
यूपी में विधान परिषद की 13 सीटों पर चुनाव ने समाजवादी पार्टी के लिए नयी चुनौती खड़ी कर दी है. आंकड़ों और संख्या बल के आधार पर बीजेपी के 13 में से 9 सदस्य चुने जा सकते हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के 4 सदस्य विधान परिषद जा सकते हैं. ऐसे में अखिलेश यादव के सामने ये चुनौती है कि उनकी पार्टी में दावेदार ज्यादा हैं. सहयोगी दल भी इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि उनको उच्च सदन में भेजा जाए. जीतने वाली सीटों से कहीं ज्यादा दावेदारी होने की वजह से अखिलेश यादव के सामने मुश्किल है.
विधान परिषद की 13 सीटों के चुनाव में समाजवादी पार्टी को संख्याबल के आधार पर सिर्फ 4 सीटें मिलनी हैं. चुनाव से ऐन पहले बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी ने विधानपरिषद भेजने का फैसला पहले ही कर लिया है. मंगलवार को स्वामी प्रसाद मौर्य के नामांकन को लेकर चर्चा थी पर बाद भी उन्होंने ट्वीट किया कि वो बुधवार 8 जून को नामांकन करेंगे और उस मौके पर अखिलेश यादव भी मौजूद रहेंगे.
इस बीच ये भी चर्चा है कि पार्टी ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को विधान परिषद भेजेगी. इसके साथ ही ये चर्चा भी हो रही है कि ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर दबाव बनाया है जबकि अखिलेश अपने किसी कार्यकर्ता को विधान परिषद भेजना चाहते हैं. इधर इस बात की भी चर्चा है कि इमरान मसूद भी विधान परिषद के लिए बात कर चुके हैं. अब अखिलेश यादव को इसका फैसला लेना है.
देखा जाए तो इस परिस्थिति में अखिलेश यादव के सामने दोहरी चुनौती है. एक तो अपने विश्वस्त कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना और साथ ही गठबंधन में शामिल दलों को संतुष्ट करना. इधर आगे की सियासी जमीन को देखते हुए जातीय समीकरण बनाना भी जरूरी है. दरअसल अखिलेश यादव हाल ही में हुए राज्यसभा सीटों पर नाम तय करने में भी अपनी पार्टी से सिर्फ एक जावेद अली खान को उच्च सदन में भेज पाए हैं.
अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव के नाम की चर्चा अंतिम समय तक होती रही, जबकि बाद में आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी ने नामांकन किया. इस बात हो लेकर जहां चर्चा रही कि आरएलडी से नामांकन कर जयंत चौधरी ने सपा को मिलने वाली एक सीट पर राज्यसभा जाने में सफलता हासिल की तो वहीं अखिलेश को रणनीतिक रूप से इसमें अपने गठबंधन के साथी को साथ रखने के लिए समझौता करना पड़ा.
इधर निर्दलीय कपिल सिब्बल को भी समर्थन सपा ने दिया. नाराज आजम खान को देखते हुए कपिल सिब्बल को साथ देने का फैसला भी अहम है, क्योंकि कपिल सिब्बल ने आजम की जमानत में अहम भूमिका निभाई थी. नतीजा ये कि सपा के खाते की तीन सीटों में से एक पर आरएलडी और एक पर निर्दलीय राज्यसभा पहुंचे जबकि सपा की अब सिर्फ एक सीट रह गयी.
कहा जा रहा है कि इसके बाद से ही ओम प्रकाश राजभर ने भी सपा की 4 विधानपरिषद सीटों में एक सीट पर दावा ठोंक दिया. जानकारी के अनुसार एक सीट पर अरविंद राजभर का विधानपरिषद जाना लगभग तय है.
अखिलेश यादव ने पहले भी बीएसपी से लेकर कांग्रेस तक के साथ गठबंधन किया है. बाद में सपा और इन दलों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद ये बात भी हुआ कि अखिलेश गठबंधन धर्म को निभाने में नाकाम रहे और उन्होंने अपने विश्वस्तों को महत्व दिया. वहीं इस बार अखिलेश यादव को गठबंधन को बनाए रखने के लिए कई कड़े फैसले करने पड़ रहे हैं.
विधानपरिषद में सपा फिलहाल 4 सदस्य भेजने में समर्थ है. ऐसे में अगर स्वामी प्रसाद मौर्य और राजभर कोटे की एक सीट को छोड़ दिया जाए तो दो सीटें बचती हैं. इसके लिए पार्टी में कई दावेदार हैं.अखिलेश यादव के लिए अपनी करहल विधानसभा सीट खाली करने वाले सोबरन सिंह यादव का नाम लगभग तय माना जा रहा है. सोबरन सिंह यादव के जरिए सपा जहां अपने गढ़ के नेता को आगे बढ़ा सकती है, वहीं अपने मूल वोट बैंक यादवों को भी संदेश दे सकती है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी अनुसूचित जाति (SC) मोर्चा के राहुल भारती का नाम भी चर्चा में है.
अखिलेश की कोर टीम में शामिल सुनील यादव (सुनील साजन) और राजपाल कश्यप के नाम पर भी चर्चा है तो पूर्व एमएलसी हीरा लाल यादव का नाम भी चर्चा में शामिल है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानपरिषद में राम गोविंद चौधरी को भी अखिलेश यादव मौका दे सकते हैं क्योंकि इससे विधानपरिषद में उनके अनुभव का लाभ पार्टी को मिलेगा. फिलहाल इन सीटों पर नाम का फैसला अखिलेश यादव को लेना है, लेकिन इतना तय है कि गठबंधन धर्म और अपने विश्वस्त कार्यकर्ताओं में संतुलन बनाकर ही अखिलेश यादव विधान परिषद में सपा के लिए आगे का रास्ता बना सकते हैं.