ओलंपिक में हॉकी का ब्रॉन्ज जिताने वाले सितारों में 2 यूपी से, राजकुमार और ललित की कहानी है खास

यूपी तक

ADVERTISEMENT

Picture: Lalit Upadhyay & Raj Kumar Pal
Picture: Lalit Upadhyay & Raj Kumar Pal
social share
google news

Olympic Medalist Raj Kumar Pal & Lalit Upadhyay Stroy: पेरिस ओलिंपिक 2024 में गुरुवार को भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक के मैच में स्पेन को 2-1 से हरा दिया. इसके साथ ही भारतीय हॉकी टीम ने 52 साल बाद लगातार दूसरे ओलिंपिक में कांस्य पदक पर कब्जा जमाने के साथ 36 साल के गोलकीपर पीआर श्रीजेश को ऐतिहासिक विदाई भी दी. आपको बता दें कि आज के मैच में भारत की ओर से दो गोल दागे गए थे. उत्तर प्रदेश के लोग इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि ललित उपाध्याय और राजकुमार पाल दोनों ही खिलाड़ी मूल रूप से गाजीपुर और वाराणसी जिले के रहने वाले हैं. दोनों ने ही अपने शानदार प्रदर्शन से हर किसी का दिल जीत लिया है.  खबर में आगे आप तफ्सील से राजकुमार और ललित की कहानी जानिए.

आपको बता दें कि राजकुमार पाल गाजीपुर के करमपुर गांव के निवासी हैं. यह पहल मौका है जब राजकुमार पाल ने ओलंपिक में भारत की ओर अपनी दावेदारी पेश की है. वहीं, ललित उपाधयाय वाराणसी के रहने वाले हैं. ललित ने इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीता था. अब ललित के पास ओलंपिक के दो-दो पदक हो गए हैं. 

 

 

मेघबरन स्टेडियम में की थी राजकुमार और ललित प्रैक्टिस

गाजीपुर के एक छोटे से गांव करमपुर में बने मेघबरन स्टेडियम से लगातार ऐसे खिलाड़ी निकल रहे हैं जिन्होंने देश-विदेश में ख्याति हासिल की है. इन्हीं खिलाड़ियों में राजकुमार पाल और ललित का नाम भी शामिल है. मिली जानकारी के अनुसार, राजकुमार पाल ने साल 2010 में  मेघबरन स्टेडियम में हॉकी खेलने की शुरुआत की थी. आपको बता दें कि राजकुमार के साथ-साथ ललित उपाध्याय ने भी मेघबरन स्टेडियम में हॉकी का अभ्यास कर ओलंपिक तक का सफर तय किया है. जाहिर सी बात है कि इन दोनों खिलाड़ियों की उपलब्धि से स्टेडियम के अन्य बच्चों को प्रेरणा मिलेगी.  

कब बना था ये स्टेडियम?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस स्टेडियम की स्थापना तेज बहादुर सिंह उर्फ तेजू सिंह ने साल 1986 में की थी. तब वह बेहद कम संसाधनों के बीच इलाके और आसपास के बच्चों को अपने मार्गदर्शन में हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे. उस वक्त सभी प्रशिक्षणरत बच्चों के पास हॉकी नहीं उपलब्ध थीं. ऐसे में बांस की हॉकीनुमा छड़ियों के जरिए ही तेजू सिंह युवाओं और बच्चों को हॉकी के गुण सिखाते थे.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT