2017 में श्मशान-कब्रिस्तान, 2022 में ‘अब्बा जान’? BJP की चुनावी शब्दावली के निशाने पर कौन

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ के ‘अब्बा जान’ बयान पर अब विपक्ष जमकर हमलावर हो गया है. इस बयान के बाद बीजेपी पर यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव को साम्प्रदायिक दिशा में मोड़ने की कोशिश के आरोप रहे हैं.

ऐसे में अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं, मसलन, यूपी में 2022 के चुनाव को देखते हुए आखिर ‘अब्बा जान’ मामले के सियासी मायने क्या होंगे? इस बयानबाजी से सीएम योगी आदित्यनाथ किस पर निशाना साध रहे हैं? बीजेपी अपने चुनावी कैंपेन को किस दिशा में ले जा रही है? इन सवालों के राजनीतिक निहितार्थ ढूंढ़ने के लिए आपको थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर फतेहपुर में बीजेपी की रैली. इस रैली में पार्टी के लिए ‘करिश्माई’ साबित हुए नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण और यहां से निकली एक टर्म.

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”गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए. अगर रमजान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए.”

फतेहपुर रैली में नरेंद्र मोदी

अब मौजूदा वक्त का एक दृश्य देखिए- 12 सितंबर 2021 यानी 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले का वक्त. कुशीनगर में योगी आदित्यनाथ का संबोधन.

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”राशन मिल रहा होगा ना आप लोगों को? क्या ये राशन 2017 से पहले भी मिलता था… क्योंकि तब तो अब्बा जान कहने वाले राशन हजम कर जाते थे.”

कुशीनगर में योगी आदित्यनाथ

पहले और दूसरे दृश्य में बड़ा अंतर यही है कि तब बीजेपी यूपी में विपक्षी पार्टी थी और अब वो यूपी की सत्ता में है. मगर इन दोनों दृश्यों से जुड़ी एक बड़ी समानता भी है- तभी भी बीजेपी पर चुनाव को साम्प्रदायिकता की दिशा में मोड़ने की कोशिश के आरोप लग रहे थे और अब भी ऐसा हो रहा है.

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अब विपक्ष क्या कह रहा है, ये विस्तार से जान लीजिए:

सीएम योगी के बयान पर कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा है, ”योगी जी आप कितना भी अब्बा जान, अम्मी जान, बीबी जान, चाचा जान कर लीजिए, चुनाव असलियत के मुद्दे पर होगा. आप कुछ भी कर लीजिए, चुनाव को हम साम्प्रदायिक नहीं होने देंगे. हिंदू-मुसलमान पर चुनाव नहीं होगा.”

उन्होंने सीएम योगी से कहा, ”आपको बताना पड़ेगा कि 70 लाख रोजगार कहां हैं, आपको बताना पड़ेगा कि आप महिलाओं का सम्मान सुरक्षित रखने में क्यों असफल हुए हैं. आपको बताना पड़ेगा कि ये जो बड़ा व्यापारी वर्ग है वो किसानों और मजदूरों को क्यों लूट रहा है.”

वहीं, समाजवादी पार्टी के नेता अभिषेक मिश्रा ने कहा, ”राशन वाली बात को मैं चैलेंज करता हूं हर तरह से कि एसपी (सरकार) में राशन हो, चाहे लैपटॉप या पेंशन की बात हो, सबको बराबर की हिस्सेदारी मिली.”

इसके अलावा उन्होंने कहा, ”कौन किस रिश्ते को किस नाम से बुलाता है यह व्यक्तिगत बात है. यह आज यूपी को देखना है कि यूपी की फोटो में बंगाल के पोस्टर लग रहे हैं, बीजेपी खुद को कमजोर पा रही है इसलिए अब्बा जान कर रही है. शासन, सुरक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर सरकार फेल है.”

‘अब्बा जान’ टर्म का निशाना कहां?

इस टर्म पर पहली बार विवाद तब हुआ, जब योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों ‘पंचायत आज तक’ में इसका इस्तेमाल कुछ इस तरह किया कि उसे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर निशाने के तौर पर देखा गया.

”हमने कहा था कि रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे… आज अयोध्या में राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर निर्माण का काम शुरू हो चुका है. उनके अब्बा जान तो कहते थे कि हम परिंदे को भी पर नहीं मारने देंगे. हमने 1990 में भी कहा था कि जहां रामलला विराजमान हैं, वो राम जन्मभूमि है, वहां भव्य मंदिर का निर्माण होना चाहिए. इन लोगों ने तब स्वीकार नहीं किया और राम भक्तों पर गोली चलाई.”

योगी आदित्यनाथ

दरअसल 1990 में जब अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे, तब अयोध्या में सुरक्षाबलों और कारसेवकों के बीच संघर्ष में 20 से ज्यादा कारसेवकों की मौत हो गई थी. ऐसे में माना गया कि योगी ने अपने ‘अब्बा जान’ वाले बयान से अखिलेश पर ही निशाना साधा.

