दिहाड़ी मजदूर के बेटे अतुल के लिए IIT धनबाद में बनेगी अतिरिक्त सीट! UP के इस लड़के की खातिर SC ने ये किया

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Atul kumar
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Atul Dhanbad IIT case: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर गांव के दिहाड़ी मजदूर के ब्रिलिएंट बेटे अतुल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक जबर्दस्त फैसला सुनाया है. असल में अतुल ने बीते दिनों कठिन मेहनत कर JEE अडवांस की परीक्षा पास की थी और उसे रैंक के हिसाब से IIT धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के कोर में सीट मिली थी. पर एडमिशन के आखिरी दिन के अंतिम पलों तक फीस के महज 17500 रुपये जुटाने की हड़बड़ी में अतुल को मिला एडमिशन टाइम ओवर हो गया. नतीजन IIT धनबाद का एडमिशन पोर्टल क्लोज हो गया और उसे एडमिशन नहीं मिल पाया. अतुल ने तमाम गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. फिर वह इस मामले को लेकर देश में न्याय पाने के सर्वोच्च मंच सुप्रीम कोर्ट की दर पर पहुंचा. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अतुल के केस में ऐसा फैसला सुना दिया है, जो आने वाले वक्त में एक नजीर की तरह पेश होगा. 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जबर्दस्त तर्क दिए. अतुल की मेहनत को न सिर्फ तवज्जो दी बल्कि अपने फैसले में मानवीय पक्षों की सर्वोच्चता को स्थापित करने का भी काम किया. आइए आपको बताते हैं कि इस केस में क्या-क्या हुआ.  

 

 

अतुल को अतिरिक्त सीट बनाकर IIT धनबाद के उसी बैच में दो एडमिशन: सुप्रीम कोर्ट  

अतुल के मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक के साथ अन्याय होने नहीं दे सकते. उन्होंने इस बात को मेंशन किया कि दलित समाज से आने वाला यह लड़का न्याय के लिए झारखंड लीगल सर्विस अथॉरिटी गया. फिर वह चेन्नै लीगल सर्विस गया, जहां से उसे हाई कोर्ट भेज दिया गया. इस लड़के को न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. 

इसके बाद IIT का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि यह आखिरी समय में लॉगिन नहीं कर पाने का मामला नहीं है. मॉक इंटरव्यू में भी फीस देने के लिए कहा गया है. NIC से लड़के को मैसेज गया और IIT ने वॉट्सऐप पर दो चैट भी भेजे ताकि फीस पेमेंट की जा सके. चीफ जस्टिस ने इस तर्क पर वकील को एक बार फिर याद दिलाया कि पीड़ित एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा है.

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पीड़ित लड़के के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दिहाड़ी मजदूरी भी रोजाना की सिर्फ 450 रुपये है. ऐसे में 17 हजार 500 रुपये भी इकट्ठा करना एक बड़ी चुनौती है. बच्चे ने गांववालों की मदद से पैसे इकट्ठे किए. 

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 में दी गई ताकत का हवाला देकर सुनाया फैसला

ये बातें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत ऐसे कुछ केस हैं जहां हम कानून को थोड़ा अलग रखते हैं. सीजेआई ने कहा कि बच्चे ने आईआईटी में एडमिशन के लिए इतनी कड़ी मेहनत की है. अगर उसके पास 17 हजार रुपये होते तो वो क्यों फीस जमा नहीं करता? संस्थान की तरफ से पेश हुए वकील ने फिर तर्क दिया कि लड़के ने तकरीबन रोजाना लॉगिन के प्रयास किए हैं. 

इस पर CJI ने कहा कि इससे तो यही पता चलता है कि लड़का कितना मेहनती है. 

इसपर जस्टिस जेबी पारदीवाला ने टिप्पणी करते हुए संस्थान के वकील से पूछा कि आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आप इसका कोई रास्ता क्यों नहीं निकालते? सीट आवंटन पर्ची से पता चलता है कि आप चाहते थे कि वह भुगतान करे और अगर उसने भुगतान किया तो उसे कुछ और करने की ज़रूरत नहीं थी. 

