प्रयागराज के इस अस्पताल में दूर किया जाता है मोबाइल फोन का ‘नशा’, जानें कैसे करते हैं काम

आनंद राज

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उत्तर प्रदेश ही नहीं देशभर के माता-पिता चिंतित हैं कि अपने बच्चों को किस तरह इस मोबाइल फोन की आदतों से छुटकारा दिला सके. प्रयागराज के मोती लाल नेहरू मंडलीय हॉस्पिटल में बनाए गए मन कमरे में बच्चे ही नहीं बल्कि ऐसे बड़े लोगों की भी लत छुड़ाई जाती है, जो मोबाइल फोन के आदी हो गए हैं. साल 2019 से ही प्रयागराज का यह हॉस्पिटल मोबाइल फोन लत छुड़ाने पर काम कर रहा है. अब तक काफी लोगों के व्यवहार में यहां सुधार किया जा चुका है. डॉक्टरों के मुताबिक मोबाइल की लत को लेकर परेशान लोग हमारे पास आते हैं. डॉक्टर उनकी मन की बात सुनते हैं. उसके बाद इस पर काम शुरू करते हैं. इस टेक्निक से उन्हें मोबाइल की लत छुड़ाने में काफी सफलता मिली है.

अपने तरह का यूपी का पहला हॉस्पिटल

आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में मोबाइल फोन हर आदमी की जरूरतों में शामिल है. जब यह मोबाइल फोन लत में बदल जाता है, तो परिवार के बड़े इस बात को लेकर चिंतित हो जाते हैं. घर के बच्चे मोबाइल फोन में गेम खेलने के आदी हो रहे हैं, ये चिंता कमोबेश हर परिवार की है. पैरेंट्स की लाख कोशिश के बावजूद बच्चे मोबाइल फोन में गेम खेलने के लत छोड़ नहीं पाते. इन सब बातों का ख्याल रखते हुए प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय हॉस्पिटल में 2019 में ‘मन कक्ष’ नाम से एक सेंटर की शुरुआत की गई. यह सेंटर मोबाइल के एडिक्शन को दूर करने वाला अपने तरह का यूपी का पहला सेंटर था.

कोविड-19 के दौरान मोबाइल फोन की लत लोगों की और बढ़ गई. लॉकडाउन के दौरान बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए. उस समय खाली वक्त में बच्चों ने मोबाइल फोन को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर लिया.

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मन की बात सुन इलाज का काम होता है शुरू

प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू हॉस्पिटल में बनाए गए इस सेंटर को अब 3 साल से अधिक समय हो गया है. अब तक काफी संख्या में लोग डॉक्टर से मिलकर मोबाइल की लत छुड़ाने को लेकर पूछताछ कर चुके हैं. डॉक्टर ईशान्य राज और डॉ राकेश पासवान हॉस्पिटल में आने वाले हर मरीज से प्रॉपर उसकी जानकारी लेते हैं. ये दोनों डॉक्टर जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रयास की टीम में शामिल हैं.

डॉ राकेश कुमार पासवान, मनोचिकित्सक परामर्शदाता, जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रयागराज के मुताबिक इसमें मोबाइल से जुड़ी हुई विभिन्न प्रकार की समस्याओं का इलाज किया जाता है. उनके मुताबिक, ‘लोगों में गेमिंग और सोशल मीडिया एडिक्शन ज्यादा रहता है. हम लोग यहां पर साइकोथेरेपी के माध्यम से परिवार की काउंसिलिंग के माध्यम से समझा-बुझाकर दूर करने का प्रयास करते हैं और साथ ही साथ कभी-कभी बीमारी की स्थिति बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तो हम लोग दवा भी देते हैं.’

पब्जी के गेम के साथ कई गेम के लती बढ़े

हॉस्पिटल में बनाए गए मन कक्ष में मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए बहुत से लोग आते हैं. इनमें सबसे ज्यादा छोटे बच्चे हैं.18 साल के उम्र वाले किशोर पब्जी गेम के साथ कई नए मोबाइल गेम आ गए हैं. ऐसे ही गेम्स का लती एक छोटा बच्चा भी अपनी मां के साथ हॉस्पिटल आया तो उसकी आदत में काफी सुधार आया है. इसी तरह एक युवक पब्जी गेम का लती था, जिसमें इलाज के बाद काफी सुधार आया है.

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डॉक्टर ईशान्य राज के मुताबिक इससे 60 फीसदी मामलों में सुधार आया है. 20 फीसदी ऐसे मामले हैं, जिनमें कुछ ड्रॉप आउट हुए हैं, क्योंकि बच्चा बहुत जिद्दी होता है तो माता-पिता की बातें नहीं मानते और हॉस्पिटल आना नहीं चाहते. ऐसे केसों को यहां ऑनलाइन भी देखे जाने की सुविधा है.

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