इसके बाद जब इस बारे में ‘हिंदुस्तान पूर्वांचल सम्मान समारोह’ में सीएम योगी से सवाल पूछा गया – आप एक मुख्यमंत्री के पिता को जो खुद मुख्यमंत्री रहे हैं, उनको लेकर आप ये ‘अब्बा जान’ आदि क्यों कहते हैं?

इस पर सीएम योगी ने जवाब दिया, ”मैं इसलिए कहता हूं कि 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 5 सदी की सनातन धर्मावलंबियों के एक इंतजार को दूर करते हुए श्री राम मंदिर के निर्माण कार्य का शुभारंभ किया. देश और दुनिया ने (इसका) स्वागत किया, कुछ लोगों को बुरा भी लगा होगा.”

इसके बाद यहां भी सीएम योगी ने पुराने वक्त को लेकर कहा, ”कुछ लोग थे जो उस समय गोली चला रहे थे. उस समय बहुत सारे लोग बोलते थे कि परिंदा भी पर नहीं मारेगा. उस समय वोट बैंक की जो राजनीति हुई , वो नहीं हुई होती तो संभवत: उतना खून खराबा नहीं होता. आपको मुस्लिम वोट चाहिए, लेकिन अब्बा जान से परहेज है?

इस तरह सीएम योगी ने सीधा जवाब तो नहीं दिया, लेकिन इस बात के संकेत जरूर दे दिए कि मामला धर्म से जुड़ा ही है और वह ‘अब्बा जान’ टर्म का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं.

इस बीच सीएम योगी के 12 सितंबर के बयान पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर पूछा, ”हमारी सरकार चाहती है: एक समावेशी अफगानिस्तान. (मगर) अपने “अब्बा जान” वाले बयान से योगी जी क्या चाहते हैं: एक समावेशी यूपी या फूट डालो और शासन करो?”

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई बीजेपी समावेशी समाज के कॉन्सेप्ट से अलग राह पर है. इस सवाल का जवाब जान लेने से पहले दो दृश्य और देखिए, उन्हीं मंचों के, जिनका जिक्र इस लेख के शुरू में हुआ है.

फतेहपुर की रैली में पीएम मोदी ने ‘श्मशान-कब्रिस्तान’ वाली बात के ठीक बाद यह भी कहा था,

”अगर होली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी बिजली मिलनी चाहिए. भेदभाव नहीं होना चाहिए. सरकार का काम है, भेदभाव मुक्त शासन चलाने का. किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए, धर्म के आधार पर तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए.”

फतेहपुर में नरेंद्र मोदी

कुशीनगर में सीएम योगी ने ‘अब्बा जान’ वाले बयान से ठीक पहले यह कहा था,

”जिस देश की राजनीति 1947 में जाति, मजहब, क्षेत्र, भाषा, परिवार और वंश तक सीमित थी. प्रधानमंत्री मोदी जी ने उसे गांव के लिए, गरीब के लिए, किसान के लिए, नौजवान के लिए, महिलाओं के लिए, बच्चों के लिए, बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक तबके के लिए पहुंचाया. क्या शौचालय देने में किसा का चेहरा देखा गया? नहीं.”

कुशीनगर में योगी आदित्यनाथ

मतलब यह कि बीजेपी के शीर्ष नेता अपने बयानों में समावेशी समाज का जिक्र तो कर रहे हैं, मगर उनका जोर किसी खास बात या टर्म पर होता है, उसी से हेडिंग बन जाती है (शायद वे ऐसा चाहते भी हों), ऐसे में ‘श्मशान-कब्रिस्तान’ और ‘अब्बा जान’ जैसी टर्म उछल जाती हैं, जिनको जमीनी स्तर पर भुनाने की कोशिश भी दिखती है. इन सब के बीच असली मुद्दे तब कहीं खोकर रह जाते हैं, जब विपक्ष भी जाति या धर्म की पिच पर बैटिंग करने लग जाता है.

ऐसे में बीजेपी किस तरह विपक्ष पर हमलावर हो जाती है, उसकी झलक पार्टी के इस वीडियो में देखिए (यह सिर्फ एक उदाहरण है, हम वीडियो की किसी भी बात की पुष्टि नहीं करते)

अब आते हैं इस सवाल पर कि क्या यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में खेती-किसानी, रोजगार, बिजली-पानी-सड़क और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे मुद्दों पर धर्म का मुद्दा भारी पड़ेगा? तो इसका जवाब बस यही है कि विपक्ष अगर इन सिर्फ मुद्दों पर ही पूरा जोर लगाकर चुनाव लड़े और जाति/धर्म के आधार पर समीकरण बनाने से पूरी तरह दूर रहे तो बीजेपी के लिए भी धर्म के मुद्दे पर जोर देना मुश्किल हो जाएगा.

नहीं तो चुनाव बहुत हद तक ‘अब्बा जान’ जैसी सियासी बयानबाजियों, मंदिर-मस्जिद के दौरों के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह जाएगा.

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