वाराणसी: चायवाले की बच्ची की जिंदगी बचाने में बीएचयू अस्पताल ने खर्च किए 60 लाख रुपये
सरकारी अस्पतालों में तमाम दिक्कतों, संसाधन की कमी और जगह के अभाव के बावजूद भी आज भी डॉक्टरों को ही भगवान के बाद दूसरा मसीहा…
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सरकारी अस्पतालों में तमाम दिक्कतों, संसाधन की कमी और जगह के अभाव के बावजूद भी आज भी डॉक्टरों को ही भगवान के बाद दूसरा मसीहा माना जाता है और इसके पीछे समय-समय पर कई ऐसी नजीर समाज में पेश होती है, जो इस कथन को सिद्ध साबित करती है.
ऐसा ही कुछ किया है वाराणसी के BHU ट्रामा सेंटर के चिकित्सकों ने भी, जहां बिहार के एक गरीब चायवाले की 10 साल की बच्ची का डॉक्टर पीछले 547 दिनों से इलाज कर रहे हैंस, वे भी निशुल्क और तो और जिस मासूम बच्ची को बचाने में 60 लाख रुपये भी खर्च हो चुके हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि बच्ची की हालत में अब सुधार हो रहा है और उम्मीद है कि मौत के मुंह से लौटी बच्ची एक महीने बाद ठीक भी हो जाएगी.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित ट्रॉमा सेन्टर में 28 फरवरी 2022, को एक बच्ची प्रिया को भर्ती किया गया था. बिहार के रोहतास जिले के करगहर की रहने वाली बच्ची प्रिया 8 वर्ष की उम्र में स्कूल में गिर गई थी. जिससे उसकी सर्वाईकल स्पाइन में गंभीर चोट आई थी और रक्तस्राव हुआ था. शुरुआती इलाज में उसे पास के क्लिनिक में टांके लगाए गए. इसके बाद भी बच्ची की हालत में सुधार देखने को नहीं मिला था. उसकी कमजोरी बढ़ती चली गई और चलने-फिरने में दिक्कत आने लगी.
बिहार स्थित सासाराम के अस्पताल में मरीज का सीटी-स्कैन और एमआरआई करने के पश्चात चिकित्सकों ने ऑपरेशन का सुझाव दिया. इसके बाद मरीज को 28 फरवरी, 2022 को ट्रॉमा सेंटर, बीएचयू में लाया गया था. बच्ची को न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. कुलवंत की निगरानी में भर्ती किया गया.
अप्रैल 2022 में ट्रॉमा सेन्टर स्थित न्यूरो ओटी में बच्ची का ऑपरेशन किया गया. जिसके बाद उसे गहन चिकित्सा इकाई यानी ICU में स्थानांतरित कर दिया गया और वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखा गया. सर्जरी के बाद यह बच्ची लगभग 8 महीने से वेंटीलेटर सपोर्ट पर रही और कोई गतिविधि नहीं कर पा रही थी,. लेकिन चिकित्सकों की मेहनत, बेहतरीन उपचार और देखभाल के चलते बच्ची की हालत में काफी सुधार हुआ है और अब उसे 1-2 घंटे के लिए रुक-रुक कर ही वेंटीलेटर सहायता की आवश्यकता होती है.
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एनेस्थीसिया विभाग की प्रो. कविता ने बताया कि बच्ची न सिर्फ अपने माता पिता से संवाद कर पा रही है, बल्कि खाना भी खा रही है और व्हील चेयर की सहायता से गतिविधि भी कर पा रही है. उन्होंने बताया कि यह एक दुर्लभ मामला है, जिसमें मरीज की इच्छाशक्ति, चिकित्सकीय देखभाल और इलाज से आश्चर्यजनक रूप से बच्ची की हालत में सुधार देखने को मिला है.
वहीं चाय विक्रेता मुन्ना बच्ची के इलाज से काफी खुश है. मुन्ना के मुताबिक, वह डेढ साल से BHU के ट्रामा सेंटर में अपनी बच्ची का इलाज करा रहे हैं, लेकिन कभी भी उन्हे दिक्कत नहीं आई. डॉक्टरों के इलाज के साथ ही उनकी बच्ची प्रिया को प्यार-दुलार भी अस्पताल से मिलता है. पैसे के अभाव के बावजूद कभी भी इलाज रूका नहीं.
वहीं, BHU ट्रामा सेंटर प्रभारी प्रो. सौरभ सिंह की मानें तो बेड, जांच, और इलाज को मिलाकर वेंटिलेटर पर रहने वाले मरीज के पीछे प्रति दिन का खर्च औसतन 10 हजार रुपये आता है. प्रिया 18 महीने यानी 547 दिन वेंटीलेटर पर रही है. इस लिहाज से 55 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, तो वहीं लगभग 6 लाख रुपए बच्ची प्रिया के माता-पिता और परिजनों के रहने और खानपान में भी खर्च हुए हैं.
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