UP चुनाव: अयोध्या की वो घटना, जिसका हवाला देकर इस बार भी SP पर निशाना साध रही BJP

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उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या वो जगह बनी हुई है, जिसके इतिहास को राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से भुनाने की पुरजोर कोशिश में हैं. इसी क्रम में एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी 7 सितंबर को अयोध्या पहुंचे.

वहां ओवैसी ने कहा, ”अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ था, पूरी दुनिया ने इसे देखा. आज धर्मनिरपेक्ष दल इसका जिक्र करने से डर रहे हैं.”

ओवैसी ने समाजवादी पार्टी (एसपी) को लेकर कहा, ”कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं समाजवादी पार्टी से क्यों नहीं मिलता? मैं उन्हें अखिलेश (एसपी अध्यक्ष) से यह बात पूछने के लिए कहता हूं. अगर वह बात करने के लिए तैयार हैं, तो हम बात करेंगे, लेकिन अगर आप सोचते हैं कि आप मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा आप अपनी पार्टी के कुछ मुसलमानों के साथ करते हैं, तो इसके बजाए मैं मरना पसंद करूंगा.”

ओवैसी ने यहां जिस एसपी को निशाने पर लिया, उसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) यह कहकर घेरने की कोशिश में दिख रही है कि 1990 में जब यूपी में मुलायम सिंह यादव (एसपी के फाउंडर) की सरकार थी, तब अयोध्या में राम भक्तों पर गोलियां चली थीं. हाल ही में यूपी के सीएम और बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ ने भी इस मुद्दे को छेड़ा था. ऐसे में अयोध्या को लेकर एसपी पर हिंदू-मुस्लिम राजनीति के दोनों छोरों से वार हो रहा है.

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मगर आज हमको आपको उस घटना के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं, जिसका हवाला देकर बीजेपी लंबे समय से एसपी को ‘हिंदू विरोधी’ पार्टी ठहराने की कोशिश में दिखती रही है.

इस पूरे मामले को गहराई से समझने के लिए इतिहास की कुछ घटनाओं पर सिलसिलेवार तरीके से नजर दौड़ानी होगी क्योंकि मामला जब सियासत से जुड़ा है तो आरोप लगाने वाली बीजेपी की सियासत को भी समझना होगा.

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जब बीजेपी ने छेड़ा राम मंदिर निर्माण का अभियान

कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए बीजेपी ने जब वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दिया, तो सरकार की ओर से मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू किए जाने के फैसले ने पार्टी को असमंजस में डाल दिया. कुछ नेताओं की राय में यह हिंदू समाज को विभाजित करने का एक षड्यंत्र था. दूसरे कई नेताओं की राय थी कि पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कदमों की शुरुआत उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक जरूरी कदम थी.

ऐसे में बीजेपी और आरएसएस की शाखाओं में इस पर बहसें हुईं कि मंडल आयोग की रिपोर्ट का समर्थन किया जाए या नहीं. मगर इस मुद्दे पर एक खास रुख अपनाने की बजाए बीजेपी ने राजनीतिक बहस को दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश की. पार्टी ने धर्म का मुद्दा चुना और अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू करने का फैसला किया. इसी के तहत गुजरात के प्राचीन शहर सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक एक रथयात्रा निकालने का ऐलान किया गया. इस अभियान का नेतृत्व बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी कर रहे थे.

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25 सितंबर, 1990 से शुरू होकर पांच हफ्ते बाद आडवाणी की रथयात्रा की योजना अयोध्या पहुंचने की थी. इसी क्रम में उनका रथ आठ राज्यों से होकर करीब 6000 मील की दूरी तय करता. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से जुड़े लोग शहर-दर-शहर इसके स्वागत में जुट रहे थे.

आडवाणी की यह रथयात्रा वीपी सिंह सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हुई क्योंकि इस अभियान ने धार्मिक भावनाओं को उकसाने का खतरा पेश कर दिया, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. मगर सियासी समीकरणों को देखते हुए इसे रोकना भी सरकार के लिए आसान नहीं था.

