गुरुवार 9 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के विश्वेश्वर नाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर अहम फैसला दिया. हाई कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दिया, जिसमें विवादित परिसर के आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) सर्वे के निर्देश दिए गए थे. हाई कोर्ट ने वाराणसी की स्थानीय कोर्ट की प्रोसिडिंग पर भी रोक लगा दी है.
वाराणसी की कोर्ट ने 8 अप्रैल 2021 को जब ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश दिया, तो एक बार फिर लोगों को अयोध्या-बाबरी विवाद की याद आ गई. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इतेजामिया मस्जिद ने वाराणसी कोर्ट के आदेश को चुनौती दी. इसी याचिका पर हाई कोर्ट ने 9 सिंतबर को फैसला सुनाते हुए सर्वे के आदेश पर रोक लगा दी है.
आइए स्टेप बाइ स्टेप जानते हैं इस पूरे विवाद को
1984 में वीएचपी की पहली धर्म संसद से शुरुआत: अप्रैल 1984 में दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की पहली धर्म संसद आयोजित होती है. इस धर्म संसद में 500 से अधिक साधु-संन्यासी इकट्ठे होते हैं. इसमें कई प्रस्ताव पास होते हैं, लेकिन सबसे अहम प्रस्ताव होता श्री राम जन्मभूमि अयोध्या, श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा और काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी, वाराणसी के मंदिरों को हिंदुओं को ‘वापस’ दिलाना. सबसे पहले वीएचपी ने अयोध्या का आंदोलन खड़ा किया. पर उस आंदोलन के दौरान का नारा इस पूरे अभियान को एक लाइन में समेटने के लिए काफी था और वह नारा था कि अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है.
क्या है हिंदू पक्ष का दावा: अयोध्या की तरह यहां भी मुगल शासक औरंगजेब को ही समस्या की जड़ बताया गया है. हिंदू पक्ष का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को 2 हजार साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. दावे के मुताबिक औरंगजेब ने 1664 में इस मंदिर को गिरा दिया. साथ ही इसके अवशेष पर एक मस्जिद को बनाया गया जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है. इसी आधार पर हिंदू पक्ष ने इस जमीन पर अपना हक जताया है.
कोर्ट में सबसे पहले कब पहुंचा मामला: काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सबसे पहले 1991 में वाराणसी कोर्ट में केस दाखिल किया गया. तब एडवोकेट विजय शंकर रस्तोगी ने स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान की तरफ से दाखिल याचिका में दावा किया कि यहां पूजा की अनुमति दी जाए क्योंकि यह मंदिर था, जिसे राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. इस याचिका में कहा कि काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट लागू नहीं होता क्योंकि मंदिर को आशिंक रूप से गिराकर मस्जिद बनाई गई थी और मंदिर के कई हिस्से आज भी हैं.
1998 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी मामले को हाई कोर्ट ले गई. तर्क दिया गया कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 के सेक्शन 4 के तहत सिविल कोर्ट इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती. तब हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट की प्रोसिडिंग पर रोक लगा दी. अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद दिसंबर 2019 में यह मामला फिर कोर्ट पहुंचा. एडवोकेट विजय शंकर रस्तोगी ने स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेसर के ‘नेक्स्ट फ्रेंड’ के तौर पर याचिका दाखिल की. इस याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद के एएसआई सर्वे की मांग की गई. बाद में 8 अप्रैल 2021 को वाराणसी कोर्ट ने एएसआई सर्वे की अनुमति दे दी. अब हाई कोर्ट ने फिलहाल इस आदेश पर रोक लगा दी है.
हालांकि बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया. अश्विनी उपाध्याय ने कानून को चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों को उनके वैसे धार्मिक स्थलों को हासिल करने से रोकता है, जिसे इतिहास में बर्बर शासन ने ध्वस्त कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए तब गृह मंत्रालय, कानून व न्याय मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय से इस संबंध में जवाब मांगा था. इसके बाद से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 से सुरक्षित धार्मिक स्थल भी अब क्या नियमित विवादों का हिस्सा बन जाएंगे.