महोबा के इस प्रचीन मंदिर से कोणार्क का है नाता, इसे भी कहते हैं सूर्य मंदिर, जानें क्यों?

नाहिद अंसारी

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

इतिहास के पन्नों में कई अहम घटनाएं समेटे महोबा का सूर्य मंदिर सदियों का साक्षी है.

कहा ये भी जाता है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर से काफी समय पहले ही चंदेला शासन में बुंदलेखंड में ऐसे पत्थर थे, जहां से सूर्य की पूजा की जाती थी.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

कुछ खास तरह से बने इस मंदिर को देखने की चाहत अब भी बड़ी संख्या में लोगों को महोबा खींच लाती है.

मगर, ये संख्या कोणार्क सूर्य मंदिर के मुकाबले काफी कम है. कोणार्क मंदिर में जहां 25 लाख श्रद्धालु हर साल आते हैं, तो महोबा में ये संख्या 12 लाख के करीब है.

ADVERTISEMENT

बता दें कि महोबा से दक्षिण में करीब डेढ़ किमी दूर इस सूर्य मंदिर का निर्माण 850वीं सदी में राजा राहुल देव बर्मन ने कराया था.

मंदिर में शिलाओं पर कई आकृतियां भी बनी हैं और लिखावट है. मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट के पत्थरों का इस्तेमाल भी देखने को मिल सकता है.

ADVERTISEMENT

इसे देख पुरातत्त्ववेत्ता अधीक्षक एएसई (लखनऊ) इंदु प्रकाश मानते हैं कि कोणार्क मंदिर और महोबा के मंदिर में गहरा रिश्ता है.

जानकारी के अनुसार 12वीं सदी में ही इस मंदिर के स्वरूप पर सबसे पहला वार कुतुबुद्दीन एबक ने किया और धन की लालसा से इसका कुछ हिस्सा गिरा दिया था.

मंदिर की पूरी कहानी यहां पढ़ें…

    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT