सपा और बसपा MP विधानसभा चुनावों में खुद को मजूबत करने में जुटीं, जानें अब तक कैसा रहा इनका प्रदर्शन
मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी तपिश दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. एमपी के सभी प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी…
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मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी तपिश दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. एमपी के सभी प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी मैदान में खुद की स्थिति मजूबत करने में जुटे हुए हैं. इसी कड़ी में यूपी के दो प्रमुख राजनीतिक दल सपा और बसपा लगातार तीन दशक से एमपी में भी अपने आपको मजबूत करने और पार्टी के विस्तार में लगे हुए हैं.
बसपा लगातार साल 1990 से तो वहीं सपा साल 1998 से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में ताल ठोंक रही हैं.
दोनों ही पार्टियों को अमूमन इक्का दुक्का सीट जीतने में सफलता तो मिलती है, लेकिन अधिकांश सीटों पर हमेशा इनकी जमानत जब्त होने का इतिहास रहा है. दोनों ही पार्टियों का थोड़ा बहुत प्रभाव यूपी से सटे इलाकों में है. रीवा, छतरपुर, भिंड जैसे जिलों में ये दोनों दल अपना प्रभाव रखते हैं.
सपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साल 2003 के विधानसभा चुनाव में रहा है. इस चुनाव में सपा 161 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें सात सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा का कुल वोट शेयर 5.26 फीसदी था.
साल 2003 में बसपा 157 सीट पर लड़ी थी, जिसमें 10.61 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी. वहीं अगर 2008 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा 228 सीटों पर लड़ी और 09.08 फीसदी वोट शेयर के साथ सात सीटें जीतने में सफल रहीं, जबकि सपा 186 सीट पर लड़ी और मात्र 02.46 प्रतिशत एक सीट ही हासिल कर सकी.
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पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में सपा ने 52 सीटों पर लड़ी और 1.30 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीती. वहीं, बसपा 227 सीट पर लड़ी और 5.01 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दो सीट जीती.
अगर पिछले 2019 लोकसभा चुनावों की बात करें तो मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी सिर्फ दो सीटों पर लड़ी. एक भी सीट नहीं जीत पाई और मात्र 0.22 फीसदी वोट शेयर था, जबकि बसपा 25 सीटों पर लड़ी थी और बसपा को भी 2.38 वोट प्रतिशत के साथ जीरों सीट मिली.
मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को लेकर मध्यप्रदेश की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं कि इन दोनों पार्टियों का अपना एक कोर वोट है, एक पॉकेट है जहां से वो आगे रहते हैं, लेकिन साथ में यह भी है कि इनकी वजह से दो मुख्य पार्टी (कांग्रेस और बीजेपी) मध्य प्रदेश में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दिवाकर आगे कहते हैं कि इन दोनों पार्टी का प्रभाव सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से सटे मध्यप्रदेश के इलाकों में थोड़ा रहता है.