राजा महेंद्र के पोते और इतिहासकारों से जानिए जिन्ना को ‘सांप’ बताने वाली चिट्ठी का सच

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से जुड़ा कोई जिक्र हो और उसमें मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र न हो, ऐसा हाल-फिलहाल देखा नहीं गया. कुछ ऐसा ही हुआ राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना की बात सामने आने पर.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया है. जब इस शिलान्यास कार्यक्रम का ऐलान हुआ था, तब से ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह से जुड़ी एक बात वायरल है, जो जिन्ना से जुड़ी हुई है.

दरअसल यह दावा किया जाने लगा कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1930 में महात्मा गांधी को जिन्ना के बारे में चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि, ‘जिन्ना जहरीला सांप है, गले मत लगाइए.’

हिंदू जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जिन्ना, इन तीन कीवर्ड्स ने ऐसा खेल मचाया कि चहुंओर इसी का जिक्र शुरू हो गया. यूपी तक की टीम ने इस मामले की तह तक पहुंचने के लिए तीन स्टेप फॉलो किए. पहला स्टेप इंटरनेट पर सर्च करने का. हमें इंटरनेट पर किसी भी प्रामाणिक वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जो जिन्ना के बारे में लिखी सूचना को पुष्ट करे. दूसरे स्टेप में हमने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के दो एक्सपर्ट्स प्रोफेसर से बात की. आइए जानते हैं कि दोनों प्रोफेसर्स ने इस कथित चिट्ठी के बारे में क्या कहा.

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एएमयू के इतिहाविद मानवेंद्र कुमार पुंढीर ने क्या कहा

हमने एएमयू के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर मानवेंद्र कुमार पुंढीर से सवाल किया कि क्या राजा महेंद्र ने जिन्ना के लिए ऐसी कोई चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह की आत्मकथा या उनपर मौजूद इतिहास के किसी स्रोत में ऐसा कोई रेफ्रेंश नहीं है, जिसमें जिन्ना को लेकर लिखे गए किसी खत का जिक्र हो. न जाने इस खत का जिक्र कहां से आ रहा है. उनके द्वारा खुद अपने बारे में लिखी गई चीजों में इस बात का जिक्र नहीं है कि उन्होंने जिन्ना पर कुछ लिखा हो.

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महेंद्र प्रताप सिंह लगातार देश से बाहर रहे और वहीं से आजादी का आंदोलन चलाया. जहां तक जिन्ना का सवाल है तो 1937 के बाद से ही जिन्ना का मुस्लिम लीग व पाकिस्तान के संदर्भ में जिक्र शुरू होता है. ऐसे में जो लोग इस चिट्ठी का जिक्र कर रहे हैं, अगर वह उनके पास है, तो उसे सामने लाएं. इससे इतिहास और समृद्ध ही होगा.

इतिहासविद पुंढीर बताते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अन्य लोगों के साथ मिलकर 1 दिसंबर 1915 को प्रोविजनल गवर्नमेंट ऑफ इंडिया इन एग्जाइल बनाई, वह भी अफगानिस्तान में. इसमें वह खुद प्रेसीडेंट बने और भोपाल वाले मौलाना बरकतुल्लाह प्रधानमंत्री बने. इन लोगों का मुख्य मकसद भारत की आजादी थी. उस समय तक गांधी का युग एक तरह से स्टार्ट नहीं माना जाता था. 1919 से पहले यह रिवॉल्यूशनरी काफी फेमस थे. बाद में राजा महेंद्र प्रताप गांधी की राजनीति से प्रभावित हुए लेकिन इसमें जिन्ना का कहीं कोई जिक्र नहीं आता. राजनीतिक क्रोनोलॉजी में भी दोनों का कोई साथ नहीं दिखता क्योंकि उस समय राजा महेंद्र प्रताप सिंह जापान, जर्मनी व दुनिया के अन्य हिस्से में घूम रहे थे.

मेरे हिसाब से राजा महेंद्र प्रताप सिंह पर ऐतिहासिक वर्क की काफी कमी है. शायद इसी का लोग फायदा उठा रहे हैं. कुछ भी बोल रहे हैं. ऐसे में अगर कोई ऐसी किसी लेटर का जिक्र किया जा रहा है, तो वह इसका साक्ष्य लेकर आएं. जहां तक महेंद्र प्रताप का सवाल है, तो वह काफी रिफाइन थे, तो सांप जैसे शब्दों का इस्तेमाल मेरी समझ से परे है. जो कह रहे हैं उन्हें साक्ष्य दिखाना चाहिए

एएमयू के इतिहाविद मानवेंद्र कुमार पुंढीर

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अब पढ़िए एएमयू के इतिहासविद प्रोफेसर सैयद अली नदीम रिजवी ने क्या कहा

ऐसा कुछ पब्लिक डोमेन में नहीं है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जिन्ना को लेकर कोई चिट्ठी लिखी थी कि नहीं. राजा महेंद्र प्रताप सिंह मोहम्मद एंग्लो ओरिएण्टल (एमएओ) कॉलेज के स्टूडेंट रहे और प्रोग्रेसिव ख्याल था. यहां से पढ़ने के बाद एमएओ कॉलेज के कुछ छात्रों के साथ मिलकर संघर्ष किया. उन्होंने अफगानिस्तान में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया इन एग्जाइल बनाई तो हिंदू और मुस्लिमों ने मिलकर एक हुकूमत बनाई. इससे साफ जाहिर होता है कि इनका रुझान किधर था.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह लेफ्ट माइंडेड थे. उसी समय उन्हें लेनिन ने बुलाया था और वह रूस भी गए थे. हम सभी को मालूम है कि इन्होंने तब जनसंघ के नेता और बाद में बीजेपी के नेता और देश के पीएम रहे वाजपेयी को हराया था. राजा महेंद्र प्रताप शुरू से एक लेफ्ट ओरिएंटेड, एंटी फासिस्ट, एंटी कोलिनियल रहे. उन्होंने जिन्ना पर लिखा या नहीं, इसे लेकर मैं निश्चित नहीं, लेकिन वह हिंदू और मुस्लिम, दोनों तरह की कम्युनल पॉलिटिक्स से खुद को दूर रखा.

