मिशन 'मनोरमा' में जुटीं DM नेहा शर्मा, गोंडा की ऐतिहासिक नदी को बचाने के लिए संभाली कमान, उठाए जा रहे ये कदम

अंचल श्रीवास्तव

गोंडा जिले में मनोरमा नदी के पुनर्जीवन की पहल शुरू की गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जिलाधिकारी नेहा शर्मा के निर्देशों में नदी की सफाई, गाद हटाने और वृक्षारोपण के साथ इसे फिर से जीवनदान देने का कार्य किया जा रहा है. यह कदम क्षेत्र की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है.

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UP News: संत रहीमदास के प्रसिद्ध दोहे 'रहिमन चुप हो बैठिए, देखि दिनन के फेर, जब निकन दिन आइ हैं, तो बनत न लगिहैं देर' की तर्ज पर अब अयोध्या से सटे गोंडा जिले में 115 किलोमीटर लंबी पवित्र पौराणिक मनोरमा नदी का उद्धार होने जा रहा है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक तरफ विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की प्राचीन सांस्कृतिक पहचान और प्राकृतिक धरोहरों को पुनर्जीवित करने के लिए भी संकल्पित होकर काम कर रही है. गोंडा जिला इसी संकल्प का एक बड़ा नमूना बनने जा रहा है. यहां मुख्यमंत्री के निर्देशों पर जिला प्रशासन ने मनोरमा नदी के पुनर्जीवन की एक ऐतिहासिक और जनभागीदारी आधारित पहल शुरू की है. 

अस्तित्व खो चुकी मनोरमा नदी का पुनरुद्धार क्यों जरूरी?

दरअसल, मनोरमा नदी का अस्तित्व बीते वर्षों में लगभग समाप्त हो गया था. गाद, अतिक्रमण और जलस्रोतों के सूख जाने से इसका जल बहाव बाधित हो गया था, जिससे यह नदी एक गंदे नाले के रूप में दिखती थी. मनोरमा नदी का पुनर्जीवन न केवल जल संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि यह जनपद की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक पहचान को फिर से स्थापित करने का माध्यम भी बनेगा.

जिलाधिकारी नेहा शर्मा की अगुवाई में बड़ा कदम

गोंडा जनपद की सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान रही मनोरमा नदी अब एक बार फिर जीवनदायिनी बनने जा रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के क्रम में, जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने नदी के पुनर्जीवन की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. इसके तहत, नदी की सफाई, गाद हटाने, वृक्षारोपण और जनसहभागिता के माध्यम से नदी को फिर से बहाल करने के लिए ठोस कार्रवाई की जा रही है. 

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जिलाधिकारी ने मनोरमा सरोवर से निकलने वाली मनोरमा नदी के पूरे प्रवाह पथ का स्वयं स्थल निरीक्षण किया और संबंधित विभागों को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए. निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने कहा, "मनोरमा नदी केवल जलस्रोत नहीं, हमारी सांस्कृतिक विरासत है. इसका पुनर्जीवन जनपदवासियों के लिए एक गौरव का विषय होगा." यह पहल जनपद में एक समग्र पर्यावरणीय और सामाजिक पुनर्जागरण की शुरुआत है. 

वृक्षारोपण, गाद सफाई और जनभागीदारी पर जोर

जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने निर्देश दिए हैं कि मनोरमा नदी के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण की योजना बनाई जाए, जिससे नदी तट पर हरियाली बढ़े और जैव विविधता का संरक्षण हो. इसके लिए पीपल, नीम, पाकड़ जैसी देशी प्रजातियों के पौधों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है और वन विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी गई है. 

जिलाधिकारी ने पोकलैंड और जेसीबी मशीनों से नदी की गाद और कचरे की सफाई का कार्य तत्काल शुरू करने के निर्देश दिए. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गोंडा-बलरामपुर रोड से लेकर ताड़ी लाल गांव तक नदी के प्रवाह को पूर्ण रूप से साफ किया जाए और जलधारा को पुनः प्रवाहित किया जाए. 

इस पूरी प्रक्रिया में विभिन्न विभागों के समन्वय से कार्य किया जा रहा है:

डीसी मनरेगा को श्रमिकों की व्यवस्था और योजनाबद्ध कार्यान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है. 

वन विभाग को वृक्षारोपण की कार्ययोजना तैयार करने को कहा गया है. 

सिंचाई विभाग को नदी की दिशा और संरचना का तकनीकी आकलन करने का कार्य सौंपा गया है. 

जिलाधिकारी ने इस पहल को केवल सरकारी योजना नहीं, बल्कि जन आंदोलन के रूप में विकसित करने की बात कही. उन्होंने ग्राम पंचायतों और स्थानीय समाजसेवियों को इस कार्य से जोड़ने के निर्देश दिए हैं ताकि लोग इस पुनर्जीवन कार्य को अपने स्वाभिमान और सांस्कृतिक गौरव से जोड़ें.

क्या है मनोरमा नदी का पौराणिक महत्व?

मनोरमा नदी 115 किलोमीटर लंबी एक पौराणिक नदी है, जो गोंडा और बस्ती जिलों से होकर बहती है. गोंडा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी की दूरी पर इटियाथोक के पास उद्दालक ऋषि का आश्रम, मनोरमा मंदिर और तिर्रे नामक एक विशाल सरोवर स्थित है. इस स्थान की उत्पत्ति महाभारत के शल्य पर्व में वर्णित है. जनश्रुति है कि उद्दालक ऋषि ने यहां यज्ञ करके सरस्वती नदी को मनोरमा के रूप में प्रकट किया था. तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खींचकर गंगा का आह्वान किया, तो गंगा सरस्वती (मनोरमा) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं. इसका उद्गम गोंडा जिले के तिर्रे ताल से होता है और यह बस्ती के परशुरामपुर क्षेत्र से गुजरते हुए महुली के पास कुआनो नदी में मिल जाती है. 

इस नदी का नाम महर्षि उद्दालक की पुत्री मनोरमा के नाम पर पड़ा, जिसका उल्लेख प्राचीन पुराणों में भी मिलता है. जिससे इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व स्थापित होता है. मखौड़ा धाम के पास बहने वाली इस नदी को पवित्र माना जाता है और इसे अनेक धार्मिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है. तीरे मनोरमा के पास साल में एक बार विशाल मेला लगता है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु और ग्रामीण आते हैं.

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