पूर्व पीएम चंद्रशेखर की पुण्यतिथि: जब इंदिरा गांधी के सामने कहा था- तोड़ दूंगा कांग्रेस को

अमीश कुमार राय

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आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन 80 वर्ष की आयु में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में उनका निधन हुआ था. भारतीय राजनीति में कभी युवा तुर्क के नाम से विख्यात इस राजनेता को जीवन के अंतिम वर्षों में कैंसर से जूझना पड़ा. अंतिम समय तक राजनीति में सक्रिय रहे चंद्रशेखर को भारत में समाजवादी परंपरा की सर्वकालिक टॉप लीडरशिप में शुमार किया जाता रहा है. चंद्रशेखर की कई पुरानी स्पीच आज भी जबतक सोशल मीडिया पर वायरल होती रही हैं, जिन्हें आप सुनें तो आपको अंदाजा लगेगा कि इन्हें अपने तेवर के लिए क्यों जाना जाता था. आज चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ा एक खास किस्सा बताने जा रहे हैं.

चंद्रशेखर के राजनीतिक किस्से अनगिन हैं. चंद्रशेखर की आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में इन किस्सों को सिलसिलेवार ढंग से पेश किया गया है. ऐसा ही एक किस्सा उनके और इंदिरा गांधी के बीच हुए संवाद का है, जो चंद्रशेखर की साफगोई, स्पष्टवादिता के साथ विचार को लेकर उनकी निष्ठा-दृढ़ता को प्रदर्शित करता है. उस किस्से पर आने से पहले आपको संक्षिप्त में पूर्ण पीएम के जीवन की एक झलक से परिचित कराते हैं.

चंद्रशेखर की संक्षिप्त जीवनी

  • चन्द्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित इब्राहिमपट्टी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था.

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  • चंद्रशेखर ने 1950-51 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में मास्टर्स किया. इसके बाद समाजवादी आंदोलन में शामिल हो गए.

  • उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकट से जुड़े होने का सौभाग्य हासिल था. 1955-56 में उन्हें यूपी में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी का महासचिव बनाया गया.

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  • 1962 में चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए.

  • जनवरी 1965 में चंद्रशेखर कांग्रेस में शामिल हुए. उस दौरान उनकी ख्याति युवा तुर्क के रूप में स्थापित हो चुकी थी.

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  • 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया.

  • चंद्रशेखर 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक थे.

  • 1975 में जब देश में आपातकाल लगा तो चंद्रशेखर का तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद हो गया. फिर बाद में वह गिरफ्तार भी हुए.

  • आपातकाल के दौरान जेल में बिताये समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई.

  • साल 1977 से 1988 तक चंद्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे.

  • चंद्रशेखर नवंबर 1990 में देश के प्रधानमंत्री बने. हालांकि उनका कार्यकाल महज 7 महीने यानी जून 1991 तक रहा.

  • 1984 से 1989 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़ दिया जाए, तो 1962 से वे संसद के सदस्य रहे.

  • चंद्रशेखर का विवाह दूजा देवी से हुआ था. उनके दो पुत्र हैं – पंकज सिंह और नीरज सिंह. नीरज सिंह अभी बीजेपी के सांसद हैं.

  • चंद्रशेखर और इंदिरा गांधी का वह फेमस किस्सा जब कही थी कांग्रेस को तोड़ने की बात

    यह कहानी तबकी है जब देश में आपातकाल नहीं लगा था और चंद्रशेखर कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे. इस किस्से का जिक्र उनकी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ के तीसरे अध्याय ‘कांग्रेस में’ में किया गया है. उस जमाने में गुरुपदस्वामी, इंद्रकुमार गुजराल, अशोक मेहता जैसे लोग इंदिरा गांधी के यहां बैठते थे. इन लोगों ने चंद्रशेखर को भी आने का निमंत्रण दिया. एक दिन इंदिरा गांधी के आवास पर चंद्रशेखर भी मिलने पहुंचे. इंदिरा बाकी लोगों के साथ लॉन में बैठी थीं.