एएमयू के इतिहासविद प्रोफेसर सैयद अली नदीम रिजवी

क्या राजा महेंद्र प्रताप सिंह को AMU ने सम्मान नहीं दिया: प्रोफेसर रिजवी कहते हैं कि आप कभी एएमयू तशरीफ लाइए तो देखिए कि यहां की इमारतों पर सारे डोनर्स के नाम लिखे हैं. राजा महेंद्र प्रताप सिंह से जुड़े विवाद के सामने आने पर पता चला कि उन्होंने जमीन लीज पर दी थी. उनके नाम से हॉस्टल भी यहां बना है और लाइब्रेरी में उनकी तस्वीर भी है, जिसपर उनका जिक्र है. आज जब उनके नाम पर यूनिवर्सिटी का उद्घाटन होने जा रहा है, तो यह नहीं भूला जाना चाहिए कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह एमएओ के छात्र रहे, हमेशा यहां के लॉयल रहे और जनसंघ के खिलाफ उनकी लड़ाई थी.

अब जानिए कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पोते राजा चरत प्रताप सिंह ने क्या कहा

राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जिन्ना के संदर्भ में ऐसी कोई चिट्ठी नहीं थी. उनका जिन्ना से ऐसा कोई संपर्क नहीं था और जहां तक सांप शब्द का जिक्र है, तो मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि ऐसे शब्द मेरे दादा जी जीवन में कभी अपने दुश्मनों के लिए भी इस्तेमाल नहीं किए होंगे.

तीन स्टेप में इस मामले को वेरिफाई करने के बाद भी ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले, जो राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जिन्ना के बारे में लिखी गई किसी चिट्ठी की पुष्टि करें. इसके बावजूद यूपी तक ऐसा पूरे दावे के साथ नहीं कह सकता कि ऐसी कोई चिट्ठी नहीं है.

संक्षेप में जान लीजिए कि राजा महेंद्र सिंह थे कौन

किताब Sites of Asian Interaction: Ideas, Networks and Mobility के मुताबिक राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म एक दिसंबर 1866 को अल-मुरसान (हाथरस का एक स्टेट) में राजा घनश्याम सिंह के घर हुआ था. वह राजा के तीसरे बेटे थे. उनकी शादी जिंद के एक शाही परिवार में हुई थी. वह 1906 में कलक्ता में कांग्रेस के संपर्क में आए. वहां लौटकर उन्होंने खुद को स्वदेशी घोषित कर लिया और अपने विदेशी कपड़े जलाने लगे. 1907 में वह अपनी पत्नी को लेकर यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और जापान की यात्रा पर गए. पर इसके बाद पत्नी उनके साथ विदेश नहीं गई और उनका जीवन एक ट्रैवलिंग रिवॉन्लूशनरी के रूप में शुरू हुआ. वह गदर पार्टी के क्रांतिकारियों कृष्णवर्मा, हरदयाल और वीरेंद्र नाथ चटोपाध्याय के संपर्क में भी आए.

एक दिसंबर 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह, बरकतुल्लाह और अब्दुल्ला ने मिलकर अफगानिस्तान में भारत की प्रोविजनल सरकार बनाई. प्रताप उसके आजीवन (जबतक सरकार कांग्रेस के हवाले नहीं हो जाती) राष्ट्रपति बने. बरकतुल्लाह पीएम और अब्दुला गृह मंत्री.

2014 में शुरू हुआ था विवाद: राजा महेंद्र प्रताप का जन्मदिन मनाने को लेकर वर्ष 2014 में बीजेपी और एएमयू के बीच रस्साकशी हुई थी. तब बीजेपी का कहना था कि AMU में सर सैय्यद अहमद खान का जन्मदिन 17 अक्टूबर को सर सैय्यद डे के रूप में मनाया जाता है तो ज़मीन दान देने वाले राजा महेंद्र प्रताप का जन्म दिन एक दिसंबर को क्यों नहीं मनाया जाता. तब मामले का जैसे-तैसे निपटारा हुआ था कि अब एक बार फिर राजा महेंद्र प्रताप सिंह और जिन्ना को लेकर सरगर्मी शुरू हो गई है.

अब चलते-चलते राजा महेंद्र प्रताप सिंह और वाजपेयी के बीच हुए चुनाव का किस्सा भी जान लीजिए
लोकसभा की साइट पर दूसरे लोकसभा के सदस्यों की बायोप्रोफाइल दी हुई है. इसके मुताबिक महेंद्र प्रताप सिंह 1906 से 1952 तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. मथुरा से 1957 के चुनाव में उन्हें जीत मिली थी. इस चुनाव में वह निर्दलीय थे और उनके खिलाफ कांग्रेस के दिगंबर सिंह और जनसंघ (जिससे आज की बीजेपी बनी है) के अटल बिहारी वाजपेयी थे. इस चुनाव में कुल इलेक्टोरेट 4 लाख 23 हजार 452 थे. राजा महेंद्र प्रताप को 95002, कांग्रेस के दिगंबर को 69209 और वाजपेयी को 2362 इलेक्टोरल मिले थे. यानी वाजपेयी और दिगंबर को हराकर राजा महेंद्र ने यह चुनाव जीत लिया था.

इनपुट: अलीगढ़ से शिवम सारस्वत

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