Akhilesh Yadav on Caste Census: केंद्र सरकार ने बुधवार को फैसला किया कि आगामी जनगणना में जातिगत गणना को ‘‘पारदर्शी’’ तरीके से शामिल किया जाएगा. राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जाति गणना की है. अब इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव का रिएक्शन सामने आ गया है.
ADVERTISEMENT
भारत में आखिरी जनगणना कब हुई थी?
भारत में आखिरी बार जनगणना साल 2011 में हुई थी. यह आज़ाद भारत की सातवीं जनगणना थी और अबतक कुल मिलाकर देश की 15वीं जनगणना मानी जाती है. 2011 की जनगणना दो चरणों में हुई थी. पहला चरण गृह सूचीकरण और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) का था, जो अप्रैल से सितंबर 2010 के बीच किया गया. दूसरा चरण जनसंख्या गणना का था, जो 9 फरवरी से 28 फरवरी 2011 तक चला. इसमें भारत की कुल आबादी 121 करोड़ से ज्यादा दर्ज की गई थी.
इस जनगणना में पुरुषों की संख्या करीब 62.3 करोड़ और महिलाओं की संख्या 58.7 करोड़ रही. जनसंख्या वृद्धि दर 17.64% और साक्षरता दर 74.04% दर्ज की गई. 2021 की जनगणना को पहले कोविड-19 महामारी की वजह से टाल दिया गया, लेकिन इसके बाद इसे प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से भी आगे बढ़ाया जाता रहा. यह जनगणना विशेष इसलिए भी मानी जा रही थी क्योंकि यह भारत की पहली डिजिटल जनगणना होने वाली थी, जिसमें मोबाइल ऐप और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए डेटा संग्रह का लक्ष्य रखा गया था.
जनगणना के साथ-साथ सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को भी अपडेट करना चाहती थी, जिस पर कुछ राज्यों ने आपत्ति जताई थी. इसी वजह से यह प्रक्रिया और जटिल हो गई. इसके अलावा, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और एनपीआर को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस और विरोध भी हुए, जिससे जनगणना की प्रक्रिया पर असर पड़ा.
ये भी पढ़ें: P फॉर पंडितजी... अखिलेश यादव ने पीडीए की नई फुलफॉर्म बता दी, निशाने पर कौन?
भारत में आखिरी बार जाति जनगणना कब हुई थी?
भारत में आखिरी पूर्ण जाति आधारित जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान कराई गई थी. यह वही जनगणना थी जिसमें पहली और आखिरी बार सभी जातियों के विस्तृत आंकड़े एकत्र किए गए थे. इसके बाद 1941 की जनगणना तो हुई, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वह अधूरी रही. स्वतंत्र भारत में 1951 से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की ही गणना होती रही है. उस समय नीति बनाई गई कि सामान्य वर्ग और पिछड़ी जातियों की गिनती नहीं की जाएगी, जिससे जातिगत आंकड़े सीमित हो गए. हालांकि, 2011 में एक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई गई थी. लेकिन इसमें एकत्र किए गए जातिगत आंकड़े सरकार ने सार्वजनिक नहीं किए, क्योंकि लगभग 46 लाख जातियों के अलग-अलग नामों और वर्तनी में अंतर के कारण डेटा को सत्यापित करना चुनौतीपूर्ण बताया गया.
ADVERTISEMENT
