प्रयागराज: अपने सपनों को छोड़ ‘गली स्कूल’ में शिक्षा की अलख जगा रहे विवेक, प्रेरक है कहानी

आनंद राज

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प्रयागराज में एक ऐसा गली स्कूल है, जहां पर झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में रहने वाले बच्चे पढ़ाई करते हैं. इस गली स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता कबाड़ बीनने या मजदूरी का काम करते हैं. आर्थिक तंगी के चलते इन बस्तियों में रहने वाले बच्चे स्कूल जा नहीं पाते, लेकिन प्रयागराज के कीडगंज इलाके में बने इस गली स्कूल में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले सारे बच्चों के सपने पूरे करने के काम किया जाता है. इन बच्चों के सपनों विवेक दुबे नामक शख्स पिछले कई सालों से रंग भर रहे हैं, जिन्होंने अपने सपनों को बीच में छोड़कर अब झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों की जिंदगी को संवारने का बीड़ा उठाया है.

विवेक मूल रूप से जौनपुर जिले के रहने वाले हैं. इनके पिता एक किसान हैं और खेत से उगने वाले अनाज से उनके पूरे परिवार का खर्चा चलता है. विवेक के एक भाई का देहांत बहुत पहले हो गया था. विवेक के पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपनी बेटे को प्रयागराज भेजा दिया.

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पहले तो सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन कुछ दिन बाद विवेक का रुख सड़क किनारे छोटे बच्चों के लिए काम करने के लिए बदल गया. झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में रहने वाले बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए विवेक ने अपनी शिक्षा को दांव पर लगा दिया. इसके बाद उन्होंने प्रयागराज के कीडगंज इलाके के पुराने पुल से लेकर नए पुल तक सभी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों का पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. इसके लिए विवेक ने गली में एक छोटा स्कूल भी खोल दिया, ताकि बस्तियों में रहने वाले बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके.

यही नहीं विवेक मलिन बस्ती लिखे जाने और बोलने पर भी ऐतराज जताते हैं और कहते हैं इसे झुग्गी झोपड़ी बस्ती के नाम से पुकारा जाए. इसलिए उन्होंने इस गली स्कूल के पास की बस्ती का नाम कोईलहा परिवार रख दिया है.

कबाड़ से बनाया बच्चों ने खुद सामान

200 से ज्यादा बच्चे इस गली के स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. यही नहीं इन बच्चों ने तकनीकी रूप से भी अपने आप को मजबूत कर लिया है. गली के इस स्कूल में 12 ऐसे नन्हें ‘वैज्ञानिक’ हैं, जिन्होंने कबाड़ के सामान से कूलर, टेबल फैन, गोबरगैस प्लांट, पेरिस्कोप, सब्जी कटर जैसी रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले सामानों को बनाया है.

इसी झोपड़पट्टी में रहने वाले बादल ने अंधेरे में पढ़ने के लिए एक सोलर लाइट बनाई है. सागर ने अपने इलेक्ट्रिक पंखा, समीर ने इलेक्ट्रिक कूलर, तो शालू ने वैक्यूम क्लीनर बनाया है. खास बात यह है कि इन सब चीजों को कबाड़ के सामान से इकट्ठा करके बनाया गया है.

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विवेक दुबे संसाधनों की कमी के कारण बच्चों की कई जरूरतें पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए खुद ही हर उम्र के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने गली के स्कूल में बच्चों को तैयार करते हैं, जो अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं. तकरीबन 270 बच्चे नियमित रूप से इस गली स्कूल में पढ़ते हैं.

आपको बता दें कि विवेक द्वारा पढ़ाए गए कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो 12वीं पास कर गए हैं और सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई कर रहे हैं.

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