सीएम योगी आखिर कान में क्यों पहनते हैं अष्ट धातु से बना कुंडल, जानें इससे जुड़ी रोचक कहानी

विनित पाण्डेय

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Uttar Pradesh News : गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर,  पूरे भारत में नाथ संप्रदाय को मानने वाले लोगों की आस्था का केन्द्र है. विश्व और पूरे भारत से जो लोग गोरखपुर में घूमने आते हैं, वह नाथ संप्रदाय के गोरखनाथ मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते हैं. गोरखनाथ मंदिर शहर की सभ्यता संस्कृति और अपने प्राचीनतम इतिहास को समेटे हुए है. शहर में पहुंचते ही आप को तमाम मंदिर दिखेगे जहां नारंगी या भगवा कुर्ता पजामा पहनकर पुजारी पूजा पाठ करते हैं. लेकिन गोरखनाथ मंदिर में पहुंचने के बाद यहां के योगी को देखते ही आप नाथ संप्रदाय की पहचान कर सकेंगे. यहां पर मौजूद हर योगी के कान में कुंडल होता है और यह अनिवार्य है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) इसी मठ के मठाधीश के रूप में जाने जाते हैं. उनके कानों में भी कुंडल देखने को मिलता है. नाथ संप्रदाय की पुरानी परंपरा और पहचान इस मंदिर से की जाती रही है.

कान में कुंडल है योगी की पहचान

कहा जाता है ‘शिव है तो योग है’, ‘योग है तो योगी है’, ‘योगी है तो शक्तियां है’ और इन्हीं शक्तियों से शुरू हुआ नाथ पंथ. इस पंथ का भगवान शिव से गहरा जुड़ाव है और कहा जाता है गुरु गोरखनाथ भी भगवान शिव का ही अवतार है. गोरखनाथ मंदिर में पहुंचने के बाद वहां के पुजारी योगी सोमनाथ बताते हैं कि, ‘योगी बनने के लिए कानों में कुंडल होना सबसे जरूरी है. लेकिन योगी के कानों में कुंडल के साथ ऊपर से नीचे तक कान भी काटे रहते हैं और कानों में बड़े-बड़े छेद रहते हैं.’

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कान छेदने की प्रक्रिया सबसे खास

योगी सोमनाथ बताते हैं कि, ‘नाथ बनने के लिए कान छेदने की प्रक्रिया सबसे खास होती है. वहीं कान फाड़ने का मतलब कष्ट सहन की शक्ति होती है. वहीं नाथ संप्रदाय में कान में बाली पहनने के लिए सबसे पहले एक खास पोजीशन में बैठना होता है. फिर कान को छेदा नहीं जाता बल्कि चीरा जाता है और चीरने के बाद उस पर भभूत लगा देते हैं.’

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