बुंदेलखंड में चांदी की मछली के बिना नहीं होती दिवाली पूजा, हमीरपुर में सिर्फ यहां बनती हैं

नाहिद अंसारी

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Hamirpur News: यूपी के बुंदेलखंड इलाके में धनतेरस, दीपावली में चांदी की मछली की पूजा की प्राचीन परंपरा है. हमीरपुर जिले में दीपावली और धनतेरस आते ही चांदी की मछली की धूम मच जाती है. एकदम जिंदा सी दिखने वाली चांदी की मछली के बिना बुंदेलखंड में दिवाली और धनतेरस पूजा अधूरी रहती है. नतीजतन घर-घर में चांदी की मछली खरीदी जाती है. बुंदेलखंड में दीपावली पूजा में चांदी की मछली के पूजन की प्राचीन परंपरा होने की वजह से लगभग सभी लोग अपनी-अपनी जेब के हिसाब से इन्हें खरीद कर पूजन करते हैं. बता दें कि हिंदू धर्म में मीन (मछली) को शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. चांदी की ये मछलियां एक ग्राम से लेकर एक किलो तक बाजार में उपलब्ध हैं.

देखने में एक दम जिंदा सी दिखने वालीं चांदी की ये मछलियां लोगों को पहली ही नजर में अपना दीवाना बना लेती हैं. कारीगर अपने हाथों की कलाकारी से इन मछलियों को बनाते हैं. ये मछलियां हस्त कला और दस्त कला का नायाब नमूना हैं, जो हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में ही बनाई जाती हैं और पूरी दुनिया में भेजी जाती हैं. चांदी की इन मछलियों की सिर्फ अपने देश में ही नहीं बल्कि सऊदी अरब, दुबई, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका सहित अन्य देशों में भारी मांग रहती है.

एक ग्राम चांदी से बनी छोटी मछलियों को लोग कोट में लगाते हैं और महिलाएं कानों में पहनती हैं. लोग अपनी सुविधा अनुसार चांदी के वजन की मछलियां खरीदते हैं. इन मछलियों को लोग पूजा के स्थान में रखते हैं, तो कुछ कांच के फ्रेम के अंदर रख कर अपने घरों को सजाते हैं.

आपको बता दें कि मौदहा कस्बे में सिर्फ एक ही परिवार चांदी की मछलियों को बनाने का कार्य करता है. इस परिवार की एक दर्जन दुकानें हैं, जिनमे चांदी की मछली बनाई जाती हैं. अंग्रेजी शासन में जब इस परिवार के बुजुर्गों ने विक्टोरिया राजकुमारी को चांदी की मछली भेंट की थी तो राजकुमारी ने मछली की खूबसूरती को देख कर इन्हें एक मैडल भी दिया था. मछली की इसी कला के कारण इस परिवार का नाम आईने अकबरी पुस्तक में भी दर्ज है.

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चांदी की मछली बनाने वाले राजेंद्र सोनी का कहना है सदियों पूर्व उनके पूर्वजों ने चांदी की मछली बनाने का काम शुरू किया था. उनकी इस अनोखी कला को देखते हुए उन्हें इनाम तो कई मिले, पर आर्थिक सहायता कभी नहीं मिली, जिससे ये नायाब कला अब लुप्त होने की कगार पर है.

सदियों से लोगों का मन मोह लेने वाली इन मछलियों के कारीगरों को आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है. अगर अभी भी देश और प्रदेश की सरकार इन कलाकारों की सुध ले ले तो चांदी की मछली देश और दुनिया में तहलका मचा सकती है!

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