वायसराय कैनिंग के नाम पर बना कॉलेज लखनऊ यूनिवर्सिटी की शक्ल में आया सामने, जानें पूरी कहानी

आयुष अग्रवाल

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लखनऊ विश्वविद्यालय (University of Lucknow) किसी परिचय का मोहताज नहीं है. जब भी उत्तर प्रदेश की बड़े विश्वविद्यालयों का नाम आता है तो उसमें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के साथ लखनऊ यूनिवर्सिटी का नाम भी आता है. ये विश्वविद्यालय पिछले 100 से अधिक सालों से खड़ा है और छात्रों में शिक्षा का निरंतर प्रवाह कर रहा है.

मगर क्या आप जानते हैं कि इस विश्वविद्यालय की नींव का संबंध ब्रिटिश सरकार के एक वायसराय डीजे कैनिंग के साथ जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि अगर वायसराय डीजे कैनिंग न होते तो लखनऊ विश्वविद्यालय भी नहीं होता. आपको बता दें कि वैसे तो लखनऊ विश्वविद्यालय 1920 में अस्तित्व में आया. मगर इसकी नींव 1864 में ही पड़ गई थी.

वायसराय डीजे कैनिंग का क्या है किस्सा

1857 की क्रांति के बाद कंपनी राज का खात्मा हो गया. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत की कमान अपने हाथ में ली. इस दौरान डीजे कैनिंग को अंग्रजी सरकार ने भारत का वायसराय बनाकर भेजा. बताया जाता है कि 1857 की क्रांति के दौरान अवध में कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अंग्रेजों का क्रांति को खत्म करने में खूब साथ निभाया था.   

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अब जब डीजे कैनिंग वायसराय बनकर भारत आए तो उन्होंने अवध के उन लोगों को कई तरह की सुविधाएं और आर्थिक लाभ दिए, जिन लोगों ने 1857 में अंग्रेजों की मदद की थी. बताया जाता है कि डीजे कैनिंग ने उन लोगों को जिला का एक हिस्सा कर वसूलने के लिए उपहार में दे दिया, जिससे उन सभी लोगों को जबरदस्त आर्थिक लाभ हुआ.

1862 में हो गया  कैनिंग का देहात

फिर आया साल 1862. इस साल लंदन में वायसराय डीजे कैनिंग का निधन हो गया. उनके निधन की खबर यहां भी पहुंची. उस दौरान जिन लोगों को कैनिंग ने कर वसूलने का उपहार दिया था, वह लोग आर्थिक तौर पर क्षेत्र की बड़ी ताकत बन चुके थे. उन सभी को लगता था कि उनकी जिंदगी को बदलने में वायसराय डीजे कैनिंग ने बड़ा अहम रोल अदा किया है.

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और वायसराय के सम्मान में खोल दिया स्कूल

जिन लोगों को वायसराय ने लाभ पहुंचाया उन लोगों को लगा कि उन्हें वायसराय कैनिंग की याद में कुछ करना चाहिए. तब उन्होंने एक स्कूल खोलने का विचार किया. बता दें कि 2 साल के विचार-विमर्श के बाद और अंग्रेसी सरकार की मदद से साल 1864 में कैनिंग कॉलेज की स्थानपना हुसैनाबाद में की गई. 

मिली जानकारी के मुताबिक, अपने निर्माण के साथ ही कैनिंग कॉलेज में डिग्री कक्षाओं की शुरुआत शुरू हो गई थी. शुरुआत में डिग्री स्तर पर सिर्फ 8 छात्रों ने ही इसमें दाखिला लिया था.

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फिर पेश हुआ लखनऊ यूनिवर्सिटी बनाने का विधेयक

अप्रैल 1920 में संयुक्त प्रांत के तत्कालीन सार्वजनिक निर्देश निदेशक C.F. de la Fosse ने लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए एक मसौदा विधेयक तैयार किया. इसे 12 अगस्त, 1920 को विधान परिषद में पेश किया गया था. फिर इसे एक चयन समिति को भेजा गया. यह विधेयक संशोधित रूप में 8 अक्टूबर, 1920 को परिषद द्वारा पारित किया गया था. लखनऊ यूनिवर्सिटी 1920 का एक्ट नंबर V को 1 नवंबर को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की सहमति मिली और 25 नवंबर को गवर्नर-जनरल की. इस तरह आज का लखनऊ विश्वविद्यालय अपने अस्तित्व में आया.

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