क्या योगी से नाराज हैं ब्राह्मण, UP चुनाव में छोड़ेंगे BJP का साथ? जानिए एक्सपर्ट्स की राय

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उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर ब्राह्मण वोटर्स चर्चा में हैं. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के महासचिव सतीश मिश्रा ने पिछले दिनों सीधे तौर पर कह दिया कि सीएम योगी आदित्यनाथ तो ब्राह्मणों की शक्ल भी नहीं देखना चाहते.

वह यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा…’मुख्यमंत्री योगी जी नाथ संप्रदाय के हैं. जिस समाज से वो हैं, वह भी सभी को मालूम है, ब्राह्मण समाज से बिल्कुल विरोधी है. और इनके समाज में सनातन धर्म को सही नहीं माना जाता है. जो ब्राह्मण टीका लगाता है, चुटिया रखता है, उसे नाथ संप्रदाय वाले अपना दुश्मन मानते हैं.’

सतीश मिश्रा की इस टिप्पणी ने एक बार फिर यूपी में ब्राह्मण वोटर्स की बीजेपी से कथित नाराजगी के कयासों को धार देने का काम किया है. यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के अलावा सत्तारूढ़ दल बीजेपी भी अपना कैंपेन ब्राह्मण वोटर्स पर फोकस कर डिजाइन कर रही हैं.

सतीश मिश्रा के निशाने पर योगी, कहा- नाथ संप्रदाय वाले ब्राह्मण को दुश्मन मानते हैं

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पिछले दिनों बीजेपी विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे और बीएसपी से निष्कासित विधायक विनय शंकर तिवारी एसपी में शामिल हुए. बता दें कि विनय शंकर तिवारी बाहुबली नेता हरिशकंर तिवारी के छोटे बेटे हैं और पूर्वांचल में तिवारी परिवार राजनीतिक रूप से काफी रसूखदार समझा जाता है.

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई ब्राह्मण मतदाता इतने नाराज हैं कि वह बीजेपी का साथ छोड़ देंगे? क्या ब्राह्मण मतदाताओं ने 2007 में जैसा साथ बीएसपी का दिया क्या वैसे वे एसपी के साथ खड़े होंगे? आखिर यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं की ऐसी कौन सी ताकत है, जिस वजह से इस बार सारे दल उन्हें अपने पक्ष में करने की जुगत में भिड़े हुए हैं?

इसी बात को समझने के लिए यूपी तक ने चुनावी विश्लेषण के दो दिग्गज एक्सपर्ट्स से बात की. हमने यूपी के ब्राह्मण मतदाताओं के रुख को लेकर सी वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख और सीएसडीएस-लोकनीति के प्रोफेसर संजय कुमार से इस मसले पर बात की.

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अखिलेश के यहां ब्राह्मण विधायकों की जॉइनिंग हो रही है. क्या अखिलेश की तरफ जा रहे हैं ब्राह्मण?

हमने सी वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख से इस संबंध में सवाल किए. सी वोटर फिलहाल यूपी चुनाव को ट्रैक भी कर रही है.

यशवंत देशमुख ने बताया,

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“यूपी के ब्राह्मण मतदाताओं की एक खास बात है, जिसे आप ऐतिहासिक रूप से देख सकते हैं. यूपी के बाहर घूम कर बात करेंगे तो भी आप इसकी नब्ज पकड़ लेंगे. यूपी का ब्राह्मण मतदाता या तो बीजेपी को वोट देता है या मुंह फुलाकर घर बैठ जाता है. तीसरा ऑप्शन एक ही बार 2007 में नजर आया, जब समाजवादी पार्टी को हराने के लिए ब्राह्मणों ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को वोट दिया. मेरी राय में यूपी के ब्राह्मण मतदाता कांग्रेस, बीएसपी के ब्राह्मण कैंडिडेट को वोट दे सकते हैं. ब्राह्मण वोटर्स एसपी के साथ जाएंगे, अभी ऐसा कुछ हमारे ट्रैकर में नहीं आया है. आने वाले वक्त में जब कैंडिडेट की लिस्ट आ जाएगी और ब्राह्मणों को अगर एसपी टिकट देगी तब ये देखना रोचक होगा कि ट्रैकर के नतीजे क्या होंगे.”

यशवंत देशमुख

‘ब्राह्मणों के अंदर नाराजगी जरूर’, पर क्या इतनी कि बीजेपी का साथ छोड़ेंगे?

हमने सीएसडीएस-लोकनीति के प्रोफेसर और चुनाव विश्लेषक संजय कुमार से इस संबंध में उनकी राय मांगी.

संजय कुमार ने बताया,

“थोड़ी बहुत नाराजगी तो जरूर है ब्राह्मणों के बीच में, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इतनी नाराजगी है कि ब्राह्मण वोटर बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस, बीएसपी, एसपी या दूसरी पार्टी को वोट कर देंगे. ऐसी नाराजगी मुझे नहीं दिख रही. आज नाराज तो जरूर दिखते हैं, लेकिन वोट के दिन आते-आते बदलाव आ जाएगा. हो सकता है जो ब्राह्मण बहुत नाराज हों वो घर बैठ जाएं. इससे बीजेपी को कुछ वोटों का नुकसान हो सकता है, लेकिन किसी दूसरी पार्टी को फायदा नहीं होगा.”

