हिंसा के आरोपी का घर गिराने के मामले में SC ने कहा- अधिकारी कानूनी प्रक्रिया का पालन करें

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उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों को उन याचिकाओं पर तीन दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि पिछले सप्ताह राज्य में हुई हिंसा के आरोपियों के घरों को अवैध रूप से गिराया गया है. अदालत ने कहा कि ”सबकुछ निष्पक्ष होना चाहिये” और अधिकारियों को कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.

न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि नागरिकों में यह भावना होनी चाहिए कि देश में कानून का शासन है. मामले में अगली सुनवाई मंगलवार को होगी.

पीठ ने कहा, ”सबकुछ निष्पक्ष होना चाहिये. हम अधिकारियों से कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने की आशा करते हैं.”

पीठ ने कहा, ”इस दौरान हम उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें? उनके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं. इस दौरान हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये. यह स्पष्ट है कि वे भी समाज का हिस्सा हैं. जब किसी को कुछ शिकायतें होती हैं, तो उन्हें उनका समाधान करने का मौका मिलना चाहिए. यदि अदालत उन्हें बचाने नहीं आएंगी तो यह ठीक नहीं होगा. सब कुछ निष्पक्ष होना चाहिये.”

पीठ ने स्पष्ट किया कि वह विध्वंस पर रोक नहीं लगा सकती, लेकिन इतना कह सकती है कि ऐसी कार्रवाई कड़ी कानूनी प्रक्रिया के तहत होनी चाहिये.

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न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा, ”हम न्यायाधीश होते हुए भी समाज का हिस्सा हैं। हम भी देखते हैं कि क्या हो रहा है. कभी-कभी हम भी अपनी धारणा बना लेते हैं.”

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कानपुर व प्रयागराज नगर निकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और एक मामले में तो अगस्त 2020 में विध्वंस का नोटिस दिया गया था.

मेहता ने कहा कि कोई भी पीड़ित पक्ष अदालत के समक्ष पेश नहीं हुआ है, बल्कि एक मुस्लिम निकाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अदालत का रुख करके यह आदेश देने की अपील की है कि विध्वंस नहीं होना चाहिये.

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं सी. यू सिंह, हुजेफा अहमदी और नित्य राम कृष्णन ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारियों की तरफ से बयान जारी किये जा रहे हैं और कथित दंगा आरोपियों को घर खाली करने का मौका दिये बगैर कार्रवाई की जा रही है.

शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की अपील की गई है कि राज्य में हाल में हुई हिंसा के कथित आरोपियों की संपत्तियों को नहीं गिराया जाए.

(भाषा के इनपुट्स के साथ)

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