केवल पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए. इसको लेकर उनके माता-पिता को जागरूक करने का काम किया जाएगा. डॉक्टर ने बताया कि इसके बारे में प्रशासन के माध्यम से सरकार को भी लिखा जा रहा है, जिससे कि आने वाले समय में WHO की गाइडलाइंस को दरकिनार कर वह एंटीबायोटिक्स का यूज कम कर कुपोषित बच्चों का इलाज करेंगे.

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