तेजी से बढ़ते भारत की जनसंख्या के बीच में युवाओं के लिए रोजगार एक चुनौती बनता जा रहा है. लेकिन इस चुनौती के बीच प्रयागरज के नैनी में कुछ युवाओं ने आरटीओ दफ्तर के बाहर अपना अस्थाई साइबर कैफे खोला है जिससे वह अच्छा कमाई कर पा रहे हैं. ये युवा कम संसाधनों में भी अपना स्टार्ट अप कैसे चला रहे हैं इसे देखकर हर कोई हैरान है. साथ ही साथ ये ऐसे सभी युवाओं के लिए इंस्पिरेशन भी हैं जो कम संसाधनों या नौकरी की तलाश में बेरोजगार भटक रहे हैं.
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आरटीओ ऑफिस के बाहर खोल लिया साइबर कैफे
ये कहानी है उन युवाओं की जिन्होंने नौकरी का इंतजार करने की बजाय खुद का काम शुरू किया. प्रयागराज आरटीओ दफ्तर के बाहर एक के बाद एक कई अस्थाई साइबर कैफे खोले गए हैं. इन्हीं में से एक हैं अभय कनौजिया, जिन्होंने एक पेड़ के नीचे अपनी दुकान सजाई है. धूप और बारिश से बचने के लिए उन्होंने एक पीली पन्नी और एक छतरी का इस्तेमाल किया है. एक मेज पर लैपटॉप और प्रिंटर रखकर, नीचे एक बड़ी बैटरी से बिजली का इंतजाम किया है. इस छोटी सी दुकान से वे हर दिन 600-700 रुपये कमा रहे हैं.
अभय के पिता एक छोटी ठेला पर फुल्की बेचते थे. इस छोटी सी दुकान से उन्होंने अपनी दो बेटियों की शादी की और अभय को जीआईटीआई से कंप्यूटर का कोर्स कराया. अभय के पिता बीमार रहने लगे. ऐसे में अभय पर अपने पिताजी की और पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई. अभय ने अपना बिजनेस शुरू करने मन बनाया. लेकिन पैसे के अभाव के कारण कुछ कर नहीं सकते थे. अभय ने अपने कुछ दोस्तों से उधार और कुछ लोन लेकर अपना अस्थाई साइबर कैफे नैनी के आरटीओ दफ्तर के बाहर खोल लिया. पिछले 1 साल से वह इसी से अच्छी आमदनी कमा रहे हैं. इसी अस्थाई साइबर कैफे के बदौलत अपने माता-पिता की आर्थिक सहायता कर रहे हैं. शादी के बाद वह अपने परिवार का खर्च भी इसी छोटे साइबर कैफे से चला रहे हैं. यही नहीं उन्होंने अपने पास एक सहायता के लिए एक दूसरे युवक को रोजगार भी दिया है.
इसी तरह शिवम गुप्ता भी हैं जिन्होंने आरटीओ दफ्तर के बाहर अपना अस्थाई साइबर कैफे एक सब्जी के ठेले पर बनाया है. शिवम ने बताया कि उनके पिता की मौत के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई. उन्होंने बताया कि इससे पहले वह बाहर जॉब करते थे. लेकिन जिम्मेदारियों के चलते वह प्रयागराज आ गए. ऐसे में उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने का मन बनाया और अपना ठेला लाकर आरटीओ दफ्तर के बाहर लगा लिया.
उन्होंने इस ठेले पर एक अस्थाई साइबर कैफे खोला है. इस साइबर कैफे को खोलने के लिए शिवम ने कुछ लोन लिया और कुछ अपने दोस्तों से उधार लिया था. अब इनके साइबर कैफे पर आरटीओ दफ्तर में फॉर्म भरने भरने वाले पहुंचते हैं. इसके साथ ही वह लोगों का सरकारी नौकरी का फॉर्म भी भरते हैं जिससे वह अच्छा पैसा कमा लेते हैं. इसी साइबर कैफे पर उन्होंने कई और युवाओं को रोजगार भी दिया है.
इसी तरह अनिल शुक्ला भी हैं जो एक छतरी के नीचे अपना अस्थाई साइबर कैफे चला रहे हैं. इनके पास अपना एक लैपटॉप था दोस्तों की सहायता से एक बैटरी प्रिंटर ले लिया. अब यह भी अस्थाई साइबर कैफे चला रहे हैं. साथ ही अपने परिवार का आर्थिक जिम्मेदारी भी इससे उठा रहे हैं. बता दें कि ये सभी युवा रोजाना सुबह आरटीओ दफ्तर के साथ ही अपनी दुकान लगाते हैं और दफ्तर बंद होने के बाद सब कुछ समेटकर चले जाते हैं. ये दिखाता है कि कैसे कम संसाधनों के बावजूद अपना खुद का व्यवसाय चलाकर आत्मनिर्भर बना जा सकता है.
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