लखीमपुर खीरी हिंसा के 10 दिन पूरे, क्या है अजय मिश्रा टेनी को लेकर बीजेपी की रणनीति?
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में बहे खून पर राजनीति का रंग गहरा गया है. जिस पर अब वोटों की फसल उगाने की कोशिश तेज हो…
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लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में बहे खून पर राजनीति का रंग गहरा गया है. जिस पर अब वोटों की फसल उगाने की कोशिश तेज हो गई है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, रालोद किसानों के साथ खड़ी दिख रही है.
किसानों को कुचलने के अपराध पर विपक्ष लगातार सरकार को घेर रहा है तो वहीं उसके बाद आक्रोश में लिंचिंग का शिकार हुए ब्राह्मण युवकों के परिवारों पर अब सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी ने नजर डाली है.
योगी सरकार के कानून मंत्री बृजेश पाठक 10 वें दिन पीड़ित परिवारों में मिलने पहुंचे, जबकि सरकार को घेरने में दिन रात एक किए हुए विपक्षी दल अब तक वहां नहीं पहुंच पाए. बस यहीं से बीजेपी की डूबती नाव को तिनके का सहारा मिल गया है.
दस दिन बाद विपक्ष और सरकार राजनीति की पिच पर
इन दस दिनों के अंदर योगी सरकार ने समान रूप से सभी को मुआवजा देकर उत्तर प्रदेश में शुरू हो चली ब्राह्मण राजनीति को अपने पक्ष में करने का प्रयास शुरू कर दिया है. बस पार्टी की यही राजनीति गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र ‘टेनी’ के फेवर में मुड़ गई है.
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शुरू में यूपी पुलिस की नोटिस चिपकाने की औपचारिकता से कठघरे में आई यूपी सरकार मंत्री बेटे आशीष मिश्र ‘मोनू’ को जेल भेजकर और प्रभावशाली पैरवी से जमानत खारिज कराकर यह संदेश दे रही है कि अपराधी पर तो कोई नरमी नहीं बरती जा रही है. साथ ही बीजेपी इसी पिच पर अपने तरीके से सियासी बैटिंग करने के लिए भी तैयार दिख रही है.
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया हिंसा के 10 दिन बीत जाने के बाद अब इसके सियासी नफे नुकसान को लेकर कयास बढ़ गए हैं. आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद भी विपक्षी दल हमलावर हैं और तराई क्षेत्र में विपक्षी दलों की वजह से सरगर्मी और मीडिया की मौजूदगी अब तक बनी हुई है. अंकित दास की गिरफ्तारी के बाद जांच में महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ रही है. वहीं अंतिम अरदास और श्रद्धांजलि सभा में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और रालोद नेता जयंत चौधरी की मौजूदगी ने तय कर दिया कि तराई क्षेत्र और यूपी का राजनीतिक तापमान अभी ठंडा नहीं होगा.
अजय मिश्र ‘टेनी’ के इस्तीफे को लेकर अटकलें फिर तेज
लखनऊ से दिल्ली तक इस घटना को लेकर सियासी हलचल बढ़ गई है. दिल्ली में यूपी बीजेपी के जिम्मेदारों के साथ संघ और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की मीटिंग के बाद अब फिर से ये अटकलें लग रही हैं कि क्या अजय मिश्र टेनी को हटाकर पार्टी विपक्ष के हमले का जवाब देगी?
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इस बीच, 13 अक्टूबर को कानून मंत्री बृजेश पाठक ने लखीमपुर खीरी जाकर शुभम मिश्रा और हरिओम मिश्रा के परिजनों से मुलाकात की और न्याय का भरोसा दिलाया. ये बीजेपी का अपने कार्यकर्ताओं को संदेश है तो पार्टी की भावी रणनीति का संकेत भी.
दिल्ली में बैठक के बाद क्या हुआ?
तिकुनिया हिंसा के बाद बीजेपी की चिंता बढ़ी है. ये तय है कि गृह राज्य मंत्री के बेटे पर सवाल उठने से पार्टी के अंदर हलचल है. पार्टी के नेतृत्व में इस बात को लेकर असहजता है. भले ही पार्टी ने इसको खुल कर जाहिर न किया हो.
दरअसल, यूपी में पार्टी को जल्दी ही चुनावी समर में उतरना है. ऐसे में विपक्षी दलों के हाथ में कोई भी ऐसा मुद्दा जो पार्टी के कैडर से लेकर नेतृत्व तक को असहज करे और पार्टी में कार्यकर्ताओं और वोटरों के एक वर्ग में नाराजगी की वजह बने वो बीजेपी रणनीतिकारों के लिए चिंता का विषय है. पहले से ही किसानों का विरोध झेल रही पार्टी के लिए नए सिरे से स्थिति का आकलन कर रणनीति बनाना जरूरी हो गया है.
प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के दो दिन पहले पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ‘नेतागीरी का मतलब लूटना नहीं, किसी को फॉर्च्यूनर से कुचलना नहीं’ वाले बयान को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है. लेकिन किसी विपरीत बात को अपने पक्ष में करने में माहिर बीजेपी रणनीतिकारों के लिए भी ये कड़ी परीक्षा है.