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फिर चीफ जस्टिस ने कहा कि लड़का ब्रिलिएंट स्टूडेंट है, उसे सिर्फ 17000 रुपये रोक रहे हैं. संस्थान के वकील ने फिर तर्क दिया कि दूसरी कैटेगिरी के लिए भी यह 17 हजार रुपये है. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्हें भी आने यहां आने दीजिए, हम उनको भी राहत देंगे. किसी भी बच्चे को सिर्फ़ इसलिए इस तरह नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि उसके पास फीस के 17000 रुपये नहीं हैं.

फिर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये आदेश

इन टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अतुल के मामले में अपना आदेश सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को IIT धनबाद में सीट आवंटित की गई थी. यह एडमिशन लेने का आखिरी मौका था, क्योंकि सिर्फ़ दो प्रयासों की ही अनुमति दी जाती है. याचिकाकर्ता ने बताया है कि उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. परिवार गरीबी रेखा से नीचे है. एडमिशन की लास्ट डेट 24 जून को शाम 5 बजे तक थी. उसके माता-पिता ने 4:45 बजे तक पैसे की व्यवस्था कर ली थी. लड़के ने बताया है कि पोर्टल  5 बजे बंद हो गया और फीस पेमेंट नहीं हो पाई. 26 जून को जेईई एडवांस के लिए आईआईटी बॉम्बे ऑफिस से कैंडिडेट को आईआईटी मद्रास भेज दिया. लॉगिन डिटेल से पता चलता है कि वह पोर्टल में लॉग इन करने के लिए लगातार मेहनत कर रहा था. ऐसा कोई उचित कारण नहीं था कि अगर लड़के के पास फीस के पैसे होते, तो उसे ऐसा करना पड़ता. हमारा मानना ​​है कि एक प्रतिभाशाली छात्र को असहाय नहीं छोड़ा जाना चाहिएय. हम निर्देश देते हैं कि लड़के को आईआईटी धनबाद में प्रवेश दिया जाए. 

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चीफ जस्टिस ने कहा कि उसे उसी बैच में प्रवेश दिया जाना चाहिए, याचिकाकर्ता के लिए एक अतिरिक्त सीट बनाई जानी चाहिए. इस प्रक्रिया में किसी भी मौजूदा छात्र को परेशान नहीं किया जाना चाहिए. 

 

 

क्या है अतुल का मामला और पूरी कहानी? 

मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विधानसभा सीट के टिटोडा गांव निवासी अतुल कुमार का परिवार अत्यंत गरीब है. अतुल ने आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की सीट हासिल की थी. मगर, गरीबी की मार ऐसी पड़ी कि 24 जून को आखिरी तारीख तक वो फीस जमा नहीं कर पाया. अतुल का कहना है कि उनका परिवार गांव वालों से कर्ज लेकर फीस का इंतजाम तो कर लिया था, मगर ऑनलाइन डॉक्यूमेंट सबमिट करते समय वेबसाइट ऑटोमेटिकली लॉग आउट हो गई थी. अतुल पहले झारखंड हाई कोर्ट गए. फिर मद्रास हाई कोर्ट में भी अपना मामला दर्ज कराया. बाद में सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा जहां 24 सितंबर को सुनवाई हुई. फिर सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर की तारीख दी और आज फैसला सुना दिया. 

अतुल के पिता राजेंद्र किसी फैक्ट्री में मजदूरी का काम करते हैं और मां राजेश देवी घास लाकर बच्चों की पढ़ाई में मदद करती हैं. अतुल का कहना है कि उन्होंने कानपुर स्थित गहलोत सुपर 100 इंस्टिट्यूट से तैयारी की थी. अतुल के तीन भाई हैं जो भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं. गांववाले और पड़ोसी भी अतुल की परिश्रम और सफलता की गवाही देते हैं. उनके शिक्षक, राजकुमार का कहना है कि अतुल पढ़ाई में बहुत ही इंटेलिजेंट है और गरीबी के बावजूद उसने अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है. इस लड़ाई में गांववालों ने भी बहुत साथ दिया. फीस का पैसा जुटाने तक के लिए मदद की.

 

 

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