सुलभ के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का निधन, BHU से पढ़े और ऐसे घर में जन्मे जहां नहीं था टॉयलट

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 Bindeshwar Pathak News: मशहूर समाजसेवी, स्वच्छता अभियानकर्ता डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार, 15 अगस्त को 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. आपको बता…

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सुलभ के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का निधन, BHU से पढ़े और ऐसे घर में जन्मे जहां नहीं था टॉयलट
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 Bindeshwar Pathak News: मशहूर समाजसेवी, स्वच्छता अभियानकर्ता डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार, 15 अगस्त को 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. आपको बता दें कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले बिंदेश्वर पाठक ने ‘सुलभ इंटरनेशनल’ संगठन की स्थापना की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य शौचालय की सुविधा को समाज में प्रस्तुत करके स्वच्छता को प्रोत्साहित करना था. पाठक के योगदान ने उन लाखों गंभीर रूप से वंचित गरीबों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जो शौचालय का खर्च नहीं उठा सकते थे. बता दें कि खुद पाठक ने बताया था कि वह एक बड़े घर में पले-बढ़े थे, जिसमें 9 कमरे थे, पर एक भी टॉयलेट नहीं था.

कौन थे बिंदेश्वर पाठक?

2 अप्रैल, 1943 को डॉ. बिंदेश्वर पाठक का जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी मां योगमाया देवी थीं और उनके पिता रमाकांत पाठक थे, जो इस समुदाय के एक सम्मानित सदस्य थे.

मुश्किलों से कम नहीं रहा था पाठक का जीवन

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, 12 साल की उम्र में पाठक 30 फीट ऊंचे आम के पेड़ से फिसल गए थे. इससे उनके बाएं हाथ में कई फ्रैक्चर हो गए. लोगों ने सोचा कि उनका हाथ काटना पड़ेगा. लेकिन गांव के एक नीम-हकीम ने किसी तरह उनका हाथ बचा लिया. लेकिन उसके बाद से उनका जीवन दुर्घटना ग्रस्त बना रहा. जब वह 13 वर्ष के हुए, तो संयुक्त परिवार के मुखिया, उनके चाचा की हत्या हो गई, जिससे परिवार गंभीर वित्तीय संकट में पड़ गया.

इसलिए नहीं मिल पाई थी लेक्चरर की नौकरी

23 साल की उम्र में वह विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में कुछ अंकों से चूक गए, जिससे उन्हें कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल सकती थी, जो उनके जीवन की पहली महत्वाकांक्षा थी.

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पाठक ने किया था दोनों कंधों पर 10 किलो बोतलें लाद सेल्समैन का काम

फिर पाठक ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर चीज में हाथ आजमाया. उन्होंने एक अस्थायी क्लर्क के रूप में काम किया और 25 साल की उम्र में अपने दादाजी के घरेलू उपचार वाले आयुर्वेदिक मिश्रण को बेचने के लिए दोनों कंधों पर 10 किलो की बोतलें लटकाकर सड़क पर सेल्समैन के रूप में काम किया. लेकिन, उनकी बेचैन आत्मा ने उन्हें संभलने नहीं दिया. महीनों की मेहनत के बाद जब कारोबार में तेजी आने लगी तो पाठक को लगा कि इसमें “सम्मान की कमी” है. फिर उन्होंने मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल करने का फैसला किया.

नियति को था कुछ और मंजूर

मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था. मध्य प्रदेश जाते समय, वह हाजीपुर रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन यात्रा के बीच में उतर गए. उन्होंने वादा की गई नौकरी के लिए अपने विश्वविद्यालय के सपनों को छोड़ दिया, जो कभी अस्तित्व में नहीं थी.

पाठक ने बेच दिए थे पत्नी के गहने

1965 में उनकी शादी के बाद भी उनकी किस्मत चमकने में असफल रही. उन्होंने अपना जीवन चलाने के लिए अपनी पत्नी के गहने बेच दिए. एक बार तो उन्होंने अपने ससुर से उधार लिए पैसे का इस्तेमाल अपनी पत्नी अमला के कॉलेज में दाखिले के लिए भी किया था.

अगर आपको यह सब एक दुखद विफलता की सटीक रूपरेखा जैसा लगता है, तो आप फिर से सोचें! आपको बता दें कि बिंदेश्वर पाठक आज सुलभ इंटरनेशनल नामक सैकड़ों करोड़ रुपये के संगठन के संरक्षक थे. कई हजार सहयोगी सदस्य आज उनके संगठन के काम कर रहे थे. उनका कहना था कि सहयोगी सदस्य उनके मातहत नहीं हैं, बल्कि वह उनके “साथ” काम करते हैं.

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