सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में किया आदेश 7 नियम 11 का जिक्र, जानिए कहता है ये

संजय शर्मा

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ज्ञानवापी मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने एक सीमा रेखा खींच दी है. कोर्ट ने ये तय कर दिया है कि इस मामले में मंदिर के पैरोकारों की ये याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं वो भी 1991 के उपासना स्थल कानून की रोशनी में. अब ये वाराणसी की जिला अदालत तय करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वाराणसी के जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह मेरिट के आधार पर मामले को आगे बढ़ाने से पहले सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7, नियम 11 के तहत दायर ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे की स्वीकार्यता पर फैसला करें. एक ओर 1991 का उपासना स्थल कानून है और दूसरी ओर है सीपीसी का ऑर्डर 7 नियम 11.

उपासना स्थल कानून ये कहता है कि ऐसे किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप में 15 अगस्त 1947 के बाद संपरिवर्तन हुआ है. ऐसे में इसपर फाइल किया गया कोई वाद, अपील या कार्यवाही उपशमित नहीं होगी. यानी ऐसे प्रत्येक वाद, अपील या कार्यवाही का निपटारा उपधारा (1) के उपबंधों के अनुसार किया जाएगा. एक्ट में ये भी कहा गया है कि इस अधिनियम की कोई भी बात उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि-बाबारी मस्जिद के रूप में लागू नहीं होगी. यानी 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल का जो स्वरूप है वो बना रहेगा. उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है.

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सीपीसी (सिविल प्रक्रिया संहिता) का ऑर्डर 7 नियम 11 ये कहता है कि जबसे ये एक्ट लागू हुआ है तब से ऐसा कोई भी वाद अदालत में जा ही नहीं सकता है. ये ऑर्डर 7 नियम 11 निषिद्ध करता है ऐसे वाद को अदालत तक जाने में. ज्ञानवापी मामले में अब वाराणसी की जिला अदालत ये तय करेगी कि उपासना स्थल के दायरे में ये वाद आता है या नहीं आता है.

न्यायलय की कार्यवाही दो कानूनों से चलती है

किसी भी न्यायालय के समक्ष न्यायालय की कार्यवाही दो प्रक्रियात्मक कानूनों के अनुसार चलती है जो सभी मामलों को नियंत्रित करती है. पहला सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (सीपीसी) और दूसरा आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी). प्रक्रियात्मक कानूनों में ऐसे नियम होते हैं जिनके अनुसार किसी न्यायालय को उसके समक्ष आने वाले किसी भी दीवानी या आपराधिक मामले की सुनवाई करनी चाहिए.

आदेश 7, सीपीसी का नियम 11 एक ऐसा नियम है जिसे ‘वादों की अस्वीकृति पर कानून’ कहा जाता है. सीधे शब्दों में कहें तो, गुण-दोष के आधार पर मामले की सुनवाई करने से पहले न्यायालय को यह विचार करना आवश्यक है कि क्या वादपत्र में मांगी गई राहत (जिस पक्ष ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है वह क्या मांग रहा है) को भी न्यायालय द्वारा प्रदान किया जा सकता है. यदि न्यायालय को लगता है कि उनके द्वारा मांगी गई राहत में से कोई भी राहत नहीं दी जा सकती है, तो वाद को सुनवाई से पहले ही अस्वीकार कर दिया जाता है.

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आज सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद के पैरोकारों की दलील थी कि 1991 के उपासना कानून के तहत हिंदू याचिकार्ताओं की याचिकाएं सुनने योग्य नहीं है और इसे खरिज कर देना चाहिए. हिंदू पक्षकारों ने दलील कि कहीं से ये बात ये मामला उपासना स्थाल कानून के तहत नहीं आता है. क्योंकि यहां पिछले सदी के आखिरी दशक तक पूजा होती रही थी और अभी भी साल में एक बार उसी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा होती है.

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