आखिरकार, रथयात्रा दिल्ली पहुंच गई, जहां आडवाणी कई दिन तक रुके रहे और सरकार को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती देते रहे, लेकिन सरकार ने उस चुनौती को नजरअंदाज करना उचित समझा और यात्रा फिर शुरू हो गई. हालांकि अपने अंतिम मुकाम पर पहुंचने से एक हफ्ते पहले जब रथयात्रा बिहार से गुजर रही थी तो वहां इसे रोक दिया गया. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर आडवाणी को एहतियातन हिरासत में भी ले लिया गया.

जब आडवाणी बिहार सरकार की एक अतिथिशाला में बंद थे, तब हजारों की संख्या में कारसेवक पूरे देशभर से अयोध्या की तरफ कूच कर रहे थे. इसी बीच, अपने बिहारी समकक्ष की तरह ही बीजेपी के कट्टर विरोधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस सिलसिले में राज्य के बाहर से आने वाले लोगों की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया.

रामचंद्र गुहा की किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ के मुताबिक, करीब 150000 कारसेवकों को हिरासत में ले लिया गया लेकिन उससे आधे के करीब अयोध्या पहुंचने में कामयाब हो गए. अयोध्या में सुरक्षाबलों के बीस हजार जवान पहले से ही तैनात थे, जिनमें कुछ नियमित पुलिस के जवान थे जबकि दूसरे बीएसएफ जैसे अर्ध-सैनिक बलों से थे.

इस तरह बिगड़े हालात

30 अक्टूबर की सुबह कारसेवकों की एक भारी भीड़ सरयू नदी के पुल पर देखी गई, जो अयोध्या के पुराने शहर को नए शहर से अलग करती थी. कारसेवकों ने पुलिस का घेरा तोड़ डाला और मस्जिद की ओर तेजी से बढ़ चले. वहां उनका सामना बीएसएफ के दस्तों से हुआ. कुछ कारसेवक उनको भी चकमा देने में कामयाब हो गए और बाबरी मस्जिद तक पहुंच गए. उस भीड़ के हमले को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने पहले आंसू गैस और फिर बाद में गोलियों का इस्तेमाल किया. कारसेवकों को तंग गलियों में और मंदिर के परिसरों में खदेड़ा गया. उनमें से कुछ ने लाठियों और पत्थरों से मुकाबला किया. उत्तेजित स्थानीय लोगों ने भी कारसेवकों का समर्थन किया और उन्होंने घर की छतों से पुलिस पर देसी हथियारों और पत्थरों से हमला किया.

सुरक्षाबलों और कारसेवकों के बीच पूरे तीन दिनों तक लड़ाई चलती रही. आखिरकार इस लड़ाई में 20 से ज्यादा कारसेवक मारे गए.

जब मुलायम सिंह ने कहा- देश की एकता के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं

साल 2013 में आज तक को दिए एक इंटरव्यू में मुलायम सिंह ने कहा था कि देश की एकता के लिए उनकी सरकार की पुलिस को गोली चलानी पड़ी थीं.

”मैंने साफ कहा था कि ये मंदिर-मस्जिद का सवाल नहीं है, देश की एकता का सवाल है. देश की एकता के लिए हमारी सरकार की पुलिस को गोली चलानी पड़ी. मुझे अफसोस है कि लोगों की जानें गईं.”

मुलायम सिंह यादव, एसपी फाउंडर

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, साल 2017 में मुलायम ने अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर कहा, ”देश की एकता के लिए और भी मारना पड़ता तो सुरक्षा बल मारते.”

बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए अपने कदम को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा, ”बहुत से मुसलमानों ने यह कहते हुए हथियार उठा लिए थे कि अगर उनकी आस्था की जगह खत्म हो गई, तो देश में क्या रहेगा?”

मुलायम ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि अयोध्या में 56 लोग मारे गए. उन्होंने आगे कहा, ”मेरी उनसे बहस हुई थी. वास्तव में, 28 मारे गए थे. मुझे छह महीने बाद आंकड़े का पता चला और मैंने अपने तरीके से उनकी मदद की.”

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