नीतीश के ‘मिशन दिल्ली’ में अखिलेश-मुलायम की एंट्री!, दिल्ली में मुलाकात, ये हुई बात

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बिहार की राजनीति में बीजेपी का साथ छोड़ राजद से गठबंधन जोड़कर फिर सीएम बनने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नजर अब दिल्ली पर है. आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार ने दिल्ली में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव (mulayam singh yadav), अध्यक्ष अखिलेश यादव, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और वामपंथी दलों समेत विपक्ष के कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात की. बिहार में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद जेडीयू नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति में मोदी के अल्टरनेटिव के रूप में पेश कर रही है. हालांकि नीतीश का कहना है कि न तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं और न ही इसके लिए इच्छुक हैं. नीतीश भले ही इस बात से इनकार करते हों पर आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हो रही तैयारियां कहीं न कहीं इस बात की तरफ ही इशारा कर रही हैं.

सवाल ये उठता है कि नीतीश और अखिलेश (Akhilesh yadav) की ये मुलाकात यूपी के लिए क्या मायने रखती है. राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि बिहार की तरह यूपी में भी ओबीसी राजनीति की गोलबंदी की कोशिश हो सकती है. हालांकि ओबीसी वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा अभी बीजेपी के साथ है, लेकिन नीतीश और अखिलेश की जुगलबंदी 2024 के लिए यूपी में बीजेपी के इस वोट बैंक में सेंध की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.

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मजबूत विपक्ष की तैयारी में नीतीश

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाता तोड़ने के बाद नीतीश पहली बार सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहुंचे. नीतीश ने सोमवार को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जनता दल (सेक्युलर) के प्रमुख एचडी. कुमारस्वामी से और मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत वाम दलों के प्रमुखों से मुलाकात की. नीतीश कुमार ने कहा कि हमारा पूरा ध्यान सभी वाम दलों, क्षेत्रीय दलों, कांग्रेस को एकजुट करने पर है. हम सभी के साथ आने के बड़े मायने होंगे.

विपक्षी दल का नेता बन सकते हैं नीतीश?

दिल्ली में विपक्षी दल, वाम दल और क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मिलने के पीछे का मकसद तो नीतीश कुमार बता ही चुके हैं. ये भी माना जा रहा है कि नीतीश विपक्षी दल का नेता हो सकते हैं. विपक्ष दल के पीएम चेहरे के रूप में नीतीश की चर्चा शुरू हो गई है. ये चर्चा कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले जब इन्होंने बिहार में बीजेपी से नाता तोड़कर राजद से दास्ती की और फिर सरकार बना ली तो इसे नीतीश के राजनैतिक चमत्कार के रूप में देखा जाने लगा. इसके साथ ही जेडीयू नीतीश को पीएम मोदी के अल्टरनेटिव के तौर पर पेश करने लगी.

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उनकी पार्टी का मानना है कि इस समय वह विपक्षी नेताओं में प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य दावेदार हैं क्योंकि उनके पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव भी है और उनकी छवि भी साफ सुथरी है. माना जा रहा है कि उस वक्त नीतीश को इस रूप में पेश करने की कोशिश हुई और अब तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.

पीएम के सवाल पर नीतीश बोले- ये गलत है

प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षाओं को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘यह गलत है. मैं न तो उस पद का दावेदार हूं और न ही इसको लेकर इच्छुक हूं.’’ सीताराम येचुरी ने कहा-‘कुमार की विपक्षी खेमे में वापसी और भाजपा के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा बनने की उनकी इच्छा भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव है. हमारी पहली कोशिश विपक्षी दलों को एकजुट करने की है न कि प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार का चयन करने की. जब समय आएगा, हम प्रधानमंत्री पद का दावेदार चुनेंगे और बताएंगे.’

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कांग्रेस और वामदलों को लेकर मजबूत विपक्ष की पहल में पेंच!

नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा के खिलाफ बनने वाले किसी भी विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और वामपंथी दलों को होना जरूरी है. हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और आम आदमी पार्टी इससे पूरी तरह सहमत नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में जद (यू) ने सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए नीतीश कुमार को अधिकृत किया है.

(इनपुट: भाषा)

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