गणेश-त्रिशूल से नजदीकी, मुख्तार से दूरी! मायावती की इस सियासत के चुनावी मायने क्या?

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पिछले कुछ दिनों के भीतर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती ने एक के बाद एक बड़े राजनीतिक फैसले लिए. पहले तो वह 7 सितंबर को लखनऊ में पार्टी के प्रबुद्ध सम्मेलन में नजर आईं और उनके हाथ में त्रिशूल और गणेश की मूर्ति दिखी. मंच से जयश्री राम के नारे भी लगे. फिर 10 सितंबर को मायावती ने बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के टिकट काटने का ऐलान कर दिया. गणेश और त्रिशूल संग माया की तस्वीर या मंच से लगते जयश्री राम के नारे की व्याख्या बीएसपी के सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे की तरफ शिफ्ट होने की इशारा कर रहे हैं. वहीं चुनाव से ऐन पहले बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के टिकट काटने से यह सवाल भी खड़ा हुआ है क्या मायावती को मुस्लिम वोटर्स की परवाह नहीं?

2017 की सियासी हार ने मायावती का स्टैंड बदल दिया? 2022 के चुनावों से ठीक पहले ब्राह्मण वोटर्स समेत हिंदू वोटर्स को लुभाने की मायावती की कवायद कई मायनों में अलग दिख रही है. सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं 2017 में मिली सियासी हार तो इसके पीछे की वजह नहीं? 2017 में मायावती ने मुस्लिम वोटर्स को लुभाने के लिए करीब 100 टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को बांटे. मायावती को इस चुनाव में महज 19 सीटों र जीत मिली, जिसमें से 6 मुस्लिम थे. इंडिया टुडे के पोस्ट पोल डाटा के मुताबिक बीएसपी को सिर्फ 16 फीसदी मुस्लिम वोट मिले. वहीं कांग्रेस और एसपी के अलायंस को 70 फीसदी वोट मिले. अब सवाल उठ रहा है कि पिछले एक दशक से अधिक समय से मुस्लिम वोटर्स को रिझाने की कोशिश में जुटी बीएसपी का क्या मोहभंग हो गया?

2014 के चुनावों से ही माया को दिखने लगे थे संकेत?
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बीएसपी ने यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार को खूब घेरा था. दंगों को नियंत्रित करने में एसपी सरकार की असफलता को मुद्दा बनाते हुए बीएसपी ने लोकसभा चुनावों में यूपी से 80 सीटों में से 19 पर मुस्लिम कैंडिडेट भी उतारे थे. पर इन चुनावों में भी मुस्लिम वोटर्स का बहुसंख्यक हिस्सा एसपी के पास गया, बल्कि 2012 के चुनावों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही सपोर्ट मिला. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक 2012 के चुनावों में एसपी को 39 फीसदी मुस्लिम वोट मिले तो 2014 के आम चुनावों में 58 फीसदी मुस्लिमों ने वोट दिया. वहीं बीएसपी को 2014 के चुनावों में सिर्फ 18 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे. 2019 के लोकसभा चुनावों में एसपी-बीएसपी ने महागठबंधन कर चुनाव लड़ा. महागठबंधन को हार मिली. बीएसपी ने दावा किया कि एसपी का कोर वोट (मुस्लिम-यादव) उसके कैंडिडेट को शिफ्ट नहीं हुआ.

वरिष्ठ पत्रकार और यूपी की राजनीति को नजदीक से देखने वाले शरद प्रधान का कहना है कि 2019 के आम चुनावों में गठबंधन के बावजूद बीएसपी को कुछ खास सीटें नहीं मिलीं. उनके मुताबिक इन चुनावों में भी मुस्लिमों के बड़े तबके के बीएसपी के साथ जाने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम वोट से पहले से दिख रही दूरी कि वजह से मायावती ने मुख्तार से दूरी बनाकर एक संकेत देने की कोशिश की है?

इसके अलावा मायावती की निगाहें कोर जाटव वोट के अलावा नॉन जाटव वोटों पर हैं. मायावती की सोशल इंजीनिरिंग में इस बार सवर्ण और बहुजन के मिलाप पर ध्यान देने की कोशिश ज्यादा दिख रही है. शायद यही वजह है कि पिछले दिनों हुए बीएसपी के प्रबुद्ध सम्मेलनों में पार्टी ने अयोध्या और राम मंदिर से अपनी नजदीकी को खुलकर दिखाया और मायावती भी त्रिशूल-गणेश के साथ नजर आईं.

इनपुट: अभिषेक मिश्रा

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