    किताब के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने उनसे सवाल किया: चंद्रशेखर जी, क्या आप कांग्रेस को समाजवादी मानते हैं? इसपर चंद्रशेखर ने फौरन जवाब दिया कि वह ऐसा नहीं मानते कि कांग्रेस समाजवादी संस्था है पर लोग ऐसा कहते हैं. इंदिरा ने आगे पूछा, फिर आप कांग्रेस में क्यों आए? इसपर चंद्रशेखर ने जवाब दिया कि क्या आप सही उत्तर जानना चाहती हैं? जब इंदिरा ने कहा कि वह सही बात ही बोलें तो चंद्रशेखर ने कहा, ‘मैंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में 13 साल तक पूरी क्षमता और ईमानदारी से काम किया. दल को मैंने पूरी निष्ठा के समाजवाद के रास्ते पर ले जाने की कोशिश की, लेकिन काफी समय तक काम करने के बाद मुझे लगा कि वह संगठन ठिठक कर रह गया है. पार्टी कुंठित हो गई, बढ़ती नहीं है. अब वहां कुछ होने वाला नहीं है. फिर मैंने सोचा कि कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है. इसी में चलकर देखें, कुछ करें.’

    तब चंद्रशेखर ने कहा- कांग्रेस को सोशलिस्ट बनाने की कोशिश करूंगा, नहीं बनी तो तोड़ने का प्रयास करूंगा

    इंदिरा और चंद्रशेखर के बीच उस दिन का वार्तालाप अभी यहीं नहीं रुका. कांग्रेस में आने का कारण जानने के बाद इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर से पूछा कि वह कांग्रेस में क्या करना चाहते हैं? जवाब मिला कि कांग्रेस को सोशलिस्ट बनाने की कोशिश करूंगा. अगला सवाल हुआ कि अगर कांग्रेस ऐसी नहीं बनी तो, फिर चंद्रशेखर ने जो कहा वह उनकी स्पष्टवादिता और खरी राजनीति के स्वभाव को दिखाता है. उन्होंने कहा…

    इसे (कांग्रेस को) तोड़ने का प्रयास करूंगा. क्योंकि जबतक यह टूटेगी नहीं तबतक देश में कोई नई राजनीति नहीं आएगी. पहले तो मैं प्रयास यही करूंगा कि यह समाजवादी बने पर यदि नहीं बनी तो इसे तोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा.’

    पूर्व पीएम चंद्रशेखर.

    जरा सोचिए तब इंदिरा के सामने ऐसा कह पाने का साहस कितनों में होता? इंदिरा गांधी ने भी आगे पूछा कि चंद्रशेखर उन्हें इस तरह के जवाब क्यों दे रहे हैं. तब चंद्रशेखर ने कहा कि सवाल आप पूछ रही हैं, तो जवाब भी आपको ही दूंगा. तब इस संवाद को आगे बढ़ाते हुए इंदिरा ने यह भी जानना चाहा कि पार्टी तोड़ने से आपका क्या मतलब है?

    इसपर चंद्रशेखर ने जो जवाब दिया वह उनकी आत्मकथा में दर्ज है. चंद्रशेखर ने कहा…

    ‘देखिए, कांग्रेस बरगद का पेड़ हो गई है. इसकी फैली छांव में कोई दूसरा पौधा विकसित नहीं होगा. इस बरगद के नीचे कोई पौधा पनप नहीं सकता. इसलिए जबतक यह पार्टी टूटेगी नहीं, कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होगा.’

    पूर्व पीएम चंद्रशेखर.

    भारत की सबसे शक्तिशाली नेताओं में शुमार की जाने वाली इंदिरा गांधी के सामने चंद्रशेखर की यह साफगोई इस बात का उदाहरण है कि आखिर क्यों उन्हें राजनीति में युवा तुर्क कहा गया.

    चंद्रशेखर की वह फेमस पदयात्रा, जब उन्होंने 4000 किमी से अधिक दूरी पैदल पूरी की

    चंद्रशेखर का राजनीतिक यात्रा अपने आप में काफी साहसिक भी रही है. ऐसा ही एक राजनीतिक साहस उन्होंने भारत की मैराथन पदयात्रा में दिखाया था. 6 जनवरी 1983 से लेकर 25 जून 1983 तक चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल तय की थी. चंद्रशेखर ने सामाजिक और राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब 15 भारत यात्रा केंद्र भी स्थापित किए थे.

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