मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिका खारिज, हाई कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

पंकज श्रीवास्तव

Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute Latest Update: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में हाईकोर्ट का फैसला, शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने की याचिका खारिज.

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Hearing on Mathura Shri Krishna Janmabhoomi and Shahi Idgah dispute
मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद पर आया ये फैसला
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Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute Latest Update: उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने हिंदू पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने की मांग की गई थी. यह याचिका वादी अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से सूट नंबर 13 में दायर की गई थी, जिसमें एक विशेष प्रार्थना पत्र एप्लीकेशन A-44 के तहत यह आग्रह किया गया था कि आगे की सभी कानूनी कार्यवाहियों में शाही ईदगाह मस्जिद के लिए ‘विवादित ढांचा’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए. 

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस याचिका को नामंजूर कर दिया. मुस्लिम पक्ष द्वारा इस पर आपत्ति दर्ज की गई थी, जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए हिंदू पक्ष की मांग को ठुकरा दिया. यह फैसला मुस्लिम पक्ष के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है.

बाकी याचिकाओं पर जारी है सुनवाई

यह मामला सिर्फ एक प्रार्थना पत्र तक सीमित नहीं है. हिंदू पक्ष की ओर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर अब तक 18 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं. इन सभी को शाही ईदगाह कमेटी ने सीपीसी (CPC) के ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी है, जिसमें यह कहा गया है कि ये मुकदमे सुनवाई योग्य नहीं हैं.

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क्या है मथुरा का जन्मभूमि-ईदगाह विवाद?

यह विवाद मथुरा के ‘कटरा केशव देव’ क्षेत्र में 13.37 एकड़ भूमि को लेकर है, जिसमें 11 एकड़ पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर स्थित है, जबकि 2.37 एकड़ हिस्से पर शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है. हिंदू पक्ष का दावा है कि यह पूरा क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थल है और मस्जिद मुगल शासक औरंगजेब द्वारा 17वीं शताब्दी में प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी.

1968 का समझौता विवाद की जड़

1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें भूमि को दोनों धार्मिक स्थलों के बीच बांट दिया गया. हालांकि अब हिंदू पक्ष इस समझौते को अवैध बता रहा है और दावा कर रहा है कि समझौता करने वाली संस्था के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं था.

दोनों पक्षों की प्रमुख दलीलें

हिंदू पक्ष की दलीलें:

  • ईदगाह की जमीन भगवान श्रीकृष्ण के गर्भगृह का हिस्सा है.
  • मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़कर अवैध रूप से हुआ था.
  • जमीन का वैध स्वामित्व कटरा केशव देव का है.
  • वक्फ बोर्ड ने बिना अधिकार और प्रक्रिया के जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया.
  • ASI और पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित स्थल मानते हैं, इसलिए प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 यहां लागू नहीं होता.

मुस्लिम पक्ष की दलीलें:

1968 में समझौता हो चुका है, जिसे 60 साल बाद चुनौती नहीं दी जा सकती.

प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के अनुसार, धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 जैसी ही बनी रहनी चाहिए.

यह मामला वक्फ ट्रिब्यूनल के क्षेत्राधिकार में आता है, न कि सिविल कोर्ट के.

लिमिटेशन एक्ट के अनुसार भी मामला चलने योग्य नहीं है.

आगे क्या?

इस केस की अगली सुनवाई में बाकी अन्य याचिकाओं पर विचार किया जा रहा है. कोर्ट के इस ताजा फैसले ने संकेत दे दिया है कि न्यायपालिका इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे को कानूनी तथ्यों और मौजूदा प्रावधानों के अनुसार ही देख रही है.

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