ज्ञानवापी मामले में टिप्पणी पर बवाल, छात्रों के खिलाफ प्रोफेसर ने भी थाने में की शिकायत

भाषा

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लखनऊ विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर की सोशल मीडिया पर बहस के दौरान की गयी एक टिप्पणी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है और…

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लखनऊ विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर की सोशल मीडिया पर बहस के दौरान की गयी एक टिप्पणी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने कथित तौर पर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने को लेकर उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया एवं प्राथमिकी भी दर्ज कराई. इधर मामले में प्रोफेसर ने भी थाने में शिकायत की है.

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एबीवीपी के अवध प्रांत के संगठन सचिव अंशुल श्रीवास्तव ने बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि एक दिन पहले मंगलवार को सोशल मीडिया पर एक कार्यक्रम के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर और हिंदू संतों पर उनकी कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफेसर रविकांत चंदन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गयी है.

प्राप्त सूचना के अनुसार, विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी प्रोफेसर से स्पष्टीकरण मांगा है और छात्रों की शिकायतों का लिखित जवाब देने को कहा है, लेकिन प्रोफेसर चंदन ने इस बात से इनकार किया है कि उन्हें इस संबंध में विश्वविद्यालय से कोई पत्र मिला है.

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श्रीवास्तव के अनुसार, प्रोफेसर ने बुधवार को एबीवीपी कार्यकर्ताओं और कुछ छात्रों के खिलाफ ‘प्राथमिकी’ भी दर्ज कराई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि छात्रों ने उनके साथ मारपीट की कोशिश की और सोशल मीडिया के जरिये उनके खिलाफ नफरत पैदा की. उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है. हालांकि प्रोफेसर ने दावा किया है कि शिकायत देने के बावजूद अभी तक उनकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.

प्रोफेसर ने कहा, ‘एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बहस के दौरान, मैंने पट्टाभि सीतारमैया की एक किताब ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ में काशी मंदिर विध्वंस और एक मस्जिद के निर्माण के बारे में एक लोकप्रिय कहानी का हवाला दिया था।”

एबीवीपी और अन्य संगठनों ने वीडियो के हिस्से का गलत प्रचार करने के लिए इस्तेमाल किया और लोगों को उकसाया, जिसके कारण मंगलवार को विश्वविद्यालय में मेरे खिलाफ भीड़ जमा हो गई और आपत्तिजनक नारेबाजी की गयी.

प्रोफेसर रविकांत चंदन

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दलित प्रोफेसर ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर खेद जताने के लिए कहा गया और उनके खिलाफ जातिवादी टिप्पणी की गई. उन्होंने कहा, ‘चूंकि मैं कमरे में बैठा था और भीड़ दरवाजा खटखटा रही थी, मैं परेशान था और उस स्थिति में मैंने फेसबुक पर इस बारे में लिख दिया था कि ऐसा लगता है कि वे मुझे मारने के लिए एकत्र हुए हैं. एबीवीपी के लोगों की आपत्तियों पर मैंने इसे हटा भी दिया था, लेकिन फिर भी मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी.’

हालांकि श्रीवास्तव ने कहा, ‘हमारी आपत्ति यह थी कि तथ्यों को जाने बिना, सार्वजनिक मंच पर एक पुस्तक के आधार पर बोलना सही नहीं है और एक शिक्षक से कम से कम इतनी अपेक्षा तो की ही जाती है।’

उन्होंने बताया कि छात्र प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सामने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आपत्ति व्यक्त करना चाहते थे और एबीवीपी के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे. उन्होंने कहा कि अगर प्रोफेसर ने इस पर खेद व्यक्त किया होता तो चीजें हल हो सकती थीं, लेकिन उन्होंने (प्रोफेसर ने) अपने लोगों को संदेश भेजना शुरू कर दिया कि उनके साथ मारपीट करने की कोशिश की जा रही है.

प्रोफेसर के खिलाफ कथित तौर पर हिंदू छात्रों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने तथा सोशल मीडिया के जरिए दुष्प्रचार कर विश्वविद्यालय की छवि खराब करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई है.

एबीवीपी के आगे के कदम के बारे में पूछे जाने पर श्रीवास्तव ने कहा कि विचार-विमर्श जारी है और वह इंतजार कर रहे हैं कि प्रशासन क्या कार्रवाई करता है, अन्यथा छात्रों को विरोध करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

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