संजय कुमार

जब संजय कुमार से यह पूछा गया कि समाजवादी पार्टी ने ढेरों ब्राह्मण नेताओं को लुभाया, बीएसपी भी काम कर रही है ऐसे में क्या ब्राह्मण उधर नहीं जा सकते? तो उन्होंने कहा, ‘बीएसपी का पर्सेप्शन बना है कि वह मजबूती से नहीं लड़ रही है. जहां तक एसपी में ब्राह्मण नेताओं के जाने का सवाल है, तो टिकट बंटवारे के समय अखिलेश को ध्यान देना होगा क्योंकि उनका कोर वोट बैंक खिसक सकता है.’

यूपी में क्या है ब्राह्मण वोटों की ताकत?

एक अनुमान के मुताबिक यूपी में ब्राह्मण आबादी 11 से 13 फीसदी के बीच है. एक वक्त रहा जब यूपी की सियासत की कमान ब्राह्मण नेताओं के हाथ में ही रही. लेकिन यह ताकत 1989 के बाद अचानक से खत्म हो गई और ब्राह्मणों के पास यूपी में अंतिम सीएम के रूप में नारायण दत्त तिवारी के नाम की कहानी रह गई.

1947 के बाद यूपी को 6 कद्दावर ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिले. यूपी के पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत (1952-1954) ब्राह्मण ही थे. उनके बाद सुचेता कृपलानी (1963-1967), कमलापति त्रिपाठी (1971-1973), हेमवती नंदन बहुगुणा (1973-1975), श्रीपति मिश्र (1982-1984) और नारायण दत्त तिवारी (1976-1977, 1984-1985, 1988-1989) भी यूपी के सीएम बने. 1990 के दशक में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति प्रभावी हुई और यूपी का ब्राह्मण नेतृत्व अपनी सियासी ताकत को खो बैठा.

2007 में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से फोकस में आए ब्राह्मण वोटर्स

मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनावों में बहुजन के साथ ब्राह्मण को जोड़कर सत्ता तक पहुंचने का एक विनिंग फॉर्म्युला तलाशा था. तबसे यह माना जाने लगा कि यूपी में ब्राह्मणों ने जिस राजनीतिक पार्टी का साथ दिया, सत्ता उसके पाले में जाती दिखी है. इसलिए सभी दल इस विनिंग फॉर्म्युले को दोहराने के लिए बेकरार दिख रहे हैं.

ब्राह्मण वोटर्स के मामले में अबतक बीजेपी का पलड़ा भारी

ब्राह्मणों के मामले में बीजेपी का पलड़ा पिछले तीन बड़े चुनावों में भारी ही नजर आया है. सबसे पहले बात करते हैं लोकसभा चुनाव 2014 की. यह चुनाव 1990 के बाद की गठबंधन की राजनीति को बदलने वाला चुनाव साबित हुआ था. बीजेपी ने अकेले दम पर केंद्र में बहुमत का आंकड़ा छुआ था और इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी यूपी से मिली जीत ने. लोकनीति की स्टडी के मुताबिक 2014 में ब्राह्मणों के 72 फीसदी वोट बीजेपी को गए. कांग्रेस को 11 फीसदी और बीएसपी व एसपी को 5-5 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव में अकेले बीजेपी को यूपी में 71 सीटें मिलीं.

अब बात करते हैं 2017 के विधानसभा चुनावों की. बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से आगे बढ़ते हुए ही प्रदर्शन किया. ब्राह्मणों के 80 फीसदी वोट बीजेपी को मिले. बीजेपी को 312 सीटें मिलीं, जो पार्टी के लिए अभूतपूर्व थीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में तो बीजेपी दो कदम और आगे निकल गई. सीएसडीएस-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक बीजेपी+ को ब्राह्मणों के 82 फीसदी वोट मिले. ऐसा तब हुआ जब बीएसपी और एसपी एक साथ आई थीं और बीजेपी के सामने महागठबंधन की चुनौती थी. महागठबंधन को ब्राह्मण समुदाय के सिर्फ 6 फीसदी वोट मिले. इतने ही वोट कांग्रेस को भी मिले.

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सबको खारिज कर बीजेपी को चुनने वाले ब्राह्मण क्या 2022 में मन बदलेंगे? पी के पिछले तीन चुनावों का गणित बताता है कि ब्राह्मण समुदाय ने सबको छोड़कर एकतरफा बीजेपी का साथ दिया और 2014 से लेकर 2019 तक इस जुगलबंदी में मजबूती ही देखने को मिली है. ऐसे में इस बार यह ट्रेंड बदलेगा या नहीं, आने वाले वक्त में इसे देखना रोचक होगा.

सतीश मिश्रा का बड़ा दावा- ‘ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखना चाहते CM योगी आदित्यनाथ’

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