इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पुलिस दस्तावेजीकरण प्रणाली में व्यापक बदलाव करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने शराब तस्करी से जुड़े एक मामले में एफआईआर और जब्ती मेमो में अभियुक्तों की जाति लिखने की प्रथा को तत्काल समाप्त करने को कहा है. अदालत ने इस प्रथा को कानूनी भ्रांति और पहचान की प्रोफाइलिंग करार देते हुए कहा कि यह संवैधानिक नैतिकता को कमजोर करती है और भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है.
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जाति-आधारित पहचान पर कड़ा रुख
आपको बता दें कि यह फैसला प्रवीण छेत्री नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दोरान आया, जिसने शराब तस्करी से जुड़े आपराधिक मामले की कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी. इस मामले में अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए पुलिस की जाति-आधारित पहेचान की प्रथा पर सख्त आपत्ति जताई. जस्टिस विनोद दिवाकर की सिंगल बेंच ने कहा कि यह तरीका कानून और संविधान दोनों के खिलाफ है.
पुलिस दस्तावेजों से जाति उल्लेख हटाने का आदेश
कोर्ट ने आदेश दिया है कि एफआईआर, जब्ती मेमो, अपराध विवरण फॉर्म, गिरफ्तारी/कोर्ट सरेंडर मेमो और पुलिस अंतिम रिपोर्ट जैसे सभी पुलिस दस्तावेजों से जाति और जनजाति संबंधी सभी कॉलम और एंट्रीज तुरंत हटा दी जाएं. इसके साथ ही पुलिस थानों के नोटिस बोर्ड पर अभियुक्तों के नाम के सामने जाति का कॉलम भी मिटाने का निर्देश दिया गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि पिता या पति के नाम के साथ मां का नाम भी पुलिस दस्तावेजों में शामिल किया जाए.
संवैधानिक नैतिकता और पहचान प्रोफाइलिंग पर टिप्पणी
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आधुनिक तकनीक जैसे आधार कार्ड, फिंगरप्रिंट और मोबाइल कैमरों के युग में पुलिस द्वारा जाति के आधार पर पहचान करना कानूनी रूप से गलत और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है. कोर्ट ने डीजीपी की तर्कधारा की भी आलोचना की और कहा कि पुलिस अधिकारी संवैधानिक नैतिकता से दूर हो गए हैं.
भविष्य के लिए व्यापक दिशा-निर्देश
बता दें कि कोर्ट ने सरकार से अपील की है कि जाति-आधारित पहचान और भेदभाव को खत्म करना राष्ट्रीय एजेंडा का हिस्सा होना चाहिए ताकि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बन सके. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में संशोधन कर वाहनों पर जाति आधारित चिन्हों पर प्रतिबंध लगाया जाए. इसके अलावा सोशल मीडिया पर जाति के नाम पर घृणा फैलाने वाली सामग्री के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए आईटी नियमों को कड़ा किया जाए और उल्लंघन रिपोर्ट करने के लिए निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए.
पुलिस प्रशासन के लिए संवैधानिक सुधार जरूरी
कोर्ट ने अधिकारियों द्वारा संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना पर गहरा दुख व्यक्त किया और कहा कि विभागीय जांच और संवैधानिक संवेदनशीलता बढ़ाने के प्रयास होने चाहिए. जाति आधारित पहचान हटाकर ही समाज में समानता और न्याय स्थापित किया जा सकता है.
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