काशी में है एक ऐसा मंदिर, जहां भगवान शिव और उनके ‘साले’ की एक साथ होती है पूजा
Sarangnath Temple Story: आज यानी 4 जुलाई से भगवान शिव के प्रिय सावन महीने की शुरुआत हो गई है. ऐसे में जब सावन की शुरुआत…
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Sarangnath Temple Story: आज यानी 4 जुलाई से भगवान शिव के प्रिय सावन महीने की शुरुआत हो गई है. ऐसे में जब सावन की शुरुआत हो गई है तो आज हम आपको उस शिव मंदिर की रोचक कहानी बताएंगे, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. आपको बता दें कि काशी में अनेकों रंग और ढेरों कहानियां हैं. यहां ईश्वर से जुड़ी हुई कई ऐसी कथाएं हैं, जिनके बारे में सुनकर लोग न सिर्फ आश्चर्यचकित रह जाते हैं, बल्कि उनका ईश्वर के प्रति विश्वास और भी बढ़ जाता है. ऐसी ही एक कहानी वाराणसी में बसे सारंगनाथ मंदिर की है, जहां भगवान शिव अपने साले (सती के भाई) सारंग ऋषि के साथ मंदिर में निवास करते हैं.
सारंगनाथ वो मंदिर है जहां एक ही अरघे में आपको दो शिवलिंग मिल जाएंगे. आपको दुनिया के किसी और कोने में एक ही अरघे में दो शिवलिंग नहीं मिलेंगे. माना जाता है कि ये मंदिर त्रेता युग से है और स्वयंभू है, इसे स्थापित नहीं किया गया. जिस जगह ये मंदिर है, उस जगह को कहते हैं ‘सारनाथ’.
जानिए क्या है ‘असली’ कहानी
मंदिर के पुजारी की मानें, तो ये कहानी प्रचलित है कि सती के भाई सांरग ऋषि को भगवान शिव से वरदान मिला था, जिसके चलते उनको महादेव के साथ ही पूजा जाता है. इस कहानी के पीछे कई तथ्य बताए जाते हैं, लेकिन उनमें से जो सबसे प्रचलित कहानी है वो ये है कि सारंग ने ऋषि ने अपनी बहन सती की शादी महादेव से होने का विरोध किया था. हालांकि वो बाद में वो मान गए, लोकिन उन्होंने एक महल बनवाने की चेष्ठा की थी, जहां भगवान शंकर और उनकी बहन निवास करें.
शिव ने सारंग ऋषि को दिया था ये वरदान
मान्यता है कि जब वो अपने मन की बात महादेव से कहने वाले थे, उससे पहले ही उन्हें सपने में भोलेनाथ की नगरी ‘काशी’ दिखी. इस स्वपन के बाद ही सारंग ऋषि को अपनी भूल का एहसास हुआ और वो बाबा विश्वनाथ की तपस्या करने लगे. भोलनाथ उनकी तपस्या से इतने खुश हुए कि उन्होंने सारंग ऋषि को अपने साथ ही विराजमान होने का वरदान दिया. कहा जाता है कि सारनाथ जगह का नाम भी इसी तरह पड़ा कि जहां पहले ‘सार’ (शिव) हैं और साथ में ‘नाथ’.
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