सपा विधायकों की क्रॉस वोटिंग से रायबरेली-अमेठी में कांग्रेस को लगा शॉक! जानें इनसाइड स्टोरी

कुमार अभिषेक

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UP Political News: राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के 7 विधायकों की क्रॉस वोटिंग और एक विधायक की अनुपस्थिति ने उत्तर प्रदेश के कई सियासी समीकरण बिगाड़ दिए हैं. सपा के नेतृत्व की अथॉरिटी को जबरदस्त झटका तो लगा है, लेकिन अगर किसी एक पार्टी को शॉक लगा है तो वह है कांग्रेस. आप जरूर यह सुनकर चौंक गए होंगे कि आखिर कांग्रेस पार्टी तो इस चुनाव में "ना तीन में थी ना तेरह" में तो सपा के विधायकों की क्रॉस वोटिंग से कांग्रेस को कैसे इतना बड़ा झटका लग सकता है. तो जान लीजिए इन सात क्रॉस वोटिंग में एक विधायक अमेठी के, दूसरे विधायक रायबरेली के और एक विधायक जो अनुपस्थित थीं, वह भी अमेठी की थीं.

सपा के अगर सभी मजबूत कंधे जो अमेठी और रायबरेली में पार्टी के झंडालम्बरदार हों और लोकसभा चुनाव के पहले उसका साथ छोड़ गए, तो कांग्रेस का क्या होगा? कैसे गांधी परिवार अपनी ये दोनों सीटें जीत पाएगा, यह बड़ा सवाल है?

अमेठी की राजनीति पर क्या होगा असर?

बता दें कि राकेश प्रताप सिंह अमेठी के गौरीगंज से विधायक हैं. वह समाजवादी पार्टी के मजबूत और दमदार नेता माने जाते रहे हैं. अचानक उनका सपा का दामन छोड़ने से पार्टी को नुकसान हो सकता है. वहीं, मनोज पांडे ऊंचाहार के मजबूत समाजवादी पार्टी नेता थे. सपा ने उन्हें विधानसभा में मुख्य सचेतक बनाया था, लेकिन अब उन्होंने भी पाला बदल लिया है. वहीं, कुम्हार जाति से आने वालीं अमेठी की महाराजी देवी जाने माने नेता गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं. ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में गायत्री प्रजापति का अच्छा रसूख रहा है. ऐसे में इन तीन नेताओं का सपा का हाथ छोड़ भाजपा के साथ खड़े हो जाने की वजह से कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में मुश्किलें हो सकती हैं.

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दरअसल, रायबरेली में कांग्रेस पार्टी ने ठाकुर और ब्राह्मण दोनों बिरादरियों को तरीके से अपने साथ जोड़ रखा था. रायबरेली में कांग्रेस अदिति सिंह और दिनेश प्रताप सिंह को भाजपा के हाथों खो चुकी है. 2017 से ही भाजपा ने यहां अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया था. पहले रायबरेली के सभी ठाकुर चेहरों को तोड़कर भाजपा ने अपने साथ मिला लिया था और अब मनोज पांडे जैसा दमदार ब्राह्मण चेहरा भी भाजपा के साथ खड़ा हो गया है. मनोज पांडे सिर्फ सपा के बड़े चेहरे नहीं थे, बल्कि उन्होंने सोनिया गांधी के चुनाव में भी ब्राह्मणों को साथ रखने में बड़ी भूमिका अदा की थी. यही वजह है कि उनके गृह प्रवेश में सोनिया गांधी खुद ऊंचाहार पहुंची थीं.

 

 

इस राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी में अंदर से हिला कर रख दिया है. सिर्फ ठाकुर और ब्राह्मण ही नहीं मौर्य और कुम्हार जैसे बिरादरी के नेता भी भाजपा के साथ खड़े हैं. ऊंचाहार से चुनाव लड़ने वाले भाजपा नेता अमरपाल मौर्य को भाजपा ने राज्यसभा, भेजा तो गायत्री प्रजापति को साधकर उनकी पत्नी महाराजी देवी को भी भाजपा के पाले में लगभग ला दिया है. अब इन सभी नेताओं के भाजपा के साथ खड़े हो जाने से कांग्रेस के लिए मुसीबत बढ़ गई है ।

कांग्रेस पहले से ही यहां धीरे-धीरे कमजोर हो चुकी थी. अमेठी से पिछला चुनाव राहुल गांधी हार चुके हैं. सोनिया गांधी भी रायबरेली छोड़कर राज्यसभा आ चुकी हैं. ऐसे में गांधी परिवार के लिए कोई भी मजबूत कंधा दिखाई नहीं दे रहा है. राजा संजय सिंह सरीखे नेता भी भाजपा में आ चुके हैं.

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कांग्रेस पार्टी के लिए समाजवादी पार्टी के  दमदार और रसूखदार विधायक ही बड़ी बैसाखी हुआ करते थे, जो चाहे राहुल गांधी हों या सोनिया गांधी दोनों के जीत में बड़ी भूमिका निभाते थे. समाजवादी पार्टी इन दोनों सीटों पर कांग्रेस पार्टी को बिना शर्त समर्थन देती रही है. अब जबकि एक-एक करके कांग्रेस और सपा के सभी मजबूत नेता भाजपा के साथ खड़े हो चुके हैं कांग्रेस पार्टी के पास अपने गढ़ की दोनों सीटों को जीतने की एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि इन सीटों को जीतने के लिए कोई भी मजबूत क्षत्रप दिखाई नहीं देता.

 

 

इस बार कांग्रेस पार्टी ने अमेठी और रायबरेली को एक बार फिर गांधी परिवार की सीट मानते हुए परिवार से ही किसी के लड़ने का ऐलान किया है. क्या राहुल और प्रियंका अमेठी और रायबरेली से लड़ेंगे, इस पर एक सवालिया निशान लगा हुआ है. लेकिन अगर परिवार यहां चुनाव लड़ने आता है तो कांग्रेस या सपा का वह कौन नेता होगा जो यहां गांधी परिवार के लिए दमदारी से खड़ा होगा? दरअसल, भाजपा ने लगभग सभी मजबूत कंधों का सफाया कर दिया है. ऐसे में यह चुनाव सपा के लिए जितना बड़ा झटका है, उससे कहीं ज्यादा गांधी परिवार के सियासी वजूद का भी है. माना जा रहा है कि कांग्रेस की जमीन को खिसकाने के लिए भाजपा ने यह पूरी व्यूहरचना रची. 

 

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