बुंदेलखंड में ‘करोड़ों मोरपंखों’ के साथ होती है अनोखी गोवर्धन पूजा, जानें क्यों है ये खास?

नाहिद अंसारी

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Bundelkhand News: यूपी के बुंदेलखंड इलाके में ‘करोड़ों मोरपंखों’ के साथ गोवर्धन पूजा करने की प्राचीन परंपरा है. इसमें मौन व्रत रख कर लोग मोरपंखों के मोटे-मोटे बंडल लेकर नाचते-थिरकते हुए देव स्थानों में जाकर गोवर्धन पूजा करते हैं. इस अनोखी पूजा को देखने के लिए भारी भीड़ जमा होती है. इस इलाके के हर गांव-गलियों में मौन व्रत रखे लोग मोरपंखों के बंडल के साथ देखे जाते हैं. बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में भी गोवर्धन पूजा अलग ढंग से मनाई जाती है. यहां दीपावली के बाद परीवा को यदुवंशी लोग मौन व्रत ‘करोड़ों’ मोर पंख लेकर नाचते गाते देवस्थानों में जाते हैं, उसके बाद वो अपना मौन व्रत तोड़ते हैं.

मौन व्रत रखने वाले हांथों में बड़े-बड़े मोर पंखों के बंडल लेकर चलते हैं, जो यादव जाति के होते हैं. वो अपने आप को भगवान कृष्ण की गाय मानते हैं. देवस्थानों में जाकर वहां माथा टेकते हैं. इसके पीछे इनका मानना है कि ऐसा करने से उनको कृष्ण का सानिध्य और आर्शीवाद दोनों मिलता है. यदुवंशियों की ये परंपरा बहुत ही कठिन होती है, क्योंकि जो भी मौन व्रत रखता है उसे पूरे 12 साल तक ऐसा करना पड़ता है. और अगर उसने धोखे से बोल दिया तो उसे गाय का गोबर और मूत्र पिलाया जाता है. मौन व्रत रखने वाले लोग चित्रकूट जाकर अपना व्रत तोड़ते हैं.

दीपावली की रात से ही ये लोग मौन व्रत रख लेते हैं और पूरे दिन ऐसे ही घुमते रहते हैं. जब इन्हें प्यास लगती है, तब ये लोग एक बड़े से बर्तन में वैसे ही पानी पीते हैं जैसे भगवान कृष्ण की गाएं पिया करती थीं. सभी को मालूम है कि भगवान कृष्ण को अपनी गायों से कितना प्रेम था. इसलिए ये यदुवंशी भी अपने आपको भगवान श्री कृष्ण के साथ जोड़ने के लिए ऐसा करते हैं.

प्रभू की भक्ति भला कौन नहीं चाहता? उसके लिए फिर उसे चाहे जो करना पड़े. कुछ ऐसा ही होता है इस गोवर्धन पूजा में भी. बुंदेलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर सहित सभी सातों जिलों में यदुवंशी हजारों की तादाद में एक-एक गट्ठर मोर पंख लेकर मौन चराते हैं. क्योंकि मोर को शुभ माना गया है, लेकिन आस्था के लिए कोई बंधन नहीं है. मगर सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि हजारों की तादाद में इन ग्वालों के लिए ‘करोड़ों’ मोर पंख आते कहां से हैं? आजतक इसका जवाब मिल नहीं सका है.

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