खींचतान में केंद्र का दरवाजा खटखटाने पर उठे सवाल, CM योगी हो रहे अंदरूनी राजनीति के शिकार?

ऋषि राज

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंत्री और अधिकारियों में खींचतान के बाद दिल्ली का दरवाजा खटखटाने के मायने पर राजनैतिक विश्लेषण.

राजनीति में जितना कहा जाता है उससे कहीं ज्यादा समझा जाता है और यूपी की सत्ता में काबिज बीजेपी के भीतर जारी सियासी उठापटक को नजरअंदाज करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है. जिस तरीके से एक-एक करके मंत्रियों की नाराजगी सामने आती जा रही है ऐसा लगता है कि कहीं ना कहीं कोई अंदरूनी खेल है जो लगातार सीएम योगी को उलझाए रखना चाहता है.

सीएम योगी ने जिस तरीके से सत्ता में वापसी की उसके बाद से ही उनको लेकर सोशल मीडिया पर हिंदुत्व की मुखर राजनीति करने वालों ने ये सीधे-सीधे स्वीकारा और प्रचारित किया की ‘देश’ ने अपना अगला पीएम तय कर लिया है!

ये तो सच है कि यूपी में योगी की दोबारा वापसी ने उनके प्रसिद्धी के ग्राफ में चार चांद लगा दिए और उनका कद किसी अज्ञय नेता सरीखे हो गया, लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में जो जितना ज्यादा मजबूत होता जाएगा उसके खिलाफ गोलबंदी राजनीतिक विरोधियों की मजबूत होती चली जाती है. यहां सीएम योगी के साथ ऐसा ही दिखता है कि विपक्ष से ज्यादा गोलबंदी उनको लेकर या यूं कहें कि उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए संभावित कोशिशें अब साफ साफ दिखने लगी हैं.

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बृजेश पाठक की सरकार में मजबूत एंट्री के बाद से ही संदेश साफ दिया गया कि मामला एक तरफा नहीं रहने वाला है और सरकार के 100 दिन के बाद जिस तरह से विवाद सामने आया वो इसी तरफ इशारा करता है कि यूपी के रास्ते दिल्ली जाना ‘हाईवे’ पर ‘माई वे’ नहीं हो सकता.

बृजेश पाठक ने अपने ही अपर मुख्य सचिव अमित मोहना प्रसाद को पत्र लिख उन्हें घेर लिया कि उनके सलाह के बिना और तबादला नीति का अनुपालन किये बिना ही स्वास्थ्य विभाग में तमाम तबादले कर डाले हैं. पत्र जिस तरह से सार्वजनिक हुआ वो भी सभी जानते हैं कि ये सब कुछ सामान्य नहीं था क्योंकि अगर शिकायत ही की जानी थी तो सीएम को एक फोन भी घुमाकर किया जा सकता था, लेकिन इसके लिए रास्ता मीडिया का चुना गया.

सिर्फ बृजेश पाठक ही नहीं ये सूची तो लंबी है. जितिन प्रसाद यूपी सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं और उनके ही ओएसडी अनिल कुमार पांडे को सीएम योगी ने दिल्ली के लिए चलता कर दिया. इसके साथ-साथ उनके खिलाफ विजलेंस की जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दे दिए. इसी विभाग के दूसरे 5 अधिकारी भी सस्पेंड कर दिए गए. ये बात भी साफ है कि बीजेपी में जितिन प्रसाद की एंट्री कहां से और कैसे हुई ऐसे में उनपर हाथ डालकर जहां ये बताने की कोशिश हुई कि गोरखपुर के रास्ते दिल्ली की सफर बिना किसी स्पीड ब्रेकर के ही हो सकत है. वहीं जितिन ने दिल्ली दरबार में पहुंच कर ये साफ कर दिया कि ये सब कुछ इतना आसान नहीं रहने वाला. क्योंकि जिस मामले को विभागीय कार्रवाई बताकर ठंडा किया जा सकता था उसे खूब घी तेल का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है.

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इन सबमें सबसे दिलचस्प मामला तो अब सामने आया है जलशक्ति विभाग के राज्यमंत्री दिनेश खटीक का. सीएम योगी को लेकर विपक्ष जिस तरह से जातिवादी होने का आरोप लगाता रहा ठीक वैसे ही आरोप उनकी सरकार में उन्हीं के मंत्री ने लगा दिए. यकीनन ये आरोप मंत्री ने अधिकारियों पर ही लगाए, लेकिन ये तो राजनीति में इंटर्नशिप करने वाला या यूं कहें कि झंडा उठाने वाला कार्यकर्ता भी बता देगा कि आरोप अधिकारी पर लगें या फिर मंत्री पर दांव पर चेहरा तो मुख्यमंत्री का ही लग रहा है.

जिस तरीके से खटीक ने योगी से मिलने से पहले दिल्ली दरबार में अपनी बात रखी वो ये इशारा तो साफ साफ है कि यूपी में सत्ता बिना दिल्ली के दखल के नहीं चलाई जा सकती. बार-बार यूपी सरकार के मामले जैसे दिल्ली लाए जा रहे हैं उससे ये साफ है कि योगी का रास्ता आगे के लिए आसान नहीं रहने वाला है. ये भी हो सकता है कि जिस दांव के तहत या जिस दिल्ली की गद्दी पर मजबूत दावेदारी बनाए रखने के लिए योगी अपने सख्त प्रशासक की छवि को मजबूत रखने की भरपूर कोशिश में लगे हों और बार-बार उन्हें ये संदेश दिया जा रहा हो कि फिलहाल सख्त प्रशासक की छवि वाली कुर्सी पर ऑल राइटस आर रिजर्व!

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