मणिराज पुरी ने बताया उन्हें कैसे बनाया गया नागा साधु, क्या होती है प्रक्रिया, कामेच्छा पर यूं पाते हैं विजय
महाकुंभ में नागा साधुओं को लेकर बहुत कौतूहल होता है. लोगों के लिए नागा साधुओं का जीवन अचरज से भरा होता है. अक्सर लोगों के मन में ये सवाल होते हैं कि आखिर कौन होते हैं नागा साधु?
ADVERTISEMENT

Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में नागा साधुओं को लेकर बहुत कौतूहल होता है. लोगों के लिए नागा साधुओं का जीवन अचरज से भरा होता है. अक्सर लोगों के मन में ये सवाल होते हैं कि आखिर कौन होते हैं नागा साधु? कैसे बनते हैं यह नागा साधु? आजीवन नंग-धड़ंग रहने वाले नागा साधुओं का आखिर उद्देश्य क्या है? कुंभ में क्या करने आए हैं नागा साधु? यूपी Tak की इस खास रिपोर्ट में खुद एक नागा साधु से जानिए उनकी जीवन पद्धति से जुड़े सारे जटिल सवालों के जवाब. ये भी जानिए कि आखिर नागा साधु कैसे अपनी कामेच्छा पर विजय हासिल करते हैं.
हरिद्वार से आए जिन नागा साधु से हमने बात की, वो अखाड़े के बाहर अपनी कुटिया में धुनी रमाय बैठे थे. बड़ी मुश्किल से बातचीत को तैयार हुए नागा साधु मणिराज पुरी ने जब साधु बनने की प्रक्रिया से लेकर नागा साधुओं के जीवन के उद्देश्य पर बात की तो फिर बोलते चले गए. 13 साल की उम्र तक उत्तराखंड की पहाड़ों में रहने वाले मणिराज पुरी ने नागा साधुओं की संगत पकड़ी, नागा साधु बनने की तीन प्रक्रियाओं से गुजर कर वह अभी पूर्ण नागासाधु हैं.
नागा साधुओं को ठंड क्यों नहीं लगती?
मणिराज पुरी ने 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया. नागा साधुओं के संगत में आगे हालांकि पढ़ाई लिखाई भी की. विश्वविद्यालय शिक्षा पूरी की. कहते हैं कि वब अब सनातन का उद्देश्य और जन्म कल्याण के लिए सब कुछ त्याग कर निकल पड़े हैं. कड़ाके की ठंड में शरीर पर शमशान का भभूत मलते हुए नागा साधु मणिराज पुरी ने बताया उन्हें ठंड नहीं लगती. इसलिए नहीं लगती क्योंकि उनका शरीर और जीवन उस बच्चों के समान होता है जैसा कोई बच्चा मां के गर्भ में होता है. यानि जिस झिल्ली में गर्भ के भीतर कोई बच्चा होता है, नागा साधु बनने की प्रक्रिया में शरीर इस स्थिति में चला जाता है. यानी ईश्वर नाम रूपी झिल्ली से वह घिर जाता है और तब गर्मी, ठंड, अग्नि, ताप, संताप किसी का असर नहीं होता.
यह भी पढ़ें...
वह कहते हैं, 'आप देख ले आप सबों को ठंड लग रही है और हम यहां बिल्कुल नंगे बदन बैठे हैं. क्योंकि हमारे ऊपर कोई असर नहीं होता.' मणिराज पुरी ने कहा कि उनका उद्देश्य सिर्फ सनातन की रक्षा करना है. आदि शंकराचार्य के वक्त से बनी नागा साधुओं की यह शाखा सनातन पर आए किसी भी खतरे से बचने के लिए उनकी हथियारबंद सेना है. वह कहते हैं कि मुगलों के समय अपने शास्त्रों के साथ इन साधुओं ने मुगलों से लोहा लिया था जब वह सनातन के खात्मे को उतारू थे.
नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया जानिए
नागा साधु मणिराज पुरी बताया कि उनके अखाड़े में शास्त्रों की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है. सभी शस्त्र के अलावा बंदूक चलाने तक की शिक्षा मिलती है ताकि अगर कभी सनातन पर कोई खतरा बन रहा है तो सैनिक के तौर पर लड़ाई लड़ी जा सके. नागा साधु मणिराज पुरी ने बताया कि नागा बनना आसान नहीं होता , अपने शरीर का अंतिम संस्कार और पिंडदान करनेक बाद संन्यास की दीक्षा ली जाती है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद आखिरी लिंग तोड़ प्रक्रिया सबसे अहम होती है. इसमें अपने काम को वश में करने के लिए लिंग तोड़ दिया जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया क्या होती है यह नागा साधु ने बताने से इनकार कर दिया. उनका कहना है कि यह एक गुप्त प्रक्रिया है जिसे सार्वजनिक तौर पर नहीं बताया जा सकता.
मणिराज पुरी कहते हैं, 'हमें जब नागा बनाया जाता है तो लिंग तोड़ दिया जाता है जिससे कभी कोई उत्तेजना नहीं होती.यह प्रक्रिया हम आपको कैमरे पर नहीं बता सकते.' हालांकि वह आगे जरूर कहते हैं कि, 'नागा साधु बनने के बाद जीवन आनंदमय में हो जाता है. घर छोड़ दिया मां बहन छूट गए लेकिन हमें कितने मां बहन मिल गए सभी संसार हमारा घर है तो सारी दुनिया की मां-बहन हमारी ही तो मां बहन हैं. हमारे लिए जीवन हरि का भजन है प्रेम है. हमारे मां-बाप तो हमारे गुरु ही हैं. गुरु ने जैसा पाला हम वैसे बन गए, ज्यादा मोह नहीं कर सकता. काम वासना या जिसे sex आप कहते हैं, हमने तो पूरे जीवन इसे जाना ही नहीं, हमारे लिए भगवान ही एकमात्र रास्ता हैं.'
मणिराज पुरी के मताबिक काम क्रोध को मोह परे हो जाना ही ईश्वर को प्राप्त करना है. नागा साधुओं का जीवन हर उसे चीज से परे होकर भगवान शिव की आराधना करना है. वह कहते हैं, 'हम नागा साधुओं का उद्देश्य मानव कल्याण है. हम इसलिए यहां बैठे हैं ताकि आप सब सनातन की इस स्वछंद हवा में सांस ले सकें. आपका जीवन अच्छा हो हम इसलिए यहां हैं.'