वक्फ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने की जोरदार बहस! अंदर क्या-क्या कहा यहां देखिए
Kapil Sibal in Supreme Court over the Waqf case: वक्फ मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने जोरदार बहस की. उन्होंने वक्फ बाय यूजर और धार्मिक संपत्ति पर सरकार के अधिकारों को लेकर कई बड़े तर्क रखे। जानिए कोर्ट में क्या-क्या हुआ.
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Kapil Sibal in Supreme Court over the Waqf case: वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जोरदार बहस की. उन्होंने कानून के कई विवादास्पद प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 26 के उल्लंघन के रूप में बताया और कहा कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है. उन्होंने सवाल उठाया कि, 'राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं, और वक्फ बना सकता हूं या नहीं?'
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर क्या है विवाद?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 अप्रैल में लागू हुआ और इसके बाद से ही विवादों में घिरा हुआ है. कानून के कुछ प्रमुख प्रावधान हैं:
- गैर-मुस्लिमों को केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में शामिल करने की अनुमति.
- कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार कि कोई संपत्ति सरकारी है या वक्फ.
- वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करने का अधिकार.
- वक्फ बाय यूज़र की भविष्य में मान्यता पर रोक.
- वक्फ बनाने वाले व्यक्ति के लिए पांच साल से मुस्लिम होने की शर्त.
- अनुसूचित जनजातियों की जमीन पर वक्फ की मनाही.
कपिल सिब्बल की मुख्य दलीलें
'राज्य कैसे तय करेगा कि मैं मुसलमान हूं?'
सिब्बल ने कहा कि नए कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति तब तक वक्फ नहीं बना सकता जब तक वह पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का अभ्यास कर रहा न हो. इस पर उन्होंने सवाल उठाया, 'अगर मैं जन्म से मुसलमान हूं, तो मेरी व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता अपने आप लागू होती है. मुझे राज्य से अपने मुसलमान होने का प्रमाण क्यों देना पड़े?'
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अनुच्छेद 26 का हवाला
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 26 का जिक्र करते हुए कहा, 'हर धार्मिक समुदाय को यह अधिकार है कि वह अपने धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की स्थापना और संचालन करे, बशर्ते कि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के दायरे में हो.'
"वक्फ बाय यूज़र" की पहचान पर रोक
सिब्बल ने कहा कि संशोधित कानून भविष्य में "वक्फ बाय यूज़र" की पहचान को रोकता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है. अब सवाल यह है कि "वक्फ बाय यूज़र" क्या होता है? आपको बता दें कि अगर किसी संपत्ति का लंबे समय तक धार्मिक या सामाजिक उद्देश्य से उपयोग हुआ है, भले ही लिखित रूप से वक्फ घोषित न हो, तब भी उसे “वक्फ बाय यूज़र” माना जाता है.
सरकारी अधिकारियों को जज बना देना गलत
उन्होंने धारा 3C पर आपत्ति जताई, जो सरकार को यह अधिकार देती है कि वह किसी संपत्ति को एकतरफा तरीके से सरकारी घोषित कर दे और उसे वक्फ की श्रेणी से हटा दे. सिब्बल ने कहा, 'सरकारी अधिकारी कैसे खुद ही फैसला कर सकते हैं, जब मामला सरकार और वक्फ के बीच का हो?'
ऐतिहासिक मस्जिदों पर खतरा
धारा 3D के तहत किसी संरक्षित स्मारक (heritage monument) पर स्थित मस्जिदों या धार्मिक स्थलों की वक्फ मान्यता खत्म हो सकती है. सिब्बल ने पूछा, 'अगर कोई मस्जिद किसी स्मारक के हिस्से में है, तो उसका क्या होगा?'
आदिवासी क्षेत्रों में वक्फ पर रोक
उन्होंने Fifth और Sixth Schedule वाले क्षेत्रों में वक्फ की मनाही पर भी सवाल उठाए, 'सभी आदिवासी क्षेत्र एक जैसे नहीं होते. कई अनुसूचित जनजाति के मुसलमान भी होते हैं, उन पर यह कानून कैसे थोप सकते हैं?'
वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी
सिब्बल ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की मौजूदगी, खासकर अगर वह संख्या में अधिक हों, तो यह पूरी संस्था की धार्मिक प्रकृति को कमजोर करता है. सिब्बल ने कहा, 'हिंदू या सिख धार्मिक बोर्डों में केवल उन्हीं समुदायों के लोग होते हैं. तो फिर मुस्लिम वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम क्यों?'
सुप्रीम कोर्ट के संकेत: कुछ प्रावधानों पर लग सकती है रोक
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने संकेत दिया कि वे कानून के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक (stay) लगा सकते हैं. इनमें शामिल हैं:
- वक्फ घोषित संपत्तियों को कोर्ट के आदेश के बावजूद डिनोटिफाई करना
- वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति
- पांच साल का मुस्लिम अभ्यास प्रमाण
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा है कि, 'आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते.'
'हम जब बेंच पर बैठते हैं, तो अपना धर्म छोड़ देते हैं'- सीजेआई
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर वक्फ मामलों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी गलत है, तो फिर इस केस में हिंदू जजों को सुनवाई नहीं करनी चाहिए. इस पर CJI ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, 'जब हम यहां बैठते हैं, तो हम धर्म छोड़ देते हैं. हम पूरी तरह सेक्युलर होते हैं.'