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10 दिन और तीन बड़ी बैठकें
हमेशा मीटिंग मोड में रहने वाली बीजेपी ने अंदरखाने में भले ही कई बैठकें की हों, पर ये तीन बैठकें बहुत महत्वपूर्ण हैं. पहली बैठक को मुलाकात और स्पष्टीकरण कहा जा सकता है जब अजय मिश्रा टेनी ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. दूसरी बैठक कई बैठकों की सीरीज है जिसमें सीएम योगी ने सांसदों ,विधायकों से फीडबैक लिया. तीसरी बैठक 11 अक्टूबर को दिल्ली में हुई, जिसमें केंद्रीय नेतृत्व के साथ यूपी में पार्टी के जिम्मेदार बैठे थे.
विपक्ष की दिशा से बनी पार्टी की रणनीति
दरअसल, जो बीजेपी घटना से पहले दिन दबाव में आई थी वही अब दस दिन बाद घटना के डैमेज कंट्रोल के लिए तैयार दिख रही है. साथ ही बदली परिस्थिति में रणनीति बनाने का भी दबाव है.
विपक्ष ने जिस तरह लखीमपुर में जान गंवाने वालों को दो खेमों में बांट दिया है बीजेपी को यही बात रास आ रही है. हालांकि, प्रियंका गांधी ने उनसे मुलाकात की बात कही थी, पर उनके लिए विपक्ष के खेमे से कोई आवाज नहीं आ रही.
किसानों और पत्रकार के अलावा मारे गए हरिओम मिश्रा, शुभम मिश्रा और श्याम सुंदर ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. बीजेपी के एक नेता का कहना है, “लिंचिंग के शिकार लोगों के घर क्या विपक्ष का कोई नेता दिखाई पड़ा है? लेकिन बीजेपी उन ब्राह्मणों के साथ है.”
इसी बात को (विपक्ष के नेताओं पर एक तरफा बात करने) पार्टी ने न सिर्फ अपने ऑफिशियल हैंडल से ट्वीट किया है, बल्कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में ये बात कही भी है. ऐसे में पार्टी न सिर्फ इस घटना को लोगों के सामने रखना चाहती है बल्कि चुनाव तक लोगों को याद दिलाना भी चाहती है. जाहिर है बीजेपी ब्राह्मणों में इस बात की प्रतिक्रिया से भी वाकिफ है.
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, “पार्टी इसी बात को राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए तैयार है. इसके लिए टेक्निकली पार्टी के पास ये कहने के लिए भी है कि सरकार ने तो गृह राज्य मंत्री के बेटे तक को 302 में गिरफ्तारी करवाई, लेकिन दूसरी पार्टियों ने सिर्फ एकतरफा काम किया.”
खोई जमीन वापस पाने की तैयारी
चुनाव को देखते हुए दिल्ली में हुई बैठकों में आगामी कार्यक्रमों और अभियानों की चर्चा भले ही हुई हो, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बदली परिस्थिति में यूपी के हालात पर वहां मंथन हुआ होगा. बीजेपी आने वाले दिनों में दो बातें साफ तौर पर सामने लाने वाली है.
1- योगी सरकार ने न्याय में कोई कसर नहीं रखी. गृह राज्य मंत्री के बेटे की 302 में गिरफ्तारी पार्टी के इस दावे को मजबूत करती है कि न्याय मिलेगा और जो दोषी होगा वो बख्शा नहीं जाएगा.
2- पार्टी ने पीड़ितों का साथ भी दिया और पीड़ितों में कोई भेदभाव नहीं किया, जबकि विपक्ष के नेता एकतरफा न्याय की बात कर रहे थे. ऐसे में ब्राह्मणों का साथ देने की किसी अन्य दल ने कोशिश नहीं की.
आने वाले समय में बीजेपी इसी बात को लेकर लोगों के बीच जाने वाली है. ये सवाल बीजेपी की तरफ से अब बार-बार सुनाई पड़ने वाला है.
इस समय बना समीकरण
दरअसल, ये हिंसा ऐसे समय पर हुई है जब यूपी में चुनाव होने वाले हैं. वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं, “पार्टी के सामने दुविधा है. अजय मिश्रा के नाम पर ब्राह्मण वोट को लेकर भी चर्चा चलने लगी है. साथ ही 3 ब्राह्मण भी मारे गए हैं. ऐसे में ये मुद्दा जिस रास्ते पर जा रहा है उससे विपक्ष के पास से ब्राह्मण वोट अलग होता नजर आ रहा है.”
राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि बीजेपी दबाव में तो है लेकिन ऐन चुनाव के वक्त ब्राह्मण वोट को देखते हुए इस मामले को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती. वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, “बेटे की गिरफ्तारी हो चुकी. पिता को (मंत्री पद पर) बनाए रखने में कोई पॉलीटिकल नुकसान नहीं है, जबकि जल्दबाजी में कोई फैसला लेने पर बड़ी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है.”
राकेश टिकैत ने फिर दी चेतावनी
इधर, किसान नेता राकेश टिकैत ने फिर से चेतावनी दी और मंत्री पद से अजय मिश्रा को हटाने तक आंदोलन चलाने की बात कही है तो कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मुलाकात कर चुका है.
पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं, “बीजेपी अगर किसी दबाव में अजय मिश्रा टेनी को हटाती भी है तो ये दिखाकर हटाएगी कि उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था.”
यानी टेनी के समर्थन में आने वाले लोग और ब्राह्मण इसके लिए विपक्ष के हमले और बीजेपी पर दबाव को ही वजह मानें. साथ ही बीजेपी विपक्षी दलों पर पीड़ितों को दे खेमों में बांटने का आरोप लगाकर और खुद ‘पीड़ित ब्राह्मणों ‘ के साथ खड़े होने की बात कहकर इस खोई सियासी जमीन को वापस लाने की तैयारी में दिख रही है.
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